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लेखन संबंधी नीतियाँ

आराधना है अपने ईश के रूप, स्वरूप, गुण, महिमा का निरंतर स्मरण, मन में दुहराव, जप, कीर्तन, मनन तथा मानसिक और भौतिक पूजन द्वारा अपने आराध्य से यह कृपा प्राप्त करने का यत्न कि उसके स्वरूप की दिव्यता के तत्व हमारे व्यक्तित्व को भरसक प्रकाशित करें, हमारे चरित्र को आलोकित करें और हमारे कार्यों व संकल्पों में झलकें। उद्देश्य यह कि हमारा संपूर्ण जीवन सांसारिक गतिविधियों में लिप्त रहता हुआ भी उस दैवी-दिव्यता से तृप्त रहे।

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