रुचि राम साहनी
रुचि राम साहनी (5 अप्रैल, 1863 – 3 जून, 1948) पंजाब के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिनका अविभाजित पंजाब के शिक्षा-व्यवस्था और वैज्ञानिक-सोच पर गहरा प्रभाव था। वे एक वैज्ञानिक, शिक्षाविद, नवाचारी, तेजस्वी राष्ट्रभक्त, समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता तथा पंजाब में विज्ञान शिक्षा के प्रसार में उत्प्रेरक की तरह थे। वे सुप्रसिद्ध पुरावनस्पतिविज्ञानी बीरबल साहनी के पिता थे।
जीवन परिचय
संपादित करेंरुचि राम साहनी का जन्म 5 अप्रैल 1863 को डेरा इस्माइल खान (अब पंजाब, पाकिस्तान में) हुआ था। उनके पिता का नाम करम चन्द साहनी और माता का नाम श्रीमती गुलाब देवी था। उनका परिवार थोक एवं रुपयों के लेन-देन का व्यवसाय करता था। साहनी वंश मूलतः सैनिकों का वंश था और 'सेनानी' कहलाता था। बालक रुचि राम की शिक्षा 5-6 वर्ष की आयु में प्रारंभ हुई। शिक्षक घर पर आता था, जिसे पंडा कहते थे। एक पहाड़ा याद करवाने पर उसे चार आने (एक आना = 6 पैसे) मिलते थे। 9 वर्ष की आयु में, बालक रुचि राम ने सेठ कल्याण दास के यहां कुछ महीने काम किया। बाद में वे पिता के थोक कारोबार और रुपयों के लेन-देन व्यवसाय में हाथ बंटाते रहे। उन्होंने 11 वर्ष की आयु तक पिता के साथ काम किया। उनकी स्कूली षिक्षा चर्च मिशन ब्रांच स्कूल, डेरा इस्माइल खान में हुई। उन्होंने सन् 1878 में धर्म प्रकाश स्कूल (जो बाद में 'सिटी स्कूल' बना) से मिडल परीक्षा पास की और प्रांत में पहला स्थान प्राप्त किया। इसी दौरान उनके पिता की मृत्यु हो गई। जिसके बाद उनके परिवार को डेरा इस्माइल खान में रहना मुश्किल हो गया। वहां उनकी गिनती कुलीन परिवारों में होती थी। परिवार ने भेड़ा में बसने की सोची।
रुचि राम डेरा इस्माइल खान से आदिबल (पाकिस्तान के पश्चिम पंजाब में झंग के पास एक कस्बा) चले गए। डेरा इस्माइल खान से आदिबल के 240 किलोमीटर का फासला बालक रुचि राम ने अपना बस्ता पीठ पर उठा कर पैदल तय किया। लेकिन, वहां वे अधिक दिन नहीं टिक पाए और लाहौर चले गए।
उन्होंने लाहौर से कलकत्ता बोर्ड की रुचि राम साहनी-संक्षिप्त परिचय मैट्रिक परीक्षा पास की। मैरिट लिस्ट में उनका छठा स्थान था। बोर्ड परीक्षा के पश्चात, उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज में प्रवेश लिया और सन् 1881 में इंटरमीडिएट पास किया और मैरिट लिस्ट में दूसरे स्थान पर रहे। सन् 1884 में रुचि राम ने बी.ए. पास किसा और मैरिट लिस्ट में प्रथम स्थान पर रहे।
बी.ए. के बाद उन्होंने एम.ए. की पढ़ाई शुरू की। इस बीच उन्हें “पंजाब शिक्षा सेवा” में स्थान मिल गया। एम.ए. की पढ़ाई अभी समाप्त नहीं हुई थी कि उन्हें 10.01.1885 से मौसम विभाग, कलकत्ता, में भेज दिया गया, जहां कुछ मास बिताने के बाद उन्हें मौसम विभाग के मुख्यालय, शिमला, में “दूसरा सहायक मौसम रिपोर्टर” नियुक्त किया गया। वहां दो साल काम करने के बाद सन् 1887 में वे गवर्नमेंट कॉलेज में प्राध्यापक बने और लाहौर आ गए।
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