वचन साहित्य कन्नड साहित्य का भाग है जिसकी रचना ११वीं शताब्दी में हुई तथा १२वीं शताब्दी में फला-फूला। वचन साहित्य आसानी से समझ आने वाला गद्य साहित्य है। मादर चेन्नय्य नामक एक सन्त इसके प्रवर्तक कहे जाते हैं जो मोची का काम करते थे। यह पश्चिमी चालुक्यों का शासन काल था।

११वीं-१२वीं शताब्दी का एक ताड़पत्र जिस पर वचन अंकित हैं।
एक उदाहरण
उळ्ळवरु शिवालय माडुवरु नानेनु माडलि बडवनय्या
ऎन्न काले कंब, देहवे देगुल, शिरवे हॊन्न कळसवय्या
कूडलसंगमदेवा केळय्या, स्थावरक्कळिवुंटु जंगमक्कळिविल्ल ,
अर्थ
धनी लोग शिवालय बनवाएंगे, मैं निर्धन क्या करूं?
मेरे पैर ही स्तम्भ हैं, देह ही देवालय है, सिर ही कलश है।
हे संगम के देव! जो स्थावर (एक जगह खड़ी) वस्तुएँ हैं वे गिर जाएंगी, किन्तु जो जंगम (चलायमान) हैं वे बची रहेंगी।

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