वाघली शिलालेख

गोविंदराज मौर्य का शिलालेख

1069 ई. का वाघली शिलालेख[1] इस क्षेत्र में मौर्यो की उत्पत्ति के बारे में जानकारी देता है। इसमें गोविंदराजा नाम के एक सामंती मौर्य प्रमुख का उल्लेख है ।[2]

Stone Inscription of Govindraja, Vaghli

इस अभिलेख के चौथी पंक्ति में लिखे "मौर्याणां राजधानी वलभिरिति" से पता चलता है की वाघली खानदेश के मौर्यो की राजधनी थी तथा छठी पंक्ति में उस रियासत के राजकुमार कीकट का नाम अंकित है - " श्रीकीकट प्रवरमौर्य कुलग्रप्रसूतः "।

मौर्यवंशी राजाओं का अभिलेखिय साक्ष्य हैं जिससे सिद्ध है कि मौर्यवंशी सूर्यवंशी है तथा मनु को अपने वंश का ही आदर्श राजा मानते थे।[3] ये अभिलेख लगभग 1000 ईस्वी का है अर्थात् आज से 1020 साल पुराना, इस अभिलेख को महाराष्ट्र के वाघली नामक स्थान पर बने शिव मंदिर से प्राप्त किया गया था तथा इसका पाठ " Epigraphy of Indica Volume 2 " में भी प्रकाशित हुआ है। इस अभिलेख की द्वितीय पंक्ति में मौर्यवंश की सूर्यवंश से उत्पत्ति का उल्लेख किया गया है तथा मनु और मान्धाता नामक सूर्यवंशी राजाओं का महिमामंडन किया गया है। अभिलेख में सूर्यवंश की उत्पत्ति तथा मनु मान्धाता का मौर्य गौरव के रुप में वर्णन करते हुए लिखा है[4] -

सुतः कश्यपोभू -- तदनु मनुरभूत्तत्द्युतात्सूर्यवंश:। विख्यात: सर्वलोकेष्वमल नृपगुणैरन्वित:कीर्तिधर्मौर्म्मान्धातुर्भूमिपालात्स कलगुणनिधेन्मौर्य वंशो

Waghali Inscription Line 2 By King Govindaraja Maurya


इस पंक्ति से मनु, मान्धाता, मोर्यवंश तथा सूर्यवंश का ऐक्य अथवा समानाधिकरण सिद्ध होता है। इसी अभिलेख में वाघली के अन्य मौर्यवंशी राजाओं के नाम भी हैं जैसे - कीकट मौर्य, तक्षक मौर्य, भीम मौर्य, गौविंदराज मौर्य आदि॥[5][6] अभिलेख में मौर्य प्रसाद में ब्राह्मणों को संरक्षण तथा जगह जगह भगवान शिव की स्तुति है जिसे तीसरी पंक्ति में भी देखा जा सकता है। अत: इस अभिलेख से सिद्ध होता है कि मौर्यवंशी सूर्यवंशी क्षत्रिय है ।[7]

  1. "South Indian Inscriptions". whatisindia.com. अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  2. "Ancient Temple & Jungle - Review of Patna Devi, Jalgaon, India". Tripadvisor (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  3. Indian Historical Quarterly, Vol-13, Issue no.-1-4.
  4. Burgess, Jas (1894). Epigraphia Indica Vol.2.
  5. Shastri, Ajay Mitra; Handa, Devendra; Gupta, C. S. (1995). Viśvambharā, Probings in Orientology: Prof. V.S. Pathak Festschrift (अंग्रेज़ी में). Harman Publishing House. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85151-76-2.
  6. Mahārāshṭra Rājya gêjheṭiara: Jaḷagāva Jilhā (मराठी में). Darśanikā Vibhāga, Mahārāshṭra Śāsana. 1989.
  7. Maṇḍāvā, Devīsiṅgha (1998). Kshatriya śākhāoṃ kā itihāsa. Kavi Prakāśana. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-86436-11-0.