यह हिन्दी पुस्तकों के एक प्रमुख प्रकाशक हैं।

स्थापना एवं विकास : लोकभारती प्रकाशन की शुरुआत 1961 में दिनेश ग्रोवर और रमेश ग्रोवर ने राजकमल प्रकाशन से अलग होकर की और इलाहाबाद को अपना केंद्र बनाया। रमेश जी और दिनेश जी राजकमल प्रकाशन के सूत्रधार ओमप्रकाश जी के भांजे थे। दोनों ही राजकमल में काम कर चुके थे। इस समय इलाहाबाद में बड़ी संख्या में कद्दावर लेखक रहते थे। जो नहीं रहते थे वे भी इलाहाबाद की तरफ खिंचे चले आते थे। 'कहानी', 'नई कविता', 'नई कहानियाँ' और 'निकष' जैसी पत्रिकाएँ इलाहाबाद से निकल रही थीं। किताब महल, भारती भंडार, हंस प्रकाशन, साहित्य भवन जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशक थे। कुछ समय पहले तक राजकमल प्रकाशन का भी एक कार्यालय इलाहाबाद में रह चुका था। राजकमल प्रकाशन की पत्रिका ‘आलोचना’ और ‘प्रकाशन समाचार’ भी लम्बे समय तक इलाहाबाद से प्रकाशित हुई। हिन्दी साहित्य सम्मेलन और हिन्दुस्तानी एकेडमी जैसी संस्थाएँ भी इलाहाबाद में रचनात्मक रूप से लगातार सक्रिय थीं। लोकभारती प्रकाशन को इन स्थितियों से भी पर्याप्त सहयोग मिला और जल्दी ही यह हिन्दी के शीर्ष प्रकाशकों में से एक के रूप में गिना जाने लगा। यह एक सुन्दर संयोग बना कि लोकभारती प्रकाशन उसी बिल्डिंग में उसी जगह शुरू हुआ जहाँ पहले राजकमल प्रकाशन का कार्यालय हुआ करता था। तब किसने जाना था कि हिन्दी प्रकाशन की इन दोनों धाराओं को 2005 में फिर एक हो जाना है और साथ साथ रहना है। इस तरह 2005 में लोकभारती प्रकाशन फिर से राजकमल प्रकाशन समूह का हिस्सा बन गया।


शुरुआती किताबें :

लोकभारती प्रकाशन शुरू से ही रचनात्मक और आलोचनात्मक दोनों तरह के साहित्य को समान महत्त्व देता रहा है। लोकभारती प्रकाशन से छपकर आई पहली किताब थी- 'हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग' (नामवर सिंह)। इसके बाद 'प्रसाद, निराला, पन्त, महादेवी' (सम्पादक : वाचस्पति पाठक), 'सन्धिनी' (कविता संग्रह - महादेवी वर्मा), 'लोग' (उपन्यास - गिरिराज किशोर) 'अमृत और विष' (उपन्यास - अमृतलाल नागर) 'लोकलाज कोई' (उपन्यास - सुरेंद्रपाल सिंह) 'दो एकान्त' (उपन्यास - श्रीनरेश मेहता) 'दो अकालगढ़' (उपन्यास - बलवन्त सिंह), 'अनुपस्थित लोग' (कविता संग्रह - ‌भारतभूषण अग्रवाल), 'महाप्राण निराला', 'महीयसी महादेवी' (गंगाप्रसाद पांडेय) जैसी अनेक किताबों के प्रकाशन के साथ लोकभारती एक विश्वसनीय प्रकाशक के रूप में अपनी जगह बनाता चला गया।


प्रमुख प्रकाशन  :

लोकभारती प्रकाशन रामधारी सिंह दिनकर, यशपाल, श्रीनरेश मेहता और मार्कण्डेय के सम्पूर्ण साहित्य का इकलौता प्रकाशक है। इसके अतिरिक्त सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, इलाचंद्र जोशी, भैरव प्रसाद गुप्त, भगवती चरण वर्मा, हजारीप्रसाद द्विवेदी, राममनोहर लोहिया, नामवर सिंह, भुवनेश्वर, नन्ददुलारे वाजपेयी, रामस्वरूप चतुर्वेदी, विद्यानिवास मिश्र, विष्णुकान्त शास्त्री, रघुवंश, शिव प्रसाद सिंह, लक्ष्मीनारायण लाल, बलवन्त सिंह, रामकुमार वर्मा, दूधनाथ सिंह, ममता कालिया, केशवचंद्र वर्मा, गणपतिचंद्र गुप्त, योगेंद्र प्रताप सिंह, बच्चन सिंह, शिवकुमार मिश्र, उदयनारायण राय, आदि की अधिकांश किताबें लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित हैं। भारतीय और विदेशी भाषाओं के अनेक शीर्षस्थ लेखकों – बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, विमल मित्र, महाश्वेता देवी, सतीनाथ भादुड़ी, पन्नालाल पटेल, शाण्डिल्यन, विजय तेंदुल्कर, वसंत कानेटकर, फ़िराक़ गोरखपुरी, कैफ़ी आज़मी, रोमाँ रोलाँ और एलिस मनरो सहित अनेक लेखकों की किताबें लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित हैं।


चर्चित कृतियाँ :

