तेल या तैल बहुत व्यापक शब्द है। इसके अंतर्गत अवाष्पशील वानस्पतिक तैल, जो वसाम्लों के ग्लिसराइड होते हैं; तथा वाष्पशील पेट्रोलियम तैल भी, जो हाइड्रोकार्बन वर्ग के यौगिक होते हैं, आते हैं। यहाँ वाष्पशील तैल का तात्पर्य उन वाष्पशील तैलों से है, जो वनस्पतिजगत्‌ से प्राप्त होते हैं या प्रयोगशालाओं में कृत्रिम रीति से तैयार होते हैं। इन वाष्पशील तैलों को गंधतैल (essential oils) भी कहते हैं। अनेक पादपों में यह वाष्पशील तैल बड़ी अल्प मात्रा में पाया जाता है।

चन्दन का तेल

उपस्थिति

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पौधों के लगभग ८७ परिवारों में वाष्पशील तैल पाया जाता है। यह पौधों के फूलों, कलियों, पत्तों, धड़ों, जड़ों, फलों और बीजों में पाया जाता है। कभी कभी पौधों के विभिन्न भागों से विभिन्न प्रकार के तैल निकलते हैं। उदाहरणस्वरूप नारंगी के फूल से नैरोली तेल, छिलके से नारंगी तेल और पत्ते से एक तीसरे प्रकार का नारंगीपत्ता तेल प्राप्त होता है। वाष्पशील तैल की प्रकृति बहुत कुछ उत्पादन स्थान की मिट्टी और जलवायु पर निर्भर करती है। किसी किसी स्थान का गंधतैल बहु उत्कृष्ट कोटि का होता है। कुछ पदार्थों में गंधतैल असंयुक्तावस्था में रहता है, कुछ में ग्लाइकोसाइड रूप में और कुछ में दोनों रूपों में। ग्लाइकोसाइडों में गंध नहीं होती। उनके विघटन से ही गंध उत्पन्न होती है। तीते बादाम के तैल में ऐमिगडैलिन, सरसों के तैल में सिनिगिन और विंटरग्रीन तैल में गौथेरिन नामक ग्लाइकोसाइड रहते हैं। जल के संपर्क में आने पर ही एंज़ाइम की क्रिया से गंधतैल उन्मुक्त होते हैं।

वर्गीकरण

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दवना का तेल

उपयोग की दृष्टि से वाष्पशील तैल तीन वर्गों में विभक्त किए जा सकते हैं :

  • १. वाष्पशील तैल, जो सुगंध के लिये साबुन, केशतैल इत्यादि अंगरागों में प्रयुक्त होते हैं;
  • २. वाष्पशील तैल, जो स्वाद के लिये खाद्यों और पेयों में प्रयुक्त होते हैं तथा
  • ३. वाष्पशील तैल, जो औषधियों में प्रयुक्त होते हैं।

निर्माण की दृष्टि से वाष्पशील तैलों को पाँच वर्गों में विभक्त करते हैं :

  • १. आसवन से,
  • २. निचोड़ से,
  • ३. विलायकों से,
  • ४. प्रतिधारा निष्कर्षण से, और
  • ५. आन्फ्लराज (enfleurage) से प्राप्त वाष्पशील तैल।

तुरंत के आसुत वाष्पशील तैल सामान्यत: वर्णरहित से लेकर हल्के पीले रंग तक के होते हैं, पर बाह्य पदार्थों के कारण इनका रंग लाल से लेकर नीले रंग का हो सकता है। रखने से रंग धीरे धीरे गाढ़ा होता जाता है। इनमें गंध होती है, जो पेड़ की गंध से मिलती जुलती है। वाष्पशील तैल जल में प्राय: अविलेय, या अल्प विलेय, होते हैं, पर ऐल्कोहल, ईथर, वसा और खनिज अम्लों में घुल जाते हैं। ये सामान्यत: द्रव होते हैं, पर कुछ समय तक रखे रहने पर ठोस निक्षेप निकल आते हैं। इनका विशिष्ट घनत्व ०.८५ से लेकर १.१८ तक और वर्तनांक ऊँचा होता है। अधिकांश ध्रुवित प्रकाश के तल को घूर्णित करते हैं। सामान्य ताप पर भी ये उड़ जाते हैं, गरम करने पर तो श्घ्रीा उड़ जाते हैं। ये कागज पर दाग नहीं छोड़ते, जब कि ग्लिसिराइड तैल कागज पर धब्बे छोड़ जाते हैं।

