वार्ता:पद्मावत (फ़िल्म)

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लेखन संबंधी नीतियाँ

झूठ संपादित करें

इस पंने पर झूठ के ऊपर झूठ लिखा जा रहा है। इस लेख को पढ़कर लोग लगेंगे कि संपूर्ण देश इस मूवी का विरोध कर रहे है जबकि वास्तव में ये बस कुछ ही गुंडों की चाल है !!!!

माफ़ कीजिये, आप इस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग विकिपीडिया के मंच पर नहीं कर सकते।--प्रतीक मालवीय 10:55, 29 नवम्बर 2017 (UTC)उत्तर दें

किस प्रकार की शब्दावली गलत है?? और किस प्रकार की शब्दावली ठीक है?? कृप्या बता दीजिये । ~ चावला

इतिहास के साथ छेड़छाड़ संपादित करें

एक काल्पनिक पात्र की "ऐतिहासिकता" के साथ छेड़छाड़ करना तो असम्भव है। वैसे देश के नागरिकों की अभिव्यक्ति की आजादी कहां गयी?

""तटस्थ दृष्टिकोण"" संपादित करें

क़्वोट शुरु :::

वादों तथा विरोधों के इस दंगल में विरोध के और उग्र होने का सबसे अहम कारण बन गया है इतिहासकारों तथा कुछ विद्वानों द्वारा पद्मावती के अस्तित्व को नकार कर एक तरह से फिल्मकार के प्रति सहानुभूति प्रकट करना। विरोध करनेवालों की ओर से यह बात गौरतलब है कि यदि पद्मावती का ऐतिहासिक अस्तित्व प्रमाणित न भी हो तब भी क्या किसी राजपूत वंश के इतिहास में किसी वीरांगना राजपूतानी रानी के दरबार में नाचने जैसा एक भी उल्लेख उपलब्ध है? बल्कि संपूर्ण भारत के इतिहास में किसी राजवंश की किसी रानी के खुले दरबार में नाचने जैसा एक भी उल्लेख प्राप्त है क्या? भारतीय इतिहास में तो जब कभी किसी राजा ने किसी नर्तकी या अन्य अपेक्षाकृत निम्नस्तरीय मानी जाने वाली स्त्री से भी विवाह किया है तब उसका भी दरबारों में नाचना आदि सर्वथा बंद करा दिए जाने के अनेक उल्लेख प्राप्त हैं। यदि रानी पद्मिनी नहीं भी हुई हो तब भी रतन सिंह की कोई तो रानी होगी और घटना वैसी न भी हो तब भी किसी ऐतिहासिक आधार पर बनी फिल्म या किसी कलामाध्यम में कोई ऐसी मनमानी छूट ली जा सकती है क्या? इतिहासकारों को पद्मावती का अस्तित्व नकारने की अपेक्षा जिम्मेदारीपूर्वक टिप्पणी करने की आवश्यकता भी निष्पक्ष इतिहास की ही मांग सिद्ध होती है

इस बीच यह विवाद तथा विरोध किसी दलविशेष से आगे बढ़कर विभिन्न दल के नेताओं तथा जनसामान्य के बड़े हिस्से से जुड़ चुका है।[11] अनेक राज्यों की जनता खुलेआम विरोध-प्रदर्शन कर चुकी है। चार मुख्यमंत्रियों के बाद अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी वर्तमान स्थिति में बिहार में फिल्म रिलीज़ न होने देने की बात कही है।[12] सीएम नीतीश का इस बाबत कहना है, “पद्मावती पर कई लोग लगातार सवाल उठा रहे हैं। फिल्म के निर्देशक को इस पर अपना रुख साफ करना चाहिए। तब तक के लिए फिल्म बिहार में नहीं दिखाई जाएगी।” सीएम ने आगे यह भी कहा, “रानी पद्मावती को इसमें नाचते हुए नहीं दिखाया जाना चाहिए था।” सीएम नीतीश के इस बयान का बिहार के कला, संस्कृति, खेल और युवा मंत्री कृष्ण कुमार ऋषि ने समर्थन किया है। उन्होंने कहा, “फिल्म से जब तक आपत्तिजनक सींस नहीं हटा लिए जाते, तब कर हम इसे राज्य में रिलीज होने की अनुमति नहीं देंगे।”[13]

क़्वोट बंद :::


क्या ये किसी तटस्थ दृष्टिकोण के अनुसार बिलकुल ठीक है ??

