रॉबर्ट बॉयल

एंग्लो-आयरिश प्राकृतिक दार्शनिक, रसायनज्ञ , भौतिक विज्ञानी और आविष्कारक

रॉबर्ट बॉयल (Robert Boyle ; 1627-1691 ई॰) आधुनिक रसायनशास्त्र का प्रवर्तक, अपने युग के महान वैज्ञानिकों में से एक, लंदन की प्रसिद्ध रॉयल सोसायटी का संस्थापक तथा कॉर्क के अर्ल की 14वीं संतान था।

राबर्ट बायल

परिचय संपादित करें

बॉयल का जन्म आयरलैंड के मुंस्टर प्रदेश के लिसमोर कांसेल में हुआ था। घर पर इन्होंने लैटिन और फ्रेंच भाषाएँ सीखीं और ईटन में तीन वर्ष अध्ययन किया। 1638 ई॰ में इन्होंने फ्रांस की यात्रा की और लगभग एक वर्ष जेनेवा में भी अध्ययन किया। फ्लोरेंस में इन्होंने गैलिलियों के ग्रंथों का अध्ययन किया। 1644 ई॰ में जब ये इंग्लैंड पहुँचे, तो इनकी मित्रता कई वैज्ञानिकों से हो गई। ये लोग एक छोटी सी गोष्ठी के रूप में और बाद को ऑक्सफोर्ड में, विचार-विनियम किया करते थे। यह गोष्ठी ही आज की जगतप्रसिद्ध रॉयल सोसायटी है। 1646 ई॰ से बॉयल का सारा समय वैज्ञानिक प्रयोगों में बीतने लगा। 1654 ई॰ के बाद ये ऑक्सफोर्ड में रहे और यहँ इनका परिचय अनेक विचारकों एवं विद्वानों से हुआ। 14 वर्ष ऑक्सफोर्ड में रहकर इन्होंने वायु पंपों पर विविध प्रयोग किए और वायु के गुणों का अच्छा अध्ययन किया। वायु में ध्वनि की गति पर भी काम किया। बॉयल के लेखों में इन प्रयोगों का विस्तृत वर्णन है। धर्मसाहित्य में भी इनकी रुचि थी और इस संबंध में भी इन्होंने लेख लिखे। इन्होंने अपने खर्च से कई भाषाओं में बाइबिल का अनुवाद कराया और ईसाई मत के प्रसार के लिए बहुत सा धन भी दिया।

 
बायल का वायु पम्प

रॉबर्ट बॉयल की सर्वप्रथम प्रकाशित वैज्ञानिक पुस्तक न्यू एक्सपेरिमेंट्स, फ़िज़िको मिकैनिकल, टचिंग द स्प्रिंग ऑव एयर ऐंड इट्स एफेक्ट्स, वायु के संकुचन और प्रसार के संबंध में है। 1663 ई॰ में रॉयल सोसायटी की विधिपूर्वक स्थापना हुई। बॉयल इस समय इस संस्था के सदस्य मात्र थे। बॉयल ने इस संस्था से प्रकाशित शोधपत्रिका "फिलोसॉफिकल ट्रैंजैक्शन्स" में अनेक लेख लिखे और 1680 ई॰ में ये इस संस्था के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। पर शपथ संबंधी कुछ मतभेदों के कारण इन्होंने यह पद ग्रहण करना अस्वीकार किया। कुछ दिनों बॉयल की रुचि कीमियागिरी में भी रही और अधम धातुओं को उत्तम धातुओं में परिवर्त्तित करने के संबंध में भी इन्होंने कुछ प्रयोग किए। चतुर्थ हेनरी ने कीमियागिरी के विरुद्ध कुछ कानून बना रखे थे। बॉयल के यत्न से ये कानून 1689 ई॰ में उठा लिए गए।

बॉयल ने तत्वों की प्रथम वैज्ञानिक परिभाषा दी और बताया कि अरस्तू के बताए गए तत्वों, अथवा क़ीमियाईगरों के तत्वों (पारा, गंधक और लवण) में से कोई भी वस्तु तत्व नहीं है, क्योंकि जिन पिंडों में (जैसे धातुओं में) इनका होना बताया जाता है उनमें से ये निकाले नहीं जा सकते। तत्वों के संबंध में 1661 ई॰ में बॉयल ने एक महत्वपूर्ण पुस्तिका लिखी "दी स्केप्टिकल केमिस्ट"। रसायन प्रयोगशाला में प्रचलित कई विधियों का बॉयल ने आविष्कार किया, जैसे कम दाब पर आसवन। बॉयल के गैस संबंधी नियम, उसके दहन संबंधी प्रयोग, हवा में धातुओं के जलने पर प्रयोग, पदार्थों पर ऊष्मा का प्रभाव, अम्ल और क्षारों के लक्षण और उनके संबंध में प्रयोग, ये सब युगप्रवर्तक प्रयोग थे जिन्होंने आधुनिक रसायन को जन्म दिया। बॉयल ने द्रव्य के कणवाद का प्रचलन किया, जिसकी अभिव्यक्ति डाल्टन के परमाणुवाद में हुई। उनके अन्य कार्य मिश्रधातु, फॉस्फोरस, मेथिल ऐलकोहल (वुड स्पिरिट), फॉस्फोरिक अम्ल, चाँदी के लवणों पर प्रकाश का प्रभाव आदि विषयक हैं।

बॉयल जीवन भर अविवाहित रहे। बेकन के तत्वदर्शन में उन्हें बड़ी आस्था थी। अमर वैज्ञानिकों में उनकी आज तक गणना होती है। 1660 ई॰ के बाद में उनका स्वास्थ्य गिरने लगा, किंतु रसायन संबंधी कार्य इस समय भी बंद न हुआ। 1661 ई॰ में उनका देहांत हो गया।