अधिकांश वाष्पशील तैलों में टरपीन वर्ग के हाइड्रोकार्बन रहते हैं (देखें टरपीन)। कुछ में तो हाइड्रोकार्बन की मात्रा ९५ प्रतिशत तक रहती है, पर अधिकांश में ८५ से लेकर ९० प्रति शत तक, कुछ में बहुत कम और कुछ में बिलकुल नहीं रहती। हाइड्रोकार्बनों के अतिरिक्त इनमें ऐल्डीहाइड, ऐल्कोहल, एस्टर, कीटोन, फीनोल, आक्साइड और लैक्टोन रहते हैं। कुछ में नाइट्रोजन और गंधक के भी यौगिक पाए जाते हैं।

संश्लिष्ट वाष्पशील तैल

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ऐसे तैलों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता सकता है -- एक वे तैल जो प्राकृतिक तैलों से पृथक्‌ किए जाते है। इन्हें आइसोलेट (Isolates) कहते हैं। ऐसे तैलों में पिपरपिंट तैल से पृथक्‌ किया मेंथोल और यूकेलिप्टस से पृथक्‌ किया सिनियोल है। दूसरे वे तैल हैं, जो रासायनिक विधियों से आइसेलेटों से तैयार किए जाते हैं। ऐसे तैलों के उदाहरण स्फ्रैॉल तैल से निकला पिपरेनोल और सैलिसिलिक अम्ल से प्राप्त मेथाइल सैलिसिलेट हैं। अनेक संश्लिष्ट वाष्पशील तैल प्राकृतिक संगठन से बिलकुल मिलते जुलते हैं, पर अनेक ऐसे भी हैं जो प्राकृतिक संगठन में मिलते जुलते नहीं, पर गंध और स्थिरीकरण गुण में समानता रखते हैं। ऐसे तैल बादाम के संश्लिष्ट तैल और अनेक प्रकार की संश्लिष्ट कस्तूरियाँ हैं।

वाष्पशील तैल सुवास, आस्वाद और औषधों में व्यापक रूप से प्रयुक्त होते हैं। कुछ में जीवाणुनाशक, कुछ में पीड़ापहारी और कुछ में रोगनिरोधक गुण होते हैं। तारपीन के तैल सदृश कुछ वाष्पशील तैल पेंट और वार्निश में प्रचुर मात्रा में प्रयुक्त होते हैं। काच और पोर्सिलेन के पात्रों को पेंट करने में लैवेंडर और स्पाइक तेल (spike oil) सदृश तैल व्यवहृत होते हैं।

सुवास के लिये प्रयुक्त होनेवाले तैलों में बरगेमोट, जिरेनियम, लैवेंडर, नारंगीपुष्प, नारंगीपत्र, पचौली, गुलाब, रोज़मरी तथा य्लांग य्लांग तैल प्रमुख हैं। आस्वाद के लिये प्रयुक्त होनेवाले तैलों में तेजपात, लौंग, अदरक, नीबू, नारंगी, सौंफ, धनियाँ, जीरा आदि के तैल हैं। औषध में प्रयुक्त होनेवाले तैलों में तारपीन, कपूर, मेंथोल, यूकेलिप्टस, रोज़मरी लौंग, जायफल, दालचीनी, नीबू, अदरक, इलायची, लैवेंडर, पिपरमिंट, सौंफ, धनियाँ, जीरा, सोआ (dill), टोलूबालसम, शिलाजीत, कबाब-चीनी इत्यादि के तैल प्रमुख हैं।