झूठा सच, मेरी तेरी उसकी बात, सिंहावलोकन (यशपाल), अमृत और विष, ये कोठेवालियाँ (अमृतलाल नागर), तीन वर्ष (भगवतीचरण वर्मा), जहाज का पंछी (इलाचंद्र जोशी), यह पथ बंधु था (श्रीनरेश मेहता), ढोड़ायचरित मानस (सतीनाथ भादुड़ी), गंगा मैया (भैरव प्रसाद गुप्त), लौटे हुए मुसाफिर (कमलेश्वर), अलग-अलग वैतरिणी (शिवप्रसाद सिंह), अग्निबीज (मार्कण्डेय), मुंशी रायजादा (लक्ष्मीकान्त वर्मा), दो अकालगढ़, काले कोस (बलवन्त सिंह), भारत भारती (मैथिलीशरण गुप्त), रश्मिरथी, उर्वशी, संस्कृति के चार अध्याय (रामधारी सिंह दिनकर), राग-विराग (सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला), तारापथ (सुमित्रानन्दन पन्त), संशय की एक रात (श्रीनरेश मेहता), यामा, शृंखला की क‌ड़ियाँ, मेरा परिवार (महादेवी वर्मा), हिन्दू बनाम हिन्दू, भारत विभाजन के गुनाहगार (राममनोहर लोहिया), मानव समाज, वैज्ञानिक भौतिकवाद (राहुल सांकृत्यायन), कला और संस्कृति (वासुदेव शरण अग्रवाल), लाहौर से लखनऊ तक (प्रकाशवती पाल), भारतवर्ष में जाति-भेद (क्षितिमोहन सेन शास्त्री), महाभारतकालीन समाज (सुखमय भट्टाचार्य), मानव देह और हमारी देह भाषाएँ (रमेश कुंतल मेघ), लोक संस्कृति और इतिहास (बद्रीनारायण), भारतीय चित्रकला का संक्षिप्त इतिहास (वाचस्पति गैरौला), सन सत्तावन की राज्य क्रांति और मार्क्सवाद (रामविलास शर्मा), वैदिक संस्कृति (गोविंद चंद्र पांडे), लोक संस्कृति की रूपरेखा (कृष्णदेव उपाध्याय), साम्प्रदायिकता का जहर (डॉ. रणजीत), संगीत कविता और बादशाह (अजय तिवारी) सहित लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित और भी न जाने कितनी किताबें हैं जो लगातार पाठकों के बीच चर्चा के केंद्र में रही हैं।


महत्वपूर्ण संचयन :

अदब में बाईं पसली (छह खंडों में एफ्रो-एशियाई साहित्य का विशाल संकलन, सम्पादन - ‌नासिरा शर्मा), महिला लेखन के सौ वर्ष : बीसवीं सदी का गद्य साहित्य (सम्पादन - ममता कालिया); भारतीय उपन्यास : कथासार (दो खंडों में, सम्पादक - प्रभाकर माचवे); श्रेष्ठ भारतीय एकांकी (दो खंडों में, सम्पादक - प्रभाकर माचवे); भारतीय श्रेष्ठ कहानियाँ (दो खंडों में, सम्पादक - सन्हैयालाल ओझा, मार्कण्डेय), विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (दो खंडों में, सम्पादक - ममता कालिया); हिन्दी की जनपदीय कविता (सम्पादक - विद्यानिवास मिश्र)


छात्रोपयोगी किताबें :

लोकभारती प्रकाशन का एक महत्वपूर्ण योगदान यह भी है कि यह छात्रों (खासकर हिन्दी साहित्य के विद्यार्थियों) के लिए बड़ी संख्या में स्तरीय किताबें प्रकाशित करता है। साहित्येतिहास, विधा और कृति केंद्रित पुस्तकें, रचनाओं की टीका, उन पर स्तरीय आलोचना, भाषा विज्ञान, व्याकरण और अनुवाद विज्ञान से संबंधित किताबें तथा हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी के विभिन्न कोश लोकभारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किए गए हैं। ये बेहद कम कीमत पर प्रकाशित की जाती हैं। जो उपन्यास, नाटक, खण्डकाव्य पाठ्यक्रमों का हिस्सा हैं उनके विशेष छात्र संस्करण बहुत कम कीमत में प्रकाशित किए जाते हैं।


रचनावली/सम्पूर्ण साहित्य :  

लोकभारती प्रकाशन रामधारी सिंह दिनकर, यशपाल, श्रीनरेश मेहता और मार्कण्डेय के सम्पूर्ण साहित्य का इकलौता प्रकाशक है। लोकभारती ने हिन्दी तथा अन्य भाषाओं के अनेक नए-पुराने लेखकों का सम्पूर्ण साहित्य प्रकाशित किया है जिसमें प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, बंकिमचंद्र, विपिन कुमार अग्रवाल तथा कैलाश गौतम प्रमुख हैं। लोकभारती प्रकाशन ने मध्यकाल के अनेक कवियों की रचनाएँ भी प्रमुखता से प्रकाशित की हैं। कबीर, जायसी, तुलसी, रहीम, सूरदास, घनानन्द, केशवदास, बिहारी और मीराँ का सम्पूर्ण उपलब्ध साहित्य लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित है। इन सबके साहित्य पर टीका और आलोचना भी की अनेक पुस्तकें लोकभारती ने प्रकाशित की है। विद्यापति (गीत-गोविन्द) जयदेव (पदावली) को भी इसी शृंखला में रखा जा सकता है।


वर्तमान उत्तरदायित्व :

वर्तमान में लोकभारती प्रकाशन 'राजकमल प्रकाशन समूह' का हिस्सा है। साहित्य भवन प्रा. लि. और हंस प्रकाशन की पुस्तकों का प्रकाशन एवं वितरण लोकभारती प्रकाशन के ही अन्तर्गत होता है। लोकभारती प्रकाशन के संस्थापकों में से एक श्री रमेश ग्रोवर अभी भी लोकभारती प्रकाशन से संरक्षक के रूप में जुड़े हुए हैं। कथाकार मनोज कुमार पांडेय प्रकाशन का सम्पादकीय कार्यभार सँभाल रहे हैं।

इन्हें भी देखें संपादित करें

टीका संपादित करें