रोहिणी भगवान श्री कृष्ण के पिता वसुदेव की पहली पत्नी थीं। वसुदेव के एक पुत्र बलराम एवम् सुभद्रा नामक एक पुत्री रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। महाभारत के अनुसार रोहिणी को दिति का अवतार माना गया है।

दिति का रोहिणी के रूप में जन्म संपादित करें

सृष्टि के आरंभ में दक्ष प्रजापति की अदिति और दिति नाम की दो सुन्दर कन्याएं थीं। दोनों का ही विवाह दक्ष ने प्रजापति कश्यप से किया। विवाह के कुछ समय बाद अदिति के गर्भ से आदित्य एवम् दिति के गर्भ से दैत्य उत्पन्न हुए। अदिति की सुशिक्षा के परिणाम स्वरूप आदित्य धर्म पथ पर चले। दिति की गलत शिक्षाओं के कारण दैत्य अधर्म के पथ पर चले और अपने बड़े भाइयों अर्थात् आदित्यों के खिलाफ खड़े हो गए। ये दुश्मनी बढ़ती जा रही थी। आदित्यों में अदिति के ज्येष्ठ पुत्र इन्द्र का पक्ष लेकर भगवान विष्णु ने दिति के पुत्र हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु का संहार कर दिया। अपने पुत्रों के मारे जाने से दिति बहुत दुःखी हो गई और उन्होंने प्रजापति कश्यप से वरदान मांगा कि उन्हें एक ऐसा गर्भ चाहिए जो इन्द्र को मार दे। अपने पुत्र के संहार का कारण वे स्वयं न बने इसी कारण प्रजापति कश्यप ये बात सुनकर दुःखी हो गए। दिति को उन्होंने कहा कि तुम हजार वर्षों तक एक कठोर व्रत करो और उसमें अन्न जल का भी त्याग कर दो। दिति ने ऐसा ही किया। जब अदिति को इस बात का पता चला तो अदिति ने अपने पुत्र इन्द्र को बुलाया और आदेश दिया कि दिति की सेवा करो। अपनी माता का आदेश मानकर इन्द्र ने ऐसा ही किया। एक दिन जब दिति सो रही थीं इन्द्र ने इस अवसर का लाभ उठाकर दिति के गर्भ के सात टुकड़े कर दिए और टुकड़े करते हुए कहा मा रुत अर्थात रो मत इन टुकड़ों से सात मरुतों ने जन्म लिया। दिति को जब इस बात का पता चला तो दिति ने अपनी बड़ी बहन अदिति को श्राप दिया कि "दीदी जिस प्रकार आपके पुत्र ने मेरा गर्भ गिराया है उसी प्रकार द्वापर युग में कंस दानव आपका गर्भ गिरा देगा। आपके गर्भ से उत्पन्न प्रत्येक पुत्र का वध कंस दानव जन्म लेते ही कर देगा और उस जन्म में आप मुझसे छोटी होंगी"। इसी श्राप के कारण द्वापर युग में प्रजापति कश्यप का वसुदेव के रूप में , अदिति का देवकी के रूप में और दिति का रोहिणी के रूप में जन्म हुआ था।