लघु चित्रकला
लघु चित्रकारी (Miniature painting) भारतीय शास्त्रीय परम्परा के अनुसार बनाई गई चित्रकारी शिल्प है। “समरांगण सूत्रधार” नामक वास्तुशास्त्र में इसका विस्तृत रूप से उल्लेख मिलता है। इस शिल्प की कलाकृतियाँ सैंकड़ों वर्षों के बाद भी अब तक इतनी नवीन लगती हैं मानो ये कुछ वर्ष पूर्व ही चित्रित की गई हों।
चित्रकारी विधि
संपादित करेंकागज पर लघु चित्रकारी करने के लिए सबसे पहले आधार रंग बनाया जाता है। इसके लिए कागज पर खड़िया मिट्टी (चॉक मिट्टी) के चार से पांच स्तर चढ़ाने की आवश्यकता होती है। इसके बाद चित्रकारी में रंगों को समतल करने के लिए दबाव के साथ उसे रगड़ा जाता है। पृष्ठभूमि बनाने के बाद पोशाक की ओर ध्यान दिया जाता है। अंत में आभूषणों और चेहरे सहित अन्य अंगों की रचना की जाती है। पुरी कलाकृति निर्मित हो जाने के बाद उनमें रंग भरे जाते हैं। आभूषणों में स्वर्ण और चांदी के रंगों को बड़ी कुशलतापूर्वक भरा जाता है लघु चित्रकारी बनाने में प्राचीन समय से ही प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग किया जाता था। इस चित्रकारी में विभिन्न प्राकृतिक पत्थरों का भी प्रयोग किया जाता था यथा मूंगा, लाजवर्त, हल्दी आदि।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- भारतीय लघुचित्रकला (सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र)
- राजस्थानी लघु चित्रकारी
- लघुचित्र शैली : शोध की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण (प्रेसनोट)
- परम्परागत चित्रन और रंगसज्जा (प्रेसनोट)
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