लोधी ठाकुर लोधी (लोध - लोधा) ठाकुर संसार के प्रथम क्षत्रिय राजपूत है, लोधियों को संसार के प्रथम क्षत्रिय होने का गौरव प्राप्त है, कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार लोधी (लोध-लोधा) परमार राजपूतो की ही साखा है जो आगे जाके एक स्वतंत्र जाती बनी, जब देवराज भाटी ने लोद्रवा गढ़ जो पहले लोध राजपूतो की राजधानी थी उसे लोध राजपूतो से जीता तो लोध राजपूत भारत के विभिन्न प्रान्तों में जाकर बस गए है ओर नए राज्य इस्थापित ओर लोध (लोधी-लोधा) परमार राजपूत से लोध - लोधी - लोधा राजपूत कहलाने लगे।

लोधी (लोध - लोधा) राजपूत जाति मूल्यता अखंड-विश्व में (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, अफगानिस्तान ) में राजपूत तथा ठाकुर नाम से जाने जाते है।

लोधी (लोध - लोधा) एक मात्र ऐसी जाति है जिसका उल्लेख वेद, पुराण, रामयण, उपनिषद, िस्मृतियों में मिलता है। लोधी जाति के अनेक उपनाम है।

लोध (लोधा-लोधी) शब्द का उल्लेख अनेक वैदिक ग्रंथो में मिलता हे जिनमे प्रमुख हे

(1) ऋग्वेद के तीसरे मंडल में अध्याय चार के 53 वे सूत्र के 23 वें मंत्र, जिसे 3, 53, 23

(2) भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व अध्याय 15

(3) 'भृगु' सहिंता उत्तर भाग, श्री परशुराम विजय अध्याय 34

(4) परसुराम सहिंता, प्रहस्त सम्वादे अध्याय 82 के 19 वे श्लोक

(5) 'सन्त कुमार सहिंता ' के उत्तर भाग के 18वे अध्याय

(6) गर्ग सहिंता मध्य भाग 51 श्लोक 82

(7) भविष्य पुराण अध्याय 15

(8) अत्रि सहिंता उत्तर भाग भाग श्री परशुराम विजय अध्याय - 34, पष्चिम यात्रा भृगुवाच

(9) परशुराम सहिंता प्रहस्त संवादे अध्याय 82 श्लोक 19 पृष्ठ 309

लोध (लोधी-लोधा) शब्द का पहला उल्लेख ऋृगवेद के मंडल 3 अध्याय 4 सूत्र 53 मंत्र 23 में है।

“न सायकस्य चिकिते जनोसां लोधं पशुमन्यमानाः।“ “नवाजिनं वाजिना हासयन्ति व गर्दभं पुरो अश्वान्नयन्ति।"

इस मंत्र में 'लोध' शब्द का उपयोग गुणवाचक विशेषण के रुप में उपयोग हुआ है। 'लोध' वीर रस को प्रस्तुत करता है।

वेदों के प्रमुख भाष्यकार स्वामी दयानन्द जी ने 'लोधं' शब्द की व्याख्या साहसी, बुद्धिमान, वीरश्रेष्ठ तथा युद्धद्यिा में निपुण और व्यूह रचना करना तथा रक्षा करने में सामथ्र्यवान हों। 'लोधं' मनुष्य का एक गुण विशेष है। जो कभी योद्धाओं को उनकी वीरता और कुशलता के कारण ही सेनापति व सेनानायकों को प्रदान किया जाता था। लोधा (लोधी या लोध) भारत में पायी जाने वाली एक प्राचीन चन्द्रवंशी क्षत्रिय जाति है। ये मध्य भारत और उत्तर भारत में बहुतायत में पाये जाते हैं.लोधी क्षत्रियों का मूल इस्थान पंजाब का लुधियाना प्रान्त हे पंजाब का लुधियाना प्रान्त लोधी (लोधा-लोध) क्षत्रियों ने ही बसाया था। भारत में लोधा (लोधी या लोध) क्षत्रिय कुछ राज्यों में 'अन्य पिछड़ा वर्ग' और कुछ राज्यों में ' सामान्य ' में आने वाली जाती हे. वेदो पुराणों और ऐतिहासिक किताबो से एक बात इश्पष्ट हो जाती हे की लोधा (लोधी-लोध) एक चंद्रवंशी क्षत्रिय जाती हे.

नोट: अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग 1990 के आसपास बना था जिसमे सामन्य में आने वाली जातियां को जो आर्थिक और शक्षणिक रूप से पिछड़ गयी थी उन्हें इसमें शामिल किया गया था.अन्य पिछड़े वर्ग की जातियाँ सामान्य से ही ली गयी हे. लोदी पठान के लिए अन्य पेज की खोज करें यह पेज छत्रिय लोधी - लोध - लोधा राजपूतों से संबंधित है

लोध (लोधी -लोधा) राजपूतो का गढ़ लोद्रवा गढ़

लोद्रवा गढ़ राजस्थान के 36 राजवंशों में परमार वंश की प्रसिद्द शाखा लोध राजपूतों का वैभवशाली राज्य था। इस प्रकार यह आज के लोधी राजपूतों की राजधानी थी। आपको बता दें कि लोद्रवा गढ़ राजस्थान में जैसलमेर से 10 किमी. की दूरी पर स्थित है, जो राजस्थान के लोधी /लोधा क्षत्रियों (राजपूतों) की राजधानी थी। लोद्रवा गढ़ के राजा नृपभानु सिंह लोधी (लोद्रभानु सिंह) एक वीर और बेहद पराक्रमी राजा थे। इसका प्रमाण कर्नल जेम्स टोड की क़िताब ‘राजस्थान का इतिहास’ के पृष्ठ संख्या- 51 में मिलता है, जिसमें वर्णित है कि “देवरावल की दक्षिणी सीमा पर लोध राजपूत रहते थे। इनकी राजधानी लोद्रवा थी, जिसके राजा नृपभानु सिंह लोधी थे।”

