बरवै
(वरबै से अनुप्रेषित)
बरवै रामायण सगुण भक्ति धारा के रामभकती शाखा के कवि तुलसीदास द्वारा लिखी गई है ।
परिभाषा
संपादित करेंइसके प्रथम एवं तृतीय चरण में १२ -१२ मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में ७-७ मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में जगण (ISI )होता है। [1]
उदहारण
संपादित करेंगोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित बरवै रामायण से लिया गया छंद:
- चम्पक हरवा अंग मिलि,अधिक सुहाय।
- जानि परै सिय हियरे ,जब कुंभिलाय।।
प्रेम प्रीति को बिरवा ,चले लगाय।
सियाहि की सुधि लीजो ,सुखी न जाय।।
ab jivaan ki hai kapii asha koye, kanguriya ki mudri, kangna house.
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 9 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.