वार्ता:गुरु जम्भेश्वर

जाम्भोजी (संक्षिप्त जीवन परिचय) जन्म : वि. संवत् 1508 भाद्रपद बदी 8 कृष्णजन्माष्टमी को अर्द्धरात्रि कृतिका नक्षत्रमें (सन् 1451) ग्राम : पींपासर जिला नागौर (राज.) पिताजी : ठाकुर श्री लोहटजी पंवार काकाजी : श्री पुल्होजी पंवार(इनको प्रथम बिश्नोई बनाया था।) बुआ : तांतूदेवी दादाजी : श्री रावलसिंह सिरदार(रोलोजी) उमट पंवार ये महाराजा विक्रमादित्य के वंश की 42वीं पीढ़ी में थे। ननिहाल : ग्राम छापर (वर्तमान तालछापर) जिला चुरू (राज.) माताजी : हंसा (केसर देवी) नानाजी : श्री मोहकमसिंह भाटी (खिलेरी) सर्वविधित हैं कि गाँव पीपासर में १५०१ से १५०६ तक भीषण अकाल था। इस क्षैत्र के पुशओं तथा मनुष्यों का जीना मुश्किल हो गया था। गाँव के लोग पीपासर के ठाकुर लोहटजी के वहां इकट्टे हुए ,और कहीं गोवल जाने की तैयारी करने लगे | इतने में एक द्रोणापुर का एक राहगीर वहां से गुजर रहा था उसने पीपासर के लोगो को बताया की गाँव द्रोणापुर में बहुत अच्छी बरसात हुई हैं आप गोवल लेकर वहां चले जाएँ | यह समाचार सुनते ही नगर के सभी नर-नारी द्रोणापुर की और प्रस्थान कर दिया |लोहट जी द्रोणापुर के ठाकुर मोकमसिंह भाटी के वहां चले गए जो लोहट जी के ससुर थे इस प्रकार पीपासर के लोग वहां पर खुशी से रहने लगे तथा अपनी गायें चराने लगे |एक दिन की बात कि गाँव द्रोणापुर में भंयकर तूफान आने के कारण लोहट जी कि गायें बिछुड़ गई और रातभर बरसात के बाद सुबह प्रात: काल लोहट जी गायों को ढूढ़ने का विचार करके वहां से चल दिए ,थोड़ी दूर गए ही थे कि उनके सामने जोधा जाट अपने पुत्र के साथ खेत में बीज बोने जा रहे थे , तभी उनके सामने लोहट जी आ गए | लोहट जी को सामने आते देख कर जोधो जाट वापस अपने घर की ओर चल दिया | जोधे जाट को वापस जाते देख लोहट जी पूछा "म्हाने देख पाछो कइयां जावे "| तब जोधे जाट ने कहा कि लोहट जी एक तो आप गाँव के ठाकुर हो ,अत: जब बुवाई करने जाते वक्त अगर सर पर बिना पगड़ी के गाँव के ठाकुर मिल जाये तो सुगुन अच्छा नहीं माना जाता और दूसरी बात आप गाँव के जंवाई हो ,अत: बुवाई करने जाते समय अगर सामने अगर गाँव का जंवाई मिल जाये तो भी सुगुन अच्छा नहीं माना जाता | तीसरी बात आप बांज्या हो आपरे कोई संतान नहीं अगर बुवाई पर जाते समय बांज्या का मिलना भी अपसुकुन होता हैं जोधे के मुख से बांज्या सुनते ही लोहट जी के ह्रदय को गहरा आघात पहुंचा

जाम्भोजी (संक्षिप्त जीवन परिचय) जन्म : वि. संवत् 1508 भाद्रपद बदी 8 कृष्णजन्माष्टमी को अर्द्धरात्रि कृतिका नक्षत्रमें (सन् 1451)

ग्राम : पींपासर जिला नागौर (राज.)

पिताजी : ठाकुर श्री लोहटजी पंवार

काकाजी : श्री पुल्होजी पंवार(इनको प्रथम बिश्नोई बनाया था।)

बुआ : तांतूदेवी

दादाजी : श्री रावलसिंह सिरदार(रोलोजी) उमट पंवार ये महाराजा विक्रमादित्य के वंश की 42वीं पीढ़ी में थे।

ननिहाल : ग्राम छापर (वर्तमान तालछापर) जिला चुरू (राज.)

माताजी : हंसा (केसर देवी)

नानाजी : श्री मोहकमसिंह भाटी (खिलेरी)

इनकी जाति पंवार वंशीय राजपूत थी। इनके पिताजी का नाम लोहटजी था जो एक सम्पन्न व्यक्ति थे। इनकी माताजी का नाम हासांदेवी अर्थात हांसलदे था जिनके पिता का नाम मोकमजी भाटी था।श्री गुरु जम्भेश्वरजी भगवान अपने पिताजी के इकलोती संतान थे।सात वर्ष तक मौन रहकर बाल लीला का कार्य किया, । इसलिए इन्हें लोग गूंगा एवं गहला तक कहने लगे थे। मगर वे उस समय कुछ ऐसे कार्य कर देते थे जिसे देखकर लोग चकित रह जाते थे। इसके आधार पर कुछ लोगों ने अनुमान लगाया कि इसी कारण ये जाम्भा (या अचम्भाजी) भी कहे जाने लगे थे।

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