वटेश्वर (जन्म 880), दसवीं शताब्दी के भारतीय (काश्मीरी) गणितज्ञ थे[1][2] जिन्होने 24 वर्ष की उम्र में वटेश्वर-सिद्धान्त नामक ग्रन्थ की रचना की और कई त्रिकोणमितीय सर्वसमिकाएँ प्रस्तुत कीं। [3] वटेश्वर-सिद्धान्त, खगोल शास्त्र और व्यावहारिक गणित से सम्बन्धित ग्रन्थ है जिसकी रचना सन् 904 में हुई थी।

महादत्त के पुत्र वटेश्वर पश्चिमी भारत में गुजरात के आनन्दपुर या वडनगर के निवासी थे, जो उस समय शिक्षा का एक बड़ा केंद्र था। 904 ई. में उन्होंने वटेश्वर-सिद्धान्त की रचना की जो खगोल विज्ञान पर सबसे बड़े और सबसे व्यापक ग्रन्थों में से एक है। यह ग्रन्थ १०वीं शताब्दी ईस्वी तक भारतीय खगोलविदों के सिद्धांतों, पद्धतियों और प्रक्रियाओं पर बहुत प्रकाश डालता है। यह ज्तोतिर्विद्या के अध्ययन के लिए मान्य ग्रन्थों में से एक था। वटेश्वर द्वारा प्रतिपादित कई नियमों को बाद के श्रीपति (११वीं शताब्दी) और भास्कर द्वितीय (जन्म 1114) आदि द्वारा अपनाया गया था। यह भी उल्लेखनीय है कि फ़ारसी विद्वान और बहुज्ञ अल-बिरूनी ने वटेश्वर का उल्लेख किया है। वह ११वीं शताब्दी के आरम्भ में भारत आया था। अल-बरुनी ने उनके कुछ विचारों को अपने लेखन में उद्धृत किया है। वटेश्वर ने एक करणसार भी लिखा, जो अब अप्राप्य है और केवल संदर्भों के माध्यम से जाना जाता है। उन्होंने गोल नामक ग्रन्थ भी लिखा जो सम्प्रति केवल आंशिक रूप से उपलब्ध है।

  1. R.N. Rai, Karanasara of Vatesvara, भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (1970), vol. 6, n. I, p. 34 Archived 2015-06-09 at the वेबैक मशीन
  2. Vaṭeśvara, Vaṭeśvara-siddhānta and Gola of Vaṭeśvara: English translation and commentary, National Commission for the Compilation of History of Sciences in India (1985), p. xxvii
  3. Kim Plofker, Mathematics in India, प्रिंसटन विश्वविद्यालय मुद्रणालय (2009), p. 326