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- पिता ने अपने बेटे को कठीन परिश्रम करके पढ़ाया लेकिन जब नोकरी की उम्मीद जगी तब खुशी हुई लेकिन अपने उसी कलेजे के टुकड़े की हत्या होने पर सभी अरमानौ पर फिरा पानी*
- बाड़मेर* जानकारी के मुताबिक बाड़मेर में एक परिवार में बेटे की कोलेज में हत्या हुई । जिसकी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं परिवार के सपनों पर फिरा पानी परिवार वालों का रो रो कर बुरा हाल। परिवार की सासन प्रषासन से मांग है कि हमारे बेटे की निष्पक्ष जांच कर कानूनी कार्रवाई की जाये। परिवार ने संवाददाता को जानकारी देकर बताया कि पढ़ाई ये एक पिता का अधूरा सपना जो अपने बेटे बेटियों को कम संसाधन व विपरीत परिस्थितियों के बाबजूद भी दिन रात कड़ी मेहनत करके काबिल बनाने की कोशिश करता है और काबिल बनाता है लेकिन उसके अरमानों पर पानी तब फिर जाता है जब उसके बड़े बेटे लोकेन्द्रकुमार सिंह की MBBS में प्रथम वर्ष अध्यनरत अटल बिहारी वाजपेई मेडिकल कॉलेज बेंगलोर कर्नाटक में कालेज होस्टल प्रशासन की लापरवाही वह साथी छात्रों द्वारा हत्या की जाती है सिर्फ इसलिए की वह वह अनूसूचित वर्ग का था सिर्फ इसलिए कि वह स्वाभिमान से पढ़ना चाहता था सिर्फ इसलिए कि वह डाक्टर बनकर अपने पिता समाज का नाम रोशन करना चाहता था जो उन हत्यारों को रास नहीं आया उसकी हत्या कर दी बेबस पिता जो अपने बेटे को डाक्टर बनाने के लिए इतनी दूर भेजता है लेकिन उन्हें क्या पता था MBBS की डिग्री जगह उन्हें अपने बेटे की लाश दी जाती हैं कि धरती पर सबसे बड़ा बोझ एक पिता के कंधे पर बेटे की अर्थी होती है । पिता ने भी उस दर्द को बहुत मजबूती से सहा। कहते हैं पुरुष का दिल पत्थर सा मजूबत होता है। हमने महसूस किया है कि पिता का दिल पत्थर का नहीं होता है. हां वह खुद को पत्थर मजबूत दिखाने का दिखावा जरूर करते हैं ताकि बाकी के घरवाले कमजोर न पड़ें. एक पिता अपने बच्चों के लिए वह सब कुछ करता है जो कर सकता है.
पिता ने भी वह सबकुछ किया अंदर टूटकर कर भी मजबूती
से खड़ा रहा दुःख को बाहर नहीं निकाला
जब पिता को फ़ोन आया उसका पुत्र इस दुनियां में नहीं रहा तब उसके पास कोई नहीं था सिवाय पत्नी के अब किसके सामने रोएं किसे बताएं अपनी पीड़ा दोनों पति पत्नी अकेले परिवार में कोई साथ नहीं बुजुर्ग माता-पिता भाई का परिवार उदयपुर में छोटे दो बच्चे ननिहाल दों बच्चे सीकर सारा परिवार बिखडा़ हुआ उस पर इतनी बड़ी अनहोनी हो जाती है बेट की लाश खुद से 2000 किलोमीटर दूर ऐसे मुश्किल समय में खुद को केसे संम्भाले एक जगह बैठकर रो भी नहीं सकते बच्चे दूर उनको घर लाना कहीं उन्हें वहां पर सूचना मिल गई तो उन मासूम बच्चों के साथ किया बितेंगी बीमार माता पिता को घर लाना बच्चे की लाश को बेंगलोर से घर लाना क्या करें अन्दर से शरीर हिम्मत सबने मना कर दिया दिमाग में कुछ सुझ नहीं रहा था क्या हुआ केसे हुआं क्या करें पत्नी पास में रो रही थी कुछ तो निर्णय लेना होना इसे बाहर निकलकर बेटे की बाड़ी को ससम्मान बेंगलोर से घर लाना था परिवार बच्चों को भी एक जगह लाना है इसलिए पत्नी के पास जाकर बेंगलोर