लोकनाथ बल (8 मार्च 1908 - 4 सितम्बर 1964) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे। वे भी हमारे उन गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं। वह मास्टर सूर्यसेन के सशस्त्र प्रतिरोधी बल के सदस्य थे और उसके बाद वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वह कलकत्ता कोर्पोरेशन में प्रशासनिक अधिकारी बन गए और मृत्युपर्यंत उस पद पर रहे।

प्रारंभिक जीवन और स्वाधीनता आन्दोलन संपादित करें

श्री लोकनाथ बल का जन्म बंगाल (आज का बंगलादेश) के चटगाँव जिले के धोल्रा गाँव में 8 मार्च 1908 को हुआ था। उनके पिता श्री प्राणकृष्ण बल थे। अंग्रेजों के अत्याचारों से भारतीय युवा मन बेचेन हो उठा था। इस समय में मास्टर सूर्य सेन ने क्रांति का बीड़ा उठा रखा था। वह जानते थे की धन व हथियारों की कमी के कारण वह अंग्रेजों से सीधे नहीं लड़ सकते इसीलिए उन्होंने साम्राज्यवादी सरकार के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू किया। श्री लोकनाथ बल भी उनके साथ जुड़ गए।

18-अप्रैल-1930 को जब मास्टर सूर्य सेन ने प्रसिद्ध चटगाँव शस्त्रागार पर हमला किया तब श्री लोकनाथ बल भी उनके दल के प्रमुख सदस्य थे। 22-अप्रैल-1930 को उनकी दोबारा ब्रिटिश सेना और ब्रिटिश पुलिस से मुठभेड़ हुई। इस गोलीबारी में श्री लोकनाथ जी के छोटे भाई श्री हरिगोपाल बल (तेग्र) के साथ-साथ 11 क्रांतिकारी शहीद हो गए। श्री लोकनाथ जी किसी तरह बचकर निकले और फ़्रांसिसी क्षेत्र चंद्रनगर पहुँच गए। लेकिन दुर्भाग्य से 1-सितम्बर-1930 को अंग्रेज पुलिस से हुई मुठभेड़ में उनके साथी श्री जीवन घोषाल शहीद हो गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर केस चला और 1-मार्च-1932 को उन्हें आजीवन देश निकले (कालापानी) की सजा दी गयी और उन्हें अंदमान-निकोबार की सेल्युलर जेल में भेज दिया गया। 1946 में वहां से रिहा होने के बाद वह पहले श्री एम्.एन.राय की रेडिकल डेमोक्रटिक पार्टी से जुड़े और बाद में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संपादित करें

श्री लोकनाथ बल 1-मई, 1952 से लेकर 19-जुलाई, 1962 तक कलकत्ता कोर्पोरेशन के द्वितीय डिप्टी कमिश्नर के पद पर रहे और 20-जुलाई-1962 को इसके प्रथम डिप्टी कमिश्नर बन गए। इसी पद पर रहते हुए 4-सितम्बर-1964 को कलकत्ता में उनका देहावसान हो गया।