लौहविद्युत (Ferroelectricity) कुछ पदार्थों के ख़ुद ही स्वयं में विद्युत ध्रुवों (इलेक्ट्रिक पोल) को बना लेने के स्वभाव को कहते हैं। मसलन बेरियम टाइटैनेट (barium titanate, रासायनिक सूत्र: BaTiO3) में ख़ुद ही ऋणात्मक (निगेटिव) और घनात्मक (पोज़िटिव) विद्युत ध्रुव बन जाते हैं जिनसें उस पदार्थ में स्थाई रूप से विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण (electric dipole moment) आ जाता है। लौहविद्युत पदार्थ पर बाहरी विद्युत क्षेत्र (इलेक्ट्रिक फ़ील्ड) लगाने से यह ध्रुविकरण हटाया जा सकता है।[1]

नामोत्पत्ति

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पदार्थों में लौहविद्युत स्वभाव दिखने से पहले वैज्ञानिक लौहचुम्बकत्व देख चुके थे जिसमें लौहचुम्बकी पदार्थ अपने-आप ही उत्तर और दक्षिणी चुम्बकीय ध्रुव बना लेते हैं। लौहचुम्बकी पदार्थ लोहे या उसी जैसे धातु के होते हैं। जब वैज्ञानिकों ने ऐसी ही चीज़ कुछ अन्य पदार्थों में देखी तो उसे लौहविद्युत बुलाने लगे हालाँकि अधिकतर लौहविद्युत पदार्थों का लोहे से कुछ भी लेना-देना नहीं होता।[2]

इन्हें भी देखें

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  1. A. S. Sidorkin (2006). Domain Structure in Ferroelectrics and Related Materials. Cambridge University Press. ISBN 1-904602-14-2.
  2. Karin M Rabe, Jean-Marc Triscone, Charles H Ahn (2007). Physics of Ferroelectrics: A modern perspective. Springer. ISBN 3-540-34591-4.