वायकोम सत्याग्रह (1924–25), अस्पृश्यता की कुप्रथा के विरुद्ध त्रावणकोर (केरल) में चलाया गया था। इसका उद्देश्य निम्न जातीय एझवाओं एवं अछूतों द्वारा अहिंसावादी तरीके से त्रावणकोर के एक मंदिर के निकट की सड़कों के उपयोग के बारे में अपने-अपने अधिकारों को मनवाना था। सर्वप्रथम हिन्दू मंदिरों में प्रवेश तथा सार्वजनिक सड़कों पर अस्पृश्यों के चलने को लेकर त्रावनकोर के ग्राम ‘वायकोम’ में आंदोलन शुरू हुआ।

केरल में छूआछूत की जड़ें काफ़ी गहरी जमीं हुई थीं। यहाँ सवर्णों से अवर्णों को 16 से 32 फीट की दूरी बनाये रखनी होती थी। अवर्णों में में ‘एझवा’ और ‘पुलैया’ अछूत जातियाँ शामिल थीं। 19वीं सदी के अंत तक केरल में नारायण गुरु, एन. कुमारन, टी. के. माधवन जैसे बुद्धिजीवियों ने छुआछूत के विरुद्ध आवाज उठाई।

इस आन्दोलन का नेतृत्व एझवाओं के कांग्रेसी नेता टी. के. माधवन, के. केलप्पन तथा के. पी. केशवमेनन ने किया। ग्राम में स्थित एक मंदिर में 30 मार्च, 1924 को केरल कांग्रेसियों के एक दल ने, जिसमें सवर्ण और अवर्ण दोनों सम्मिलित थे, मंदिर में प्रवेश किया। मंदिर में प्रवेश का समाचार फैलते ही ब्राम्हणो व उच्च वर्णियों ने इस का उग्र विरोध किया। संगठन ‘योगक्षेम’ ने भी इस आंदोलन को समर्थन प्रदान किया। 30 मार्च, 1924 को के.पी. केशव के नेतृत्व में सत्याग्रहियों ने मंदिर के पुजारियों तथा त्रावनकोर की सरकार द्वारा मंदिर में प्रवेश को रोकने के लिए लगाई गई बाड़ को पार कर मंदिर की ओर कूच किया। सभी सत्याग्रहियों को गिरफ़्तार किया गया। इस सत्याग्रह के समर्थन में पूरे देश से स्वयंसेवक वायकोम पहुँचने लगे।

मार्च १९२५ में गांधी जी के नेतृत्व में त्रावणकोर की महारानी से मंदिर में प्रवेश के बारे में आंदोलनकारियों से समझौता हुआ।