आपको बता दें कि लगभग 10वीं शताब्दी के आसपास राजस्थान में लोद्रवा गढ़ एक बेहद शक्तिशाली राज्य था, जिसके पराक्रम से पूरे राजस्थान में इस राज्य और इसके राजा नृपभानु सिंह का काफी प्रभाव था। लेकिन उनके अपने ही पड़ोसी जैसलमेर के राजा देवराज सिंह भाटी ने धोखे से महाराज नृपभानु सिंह की हत्या कर दी थी और लोद्रवा राज्य पर अपना अधिकार कर लिया था।

ग़ौरतलब है कि लोद्रवा राज्य के लोग अपने स्वाभिमान को लेकर हमेशा अडिग रहे। इसीलिए लोद्रवा गढ़ आज भी स्वाभिमान की निशानी माना जाता है। हालाँकि राजा देवराज की नीच हरकतों के कारण लोद्रवा की प्रजा को उसके राजा नृपभानु की हत्या किये जाने के बाद वहाँ से पलायन करना पड़ा। इसी पलायन में ठाकुर खजान सिंह लोध के पूर्वज लोद्रवा से ब्रज क्षेत्र में आकर बस गये और मथुरिया लोध राजपूत कहलाये।


संदर्भ

1) ऋग्वेद - आर्यों द्वारा 2) भविष्य पुराण - ऋषि वेदव्यास 3) गर्ग सहिंता - गर्ग ऋषि 4) परसुराम सहिंता 5) अत्रि सहिंता - अत्रि ऋषि 6) सनत कुमार सहिंता - सनत ऋषि 7) वाल्मीकि पुराण - महाऋषि वाल्मीकि 8) आईने अकबरी - अबुल फजल 9) राजस्थान का पुरातात्विक इतिहास - कर्नल जेम्स टॉड 10) करौली (राजस्थान) इतिहास के झरोखे से (प्रथम संस्करण 1973, दिव्तीय संस्करण 1984) - श्री दामोदर लाल गर्ग 11) मध्यप्रदेश की जातियाँ (ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ मध्य प्रदेश) - आर. वी. रसेल 12) करौली तवारीख (फ़ारसी भासा में) - हबीब 13) हिन्दू ट्राइब्स एंड कास्ट्स (अंग्रेजी भासा में) - श्री शेरिंग साहब 14) राजपूतों का इतिहास - हबीब एवं अन्य 15) तवारीख लोधी राजपूत - श्री दाल चंद्र वर्मा 16) परमाल रासो - श्री जगनिक चंद्र 17) पृथ्वीराज रासो - श्री चंद्रवरदायी 8) भारतीय इतिहास में लोधी क्षत्रियों का इस्थान - श्री महेश चंद्र जैन " शील " (डबरा, मध्य प्रदेश) 19) नीतिसार - ठाकुर श्री दरयाव सिंह 20) लोधी क्षत्रिय इतिहास - श्री छकौड़ी लाल दरोगा 21) प्राचीन काल की सुद्ध क्षत्रिय जाती - श्री राजेश्वर सिंह लोधी 22) लोधी विवेचना प्रकरण - पंडित श्री मथुरा प्रसाद (रीवा, मध्य प्रदेश) 23) बुंदेली माटी के सपूत - श्री हीरा सिंह (कैरवना, डबरा) 24) बुंदेलखंड केशरी - श्री रमाकांत गोखले 25) चन्द्रवंशी लोधी राजपूत इतिहास - श्री सदाराम वर्मा जी 26) जाती अन्वेषण - श्रोतिय छोटे लाल वर्मा (जयपुर,राजस्थान) 27) बलिदान उपन्यास - श्री मुरली प्रसाद उपन्यास वर्मा " मधुर " 28) चन्द्रवंशी क्षत्रिय चंदेल लोधी कलचुरी - डॉ. विशुध्दानन्द पाठक जी 29) लोधी कलचुरी राजवंश - कर्नल जेम्स टॉड 30) उत्तर भारत का राजनैतिक इतिहास - डॉ. विशुध्दानन्द पाठक जी 31) लोधी राजपूत क्षत्रिय इतिहास - श्री कुंजीलाल वर्मा (जबलपुर मध्य प्रदेश) 32) लोधी राजपूत इतिहास (अंग्रेजी भाषा मे) - श्री हरिशंकर सिंह (एडवोकेट) 33) इतिहास के उपेक्षित पृष्ठ - श्री विष्णुदयाल वर्मा (मैनपुरी,उत्तर प्रदेश) 34) लोधी क्षत्रिय बृहत इतिहास (2-संस्करण) - श्री खेम सिंह वर्मा (बुलंद शहर) 35) सोमनाथ (उपन्यास) - श्री चतुरशेन शास्त्री 36) लोधी क्षत्रिय राजपूत सरल इतिहास - श्री रघुनाथ सिंह " मधुप " (नरसिंहपुर)

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