पहला पैराग्राफ किसी भी दृष्टिकोण से तटस्थ नहीं कहा जा सकता। धन्यवाद!--प्रतीक मालवीय 10:59, 29 नवम्बर 2017 (UTC)उत्तर दें

तो क्या आप मान रहें हैं की दूसरे पैराग्राफ मे दृष्टिकोण है? उसका क्या करना? जब आपके अनुसार सुप्रीम कोर्ट के फैसले तटस्थ दृष्टिकोण का उल्लंघणा है~ चावला

आपने जो शब्द (जैसे गुंडे) प्रयोग किये उसके कारण आपने संपादनों को हटाया गया। आपको लेख में सभ्य भाषा का प्रयोग करना चाहिये।--प्रतीक मालवीय 11:14, 29 नवम्बर 2017 (UTC)उत्तर दें

असभ्य लोग के लिये असभ्य शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिये। और सुप्रीम कोर्ट का क्या??

ये सारे टिप्पणी :::

क़्वोट शुरु :::

विरोध करनेवालों की ओर से यह बात गौरतलब है कि

क़्वोट बंद :::

और इन सारे प्रश्नों का क्या? ये ""तटस्थ दृष्टिकोण"""" है क्या?? यह किसी व्यक्ति का दृष्टिकोण है!!!

क़्वोट शुरु :::

यदि पद्मावती का ऐतिहासिक अस्तित्व प्रमाणित न भी हो तब भी क्या किसी राजपूत वंश के इतिहास में किसी वीरांगना राजपूतानी रानी के दरबार में नाचने जैसा एक भी उल्लेख उपलब्ध है? बल्कि संपूर्ण भारत के इतिहास में किसी राजवंश की किसी रानी के खुले दरबार में नाचने जैसा एक भी उल्लेख प्राप्त है क्या?

क़्वोट बंद :::

परंतु आप कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला (देश की स्वतन्त्र कानूनव्यावस्था से ही दृष्टिकोण) तटस्थ दृष्टिकोण नही है?? वो कैसा?????

चावला

क़्वोट शुरु::: अनेक राज्यों की जनता खुलेआम विरोध-प्रदर्शन कर चुकी है। क़्वोट बंद:::

इसका कोई प्रमाण नहीं है यह संपूर्णतः असत्यता है। अनेक राज्यों की जनता वास्तविक जीवन की समस्याओं से निपट रहें हैं। एक छोटी मोटी मूवी के ऊपर विरोध-प्रदर्शन नहीं कर रहैं हैं हमारे देश की जनता।

इतिहासकारों के विचार संपादित करें

अगर करनी सेना जैसे असभ्य गुंडों के विचार पन्ने में समाविष्ट होने के लिए योग्य है तो व्यावसायिक इतिहासकारों के विचार भी पन्ने में समाविष्ट होने के लिए योग्य है । आखिर तो अगर ये लोग इतिहास के बारे में शिकायत कर रहे हैं तो प्रख्यात तथा प्रतिष्ठित इतिहासकारों (जो वास्तविक इतिहास जानते हैं ) की प्रतिक्रिया सुननी पड़ेगी । हमारे समाज के भिज्ञ सदस्यों की आवाज्ओं को मौन करने का प्रयास मत करीये और अनभिज्ञ और पागल गुंडों की आवाजो को बढावा मत दिजीये! !!!!

प्रतीक मालवीय ने सम्पूर्णतः अनुचित कार्य किया

एक लोकतांत्रिक समाज में निर्दोष निर्देशकों के सिर कलम कर देने की धमकियां अवैधानिक नहीं है क्या? एक निरपराध अभिनेत्री के नाक काटने की धमकी अब स्वीकार्य बण गयै है ? ? ये क्या हो रहा हैँ मालवीय

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