वर्दिया राजवंश , सातवाहन वंश की शाखा है जिसकी स्थापना राजा शालिवाहन ने की थी।

शालिवाहन (गौतमीपुत्र शातकर्णी)

राजा शालीवाहन सातवाहन राजवंश के सबसे प्रतापी वा महान राजा थे। राजा शालीवाहन के शासनकाल में यह राजवंश अपनी चरम सीमा पर था। राजा शालीवाहन की मां गौतमी प्रजापति (कुम्हार) थी। राजा शालिवाहन का जन्म आदिसोसन की कृपा से हुआ था (मत्स्यपुराण के अनुसार)।

राजा शालिवाहन का बचपन समस्याओं से भरा हुआ था परन्तु राजा शालीवाहन को ईश्वर की घोर तपस्या के फलस्वरूप अनेकों वरदान प्राप्त हुए,जिससे राजा सलीवाहन ने राजपाठ और युद्ध के क्षेत्र में महारथ हासिल की। इसलिए इन्हे दक्षिणपथ का स्वामी एवं वर्दिया (वरदान प्राप्त करने वाला) कहा जाता है। वर्तमान में सातवाहन राजवंश की शाखाएं वराडिया (महाराष्ट्र, आंध्र), वर्दीया, वरदिया (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश , राजिस्थान) सवांसोलकीया (मध्य प्रदेश) आदि प्रमुख हैं। जो वर्तमान में कुम्हार (प्रजापति) जाति में आते है।यज्ञश्री की मृत्यु के पश्चात् सातवाहन साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हुई । यह अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया । पुराणों में यज्ञश्री के पश्चात् शासन करने वाले विजय, चन्द्रश्री तथा पुलोमा के नाम मिलते हैं, परन्तु उनमें से कोई इतना योग्य नहीं था कि वह विघटन की शक्तियों को रोक सके । दक्षिण-पश्चिम में सातवाहनों के बाद आभीर, आन्ध्रप्रदेश में ईक्ष्वाकु तथा कुन्तल में चुटुशातकर्णि वंशों ने अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित कर ली ।[18][19]