से लोकेन्द्रसिंह की बाड़ी लाने को कहां कोई साथ में कोई नहीं अकेले पत्नी को किसके पास छोड़े कर जाएं पत्नी भी पति को अकेले जाने नहीं दे रहीं थी अकेले यह केसे जायेंगे खुद को केसे सम्भाल पाएंगे दोनों किसी को अकेले छोड़ नहीं पा रहा न था माता पिता को बताए वह बीमार ऊपर से पांच सौ किलोमीटर दूर वहां इस घटना से अपने आप को केसे संभालेंगे दोनों पति-पत्नी ने साथ में जाकर अपने बेटे की बाड़ी लाने का निर्णय किया बाकी सब को इस दुखद ख़बर दूर रखने जब तक लोकेन्द्रसिंह की बाड़ी घर नहीं लाते तब तक खुद को सम्भाल के रखेंगे रोएंगें नहीं जो कल अपना था वह बस यादें बनकर रहें गया
सपना टूटा अब बस एक याद बनकर रहे गया.... फिर भी हमारा समाज खामोश अपनी बारी के इन्तजार में रहता है ! हमने डेल्टा रोहित डॉ पल्लवी से क्या सीख मिलती है और अब लोकेन्द्रसिंह आखिर कब तक हमें हमारे बच्चों की डिग्री की जगह लाशें मिलेगी।आखिर कब तक सरकार के भ्रष्ट सिस्टम की वजह से अपने बच्चों के न्याय के लिए दर दर की ठोकरें खायेंगे।
डॉ लोकेन्द्रकुमार सिंह का जन्म 1 सितंबर 2002 को अमित कुमार धनदे के घर हरसाणी बाड़मेर ( राजस्थान) में हुआ था लम्बे समय के बाद परिवार में एक बच्चे का जन्म होने के कारण लोकेन्द्रसिंह सिंह को दादा दादी माता पिता चाचा बुआ आदि का अति स्नेह और प्यार मिला लोकेन्द्रसिंह बचपन से ही एक मेघावी छात्र रहा इसलिए गांव अच्छी शिक्षा ने होने के कारण अमित कुमार ने परिवार सहित गांव छोड़कर बाड़मेर शिफ्ट हो गए लोकेन्द्रसिंह की प्रारम्भिक शिक्षा थार पब्लिक स्कूल बाड़मेर से हुई! 10 में लोकेन्द्रसिंह का एडमिशन मार्डन स्कूल बाड़मेर में किया ओर 11 वी 12 वी स्वामी विवेकानन्द स्कूल चूली से की। 12 वी अध्यनरत के दौरान उसने अपना लक्ष्य मेडिकल क्षेत्र में जाने का तय कर दिया था।12 वी के साथ बगैर कोचिंग नीट की तैयार शुरू कर दी थी प्रथम प्रयास में कुछ नम्बरों से रहे गया लेकिन निराश नहीं हुए फिर से पुर्ण जोश के साथ एलन कोचिंग सेंटर सीकर से नीट की तैयारी शुरू की और वह अच्छी रैंक के साथ उसका नम्बर आया। गांव परिवार समाज में खुशी का माहौल था। गाजे बाजे के साथ लोकेन्द्रसिंह का गांव में स्वागत हुआ।गांव का अनूसूचित जाति का पहला लड़का था जिसका MBBS में सलेक्शन हुआ था सब लोग उत्साहित थे अमित कुमार ने बाकी बच्चों का भी एडिशन सीकर में करवा दिया समय के साथ लोकेन्द्रसिंह को मिर्जापुर उत्तर-प्रदेश में काॅलेज मिली लम्बी दूरी क्षेत्र के कारण वापस काउंसलिंग करवाई तो सरकारी मेडिकल कॉलेज अलवर मिल गई। वहां पर लोकेन्द्रसिंह का जाने का मन नहीं था दक्षिण कर्नाटक राज्य से तैयारी करना चाहता था। उसके बाद बल्लारी से अन्त में अटल बिहारी वाजपेई मेडिकल कॉलेज बेंगलोर कर्नाटक मिल गई। बडी खूशी से उसके मम्मी पापा बेंगलोर छोड़कर आयें है इस आश के साथ की हमारा बेटा एक दिन बड़ा डाक्टर बनके घर आयेगा। लेकिन समय की नजाकत ने पासा पलटा उनका उस दिन के बाद मिलना भी नसीब न हुआ। एक पिता पर उस समय क्या बीती जब कालेज से जवान बेटे की लाश के लिए काॅल आया। एक पिता का अपने बेटे को डाक्टर बनाने का सपना अधूरा रह गया।