वादिराज एक जैन आचार्य कवि दार्शनिक थे जिनका समय दसवीं शताब्दी माना जाता है। इनका जन्म दक्षिण मद्रास प्रान्त में हुआ था। इनके गुरु का नाम मतिसागर था। इन्होंने जैन धर्म की महती प्रभावना की । तत्कालीन चालुक्य वंश के राजा जयसिंह भी वादिराज के भक्त थे। इनकी निर्भीक धर्म प्रभावना हेतु इन्हें षट्तर्कषण्मुख, स्वादविद्यापति, जगदेकमल्लवादी आदि उपाधियों से विभूषित किया गया।

रचनाएँ संपादित करें

  • एकीभाव
  • पार्श्वनाथचरित्र
  • काकुत्थचरित्र
  • यशोधरचरित्र
  • यशोधरचरित्र
  • न्यायविनिश्चय विवरण
  • प्रमाणन्याय