लाटू देवता मन्दिर चमोली जिले के वाँण गाँव में स्थित है जो चारों ओर से सुराई के वृक्षों से आच्छादित है,मन्दिर परिसर 150 मीटर के दायरे तक फैला है मन्दिर के ठीक ऊपर एक विशाल देवदार का वृक्ष है जो जिसका व्यास 05 मीटर है,

मन्दिर संपादित करें

मन्दिर चारों ओर से विशाल सुराई के पेड़ों से आच्छादित है जिनकी न्यूनतम ऊँचाई ३० फ़ीट के लगभग है, मन्दिर के कपाट प्रति वर्ष बैशाख में पूर्णिमा को खुलते हैं और मार्गशीर्ष अमावस्या को बन्द होते हैं, बैशाख पूर्णिमा को प्रति वर्ष यहाँ स्थानीय मेला लगता है जिसमें दूर-दूर के लोग आकर शामिल होते हैं

मन्दिर की महत्ता संपादित करें

लोग अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर यहाँ प्रण के अनुसार घण्टियाँ,शंख आदि चढ़ाते हैं यहाँ के लोगों की लाटू के प्रति अपार श्रद्धा है, मन्दिर के गर्भ-गृह में सामान्य लोगों का जाना वर्जित है केवल पुजारी ही जाते हैं पूजा का भी विशेष नियम है-पुजारी नाक-कान,आँख में पट्टी बाँधकर अंदर जाता है,ऐसी मान्यता है कि एक दीया को जलाने से अंदर सैकड़ों दीये स्वतः ही जल जाते हैं,कुछ मानते हैं कि अंदर साक्षात नाग देवता स्थित हैं जिनकी मणि के तेज से आँखों की ज्योति के जाने का भय रहता है, कुछ लोकमान्यताओं के अनुसार नाग के विष के प्रभाव से बचने के लिए ऐसा किया जाता है हालांकि इसके प्रमाण नहीं हैं जिनमें अब भी शोध की आवश्यकता है

लोककथा संपादित करें

जनश्रुतियों व स्थानीय किवंदंतियों के अनुसार लाटू कन्नौज उत्तर प्रदेश के गॉड ब्राह्मण थे,वे आजीवन ब्रह्मचारी थे स्वभाव से घुम्मकड़ होने के कारण वे घूमते-घूमते वाँण तक आ पहुँचे,उनको यह स्थान अति प्रिय लगा और वो यहीं रहे, कहते हैं कि जब उनको प्यास लगी तो भूल से उन्हौने पानी के बजाय मदिरा पी ली जिसके कारण वे गिर पड़े गिरने से उनकी जीभ कट गई और अंततः उनकी मृत्यु हो गयी,

अभिगम संपादित करें

मार्ग १. काठगोदाम - गरुड़ ,गरुड़ - ग्वालदम , ग्वालदम-देवाल,देवाल-वाँण'

मार्ग २. ऋषिकेश- श्रीनगर,श्रीनगर-कर्णप्रयाग,कर्णप्रयाग-देवाल,देवाल- वाँण

संदर्भ संपादित करें