रीसस बंदर

बंदर की एक प्रजाति

रीसस बंदर (अंग्रेज़ी: rhesus monkey) जिसे रीसस मकाक भी कहा जाता है। यह पूर्वजगत बंदर की एक प्रजाति है। इसकी छह से नौ मान्यता प्राप्त उप-प्रजातियाँ हैं। यह दक्षिण, मध्य और दक्षिण-पूर्व एशिया का मूल निवासी है और इसकी भौगोलिक सीमा सबसे व्यापक है। यह प्रजाति दिनचर, वृक्षचर और स्थलचर है। यह मुख्य तौर पर शाकाहारी है और मुख्य रूप से फल, बीज, जड़ें, कलियाँ, छाल और अनाज खाते हैं। शहरों में रहने वाले रीसस मकाक मानव भोजन और कचरा भी खाते हैं। उन्हें कई जगह पीड़क जंतु घोषित किया गया है।[1][2] यह झुंड में रहने वाला होता है, जिसके दल में 20 से 200 व्यक्ति होते हैं। सामाजिक समूह मातृवंशीय होते हैं जहाँ मादा का पद उसकी माँ के पद से तय होता है।

नर
मादा बच्चे के साथ

रीसस मकाक कई तरह के चेहरे के भाव, स्वर, शरीर की मुद्राएँ और हाव-भाव से संवाद करता है। चेहरे के भावों का उपयोग आक्रामकता को शांत करने, प्रभुत्व स्थापित करने और अन्य बंदरों को धमकाने के लिए किया जाता है। यह अपना अधिकांश दिन भोजन करने और आराम करने में बिताता है; बाकी समय यात्रा, सजने-संवरने और खेलने में व्यतीत होता है। इसके अपेक्षाकृत आसान रखरखाव, व्यापक उपलब्धता और शारीरिक रूप से मनुष्यों के करीब होने के कारण, इसका उपयोग मानव और पशु स्वास्थ्य से संबंधित विषयों पर चिकित्सा और जैविक अनुसंधान में बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसने रेबीज़, चेचक और पोलियो के लिए टीके और एचआईवी/एड्स के इलाज के लिए एण्टीवायरल दवा सहित कई वैज्ञानिक सफलताओं को सुगम बनाया है।[3][4]

  1. "हिमाचल की 91 तहसीलों में मारे जाएंगे बंदर, सरकार ने जारी की अधिसूचना". पंजाब केसरी. 29 मई 2020. अभिगमन तिथि 18 जुलाई 2024.
  2. "हिमाचल प्रदेश में बंदरों की संख्या 33 फीसदी से अधिक घटी, फिर भी मारने की छूट, खतरे में 37 हजार से ज्यादा बंदर". www.gaonconnection.com. 9 जून 2020. मूल से 18 जुलाई 2024 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 जुलाई 2024.
  3. "कोवैक्सीन के ट्रायल में रीसस बंदरों ने निभाई थी अहम भूमिका, जानें कैसे किया गया था ट्रैक". हिन्दुस्तान लाइव. अभिगमन तिथि 18 जुलाई 2024.
  4. "Corona: बंदरों पर कारगर साबित हुई वैक्‍सीन, ह्यूमन ट्रायल के लिए ऑक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी को मोटी रकम देगा ब्रिटेन". न्यूज़ 18. 28 अप्रैल 2020. अभिगमन तिथि 18 जुलाई 2024.