लाट के गुर्जर
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लाट के गुर्जर भारत का एक राजवंश था जिसने ५८० ई से लेकर ७३८ ई तक लाट प्रदेश (वर्तमान दक्षिण गुजरात) पर शासन किया। लाट के गुर्जरों को नंदिपुरी के गुर्जर और भरूच के गुर्जर भी कहते हैं।
लाट के गुर्जर | |||||||||
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c. 580 CE–c. 738 CE | |||||||||
राजधानी | नन्दिपुरी (नान्दोद) भृगुकच्छप (भरूच) | ||||||||
प्रचलित भाषा(एँ) | प्राकृत | ||||||||
धर्म | सूर्य के उपासक, शैव | ||||||||
सरकार | राजतंत्र | ||||||||
इतिहास | |||||||||
• स्थापित | c. 580 CE | ||||||||
• अंत | c. 738 CE | ||||||||
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अब जिस देश का हिस्सा है | भारत |
भरूच के गुर्जर राजवंश के बारे में जो भी सूचना प्राप्त है वह सब ताम्रपत्रों से मिली है। ये सारे ताम्रपत्र दक्षिण गुजरात से मिले हैं। जिस प्रकार समकालीन चालुक्य राजाओं के दानपत्रों पर तिथियाँ त्रैकूटक संवत में लिखी गयी हैं, उसी प्रकार इस क्षेत्र से प्राप्त सभी विश्वसनीय ताम्रपत्रों पर त्रैकूटक संवत में ही तिथियाँ अंकित हैं। त्रैकूटक संवत् २४९-२५० ई. से आरम्भ होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि भरूच के गुर्जरों की राजधानी नान्दिपुरी या नान्दोर (आधुनिक नान्दोद) थी। उनके दो दानपत्रों पर संस्कृत में 'नान्दिपुरीतः' आया है जिसका अर्थ "नान्दिपुरी से" है। इससे ऐसा लगता है कि नान्दिपुरी इनकी राजधानी थी क्योंकि इनके अन्य दानपत्रों में "वासक" शब्द आया है जिसका अर्थ 'शिविर' है।
७३४ ई. के बाद भरूच के गुर्जरों के विषय में कुछ पता नहीं चलता।
प्राप्त ताम्रपत्रों के आधार पर गुर्जर राज्य का विस्तार आज के भरूच जिले के माही और नर्मदा नदियों के बीच के क्षेत्र तक सीमित प्रतीत होता है, यद्यपि कभी-कभी उनका प्रभाव खेड़ा के उत्तर तक और ताप्ती नदी के दक्षिण तक भी था।
यद्यपि गुर्जर राज्य काफी बड़ा था तथापि उनके ताम्रपत्रों से ऐसा लगता है कि वे स्वतंत्र शासक नहीं थे। सामान्यतः उनकी उपाधियाँ या तो 'समाधिगतपञ्चमहाशबद' है या 'सामन्त' । एक ताम्रपत्र में जयभट तृतीय के लिए 'सामन्ताधिपति' उपाधि का प्रयोग हुआ है।
इतिहास
संपादित करेंलाट के गुर्जरों की उत्पत्ति के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। सम्भवतः वे किसी पड़ोसी राजवंश (जैसे मन्दोर के गुर्जरों से या भीनमाल,राजस्थान के गुर्जरों से) से उत्पन्न हुए ।
शासक
संपादित करें- दद्द प्रथम ( 585 ई. – 605 ई.)
- जयभट प्रथम वीतराग ( 605 ई – 620 ई.)
- दद्द द्वितीय प्रशान्तराग ( 620 ई. – 650 ई.)
- जयभट द्वितीय ( 650 ई. – 675 ई.)
- दद्द तृतीय बाहुसहाय (675 ई. – 690 ई.)
- जयभट तृतीय ( 690 ई. – 710 ई.)
- अहिरोले ( 710 ई. – 720 ई.)
- जयभट चतुर्थ ( 720 ई. – 737 ई.)
दद्द प्रथम
संपादित करेंजयभट प्रथम
संपादित करेंदद्द द्वितीय
संपादित करेंजयभट द्वितीय
संपादित करेंदद्द तृतीय
संपादित करेंजयभट तृतीय
संपादित करेंअहिरोले
संपादित करेंजयभट चतुर्थ
संपादित करेंसन्दर्भ
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