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सिंधी साहित्य में वासदेव मोही को आधुनिक सिंधी काव्य का जनक माना जाता है, जिन्होंने सिंधी ग़ज़ल को जनता के बीच लोकप्रिय बनाया । उन्हें भावों की स्पष्टता, विचारों की सच्ची गहराई और प्रोसोडी पर मजबूत पकड़ के लेखक के रूप में जाना जाता है।
वासदेव मोही सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह बर्फ जो ठहेयलु के लिये उन्हें सन् 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1]
वासदेव मोही का जन्म 1944 में ब्रिटिश भारत (आधुनिक पाकिस्तान में) के मीरपुर खास में हुआ था। भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन के बाद , उनका परिवार 1947 में जोधपुर चला गया। बाद में वे 1950 में अहमदाबाद चले गए । उन्होंने नवंबर 1964 में जानकी से शादी की।
उन्होंने गुजरात विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री हासिल की और 1966 में जीवन बीमा निगम में शामिल हो गए । बाद में वे संयुक्त अरब अमीरात चले गए और 1987 में द इंडियन हाई स्कूल, दुबई में अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया तथा 2004 में वहां से व्याख्याता के रूप में सेवानिवृत्त हुए। अपनी सेवानिवृत्ति से पहले, उन्होंने अंग्रेजी विभाग के प्रमुख के रूप में भी कार्य किया।[2]
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1999) - बर्फ जो थाहयाल पर;
- किशनचंद बेवास पुरस्कार-गुजरात साहित्य अकादमी (1995)- मनकू पर;
- नारायण श्याम पुरस्कार- बर्फ जो थाहयाल पर;
- सिंधी साहित्य अकादमी, गुजरात राज्य अनुवाद पुरस्कार (2010)- अंतराल पर;
- एनसीपीएसएल (एचआरडी मंत्रालय एनडी) साहित्यकार सम्मान लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2010),
- प्रियदर्शनी अकादमी साहित्य पुरस्कार (2011),
- सिंधी अकादमी, दिल्ली का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार (2011),
- गंगाधर मेहर राष्ट्रीय पुरस्कार (2012)[3]