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‌कस्तूरबा "बा" जिसने मोहनदास करमचंद को बनाया "गांधी से महात्मा गांधी" ‌ ‌कस्तूरबा गांधी (1869-1944), महात्मा गांधी की पत्नी जो भारत में बा के नाम से विख्यात है। कस्तूरबा गाँधी का जन्म 11 अप्रैल सन 1869 ई. में महात्मा गाँधी की तरह काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था। इस प्रकार कस्तूरबा गाँधी आयु में गाँधी जी से 6 मास बड़ी थीं। कस्तूरबा गाँधी के पिता 'गोकुलदास मकनजी' साधारण स्थिति के व्यापारी थे। गोकुलदास मकनजी की कस्तूरबा तीसरी संतान थीं। उस जमाने में कोई लड़कियों को पढ़ाता तो था नहीं, विवाह भी अल्पवय में ही कर दिया जाता था। इसलिए कस्तूरबा भी बचपन में निरक्षर थीं और सात साल की अवस्था में 6 साल के मोहनदास के साथ उनकी सगाई कर दी गई। तेरह साल की आयु में उन दोनों का विवाह हो गया। बापू ने उन पर आरंभ से ही अंकुश रखने का प्रयास किया और चाहा कि कस्तूरबा बिना उनसे अनुमति लिए कहीं न जाएं, किंतु वे उन्हें जितना दबाते उतना ही वे आज़ादी लेती और जहाँ चाहतीं चली जातीं। ‌ ‌अगर हम भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात करें तो हमारे मस्तिष्क में अनेकों महिलाओं का नाम प्रतिबिंबित होता है पर वो महिला जिनका नाम ही स्वतंत्रता का पर्याय बन गया है वो हैं ‘कस्तूरबा गाँधी’ ‘बा’ के नाम से विख्यात कस्तूरबा राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की धर्मपत्नी थीं और भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। निरक्षर होने के बावजूद कस्तूरबा के अन्दर अच्छे-बुरे को पहचानने का विवेक था। उन्होंने ताउम्र बुराई का डटकर सामना किया और कई मौकों पर तो गांधीजी को चेतावनी देने से भी नहीं चूकीं। बकौल महात्मा गाँधी, “जो लोग मेरे और बा के निकट संपर्क में आए हैं, उनमें अधिक संख्या तो ऐसे लोगों की है, जो मेरी अपेक्षा बा पर कई गुना अधिक श्रद्धा रखते हैं”। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन अपने पति और देश के लिए व्यतीत कर दिया। इस प्रकार देश की आजादी और सामाजिक उत्थान में कस्तूरबा गाँधी ने बहुमूल्य योगदान दिया। ‌ ‌प्रारंभिक जीवन ‌ ‌कस्तूरबा का शुरूआती गृहस्थ जीवन बहुत ही कठिन था। उनके पति मोहनदास करमचंद गाँधी उनकी निरक्षरता से अप्रसन्न रहते थे और उन्हें ताने देते रहते थे। मोहनदास को कस्तूरबा का संजना, संवरना और घर से बाहर निकलना बिलकुल भी पसंद नहीं था। उन्होंने ‘बा’ पर आरंभ से ही अंकुश रखने का प्रयास किया पर ज्यादा सफल नहीं हो पाए।

‌गाँधी जी के साथ जीवन ‌विवाह पश्चात पति-पत्नी सन 1888 तक लगभग साथ-साथ ही रहे परन्तु मोहनदास के इंग्लैंड प्रवास के बाद वो अकेली ही रहीं। मोहनदास के अनुपस्थिति में उन्होंने अपने बच्चे हरिलाल का पालन-पोषण किया। शिक्षा समाप्त करने के बाद गाँधी इंग्लैंड से लौट आये पर शीघ्र ही उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। इसके पश्चात मोहनदास सन 1896 में भारत आए और तब कस्तूरबा को अपने साथ ले गए। दक्षिण अफ्रीका जाने से लेकर अपनी मृत्यु तक ‘बा’ महात्मा गाँधी का अनुसरण करती रहीं। उन्होंने अपने जीवन को गाँधी की तरह ही सादा और साधारण बना लिया था। वे गाँधी के सभी कार्यों में सदैव उनके साथ रहीं। बापू ने स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान अनेकों उपवास रखे और इन उपवासों में वो अक्सर उनके साथ रहीं और देखभाल करती रहीं। ‌दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने गांधीजी का बखूबी साथ दिया। वहां पर भारतियों की दशा के विरोध में जब वो आन्दोलन में शामिल हुईं तब उन्हें गिरफ्तार कर तीन महीनों की कड़ी सजा के साथ जेल भेज दिया गया। जेल में मिला भोजन अखाद्य था अत: उन्होंने फलाहार करने का निश्चय किया पर अधिकारियों द्वारा उनके अनुरोध पर ध्यान नहीं दिए जाने पर उन्होंने उपवास किया जिसके पश्चात अधिकारियों को झुकना पड़ा। ‌सन 1915 में कस्तूरबा भी महात्मा गाँधी के साथ भारत लौट आयीं हर कदम पर और उनका साथ दिया। कई बार जन गांधीजी जेल गए तब उन्होंने उनका स्थान लिया। चंपारण सत्याग्रह के दौरान वो भी गाँधी जी के साथ वहां गयीं और लोगों को सफाई, अनुशासन, पढाई आदि के महत्व के बारे में बताया। इसी दौरान वो गाँवों में घूमकर दवा वितरण करती रहीं। खेड़ा सत्याग्रह के दौरान भी बा घूम-घूम कर स्त्रियों का उत्साहवर्धन करती रही। ‌सन 1922 में गाँधी के गिरफ्तारी के पश्चात उन्होंने वीरांगनाओं जैसा वक्तव्य दिया और इस गिरफ्तारी के विरोध में विदेशी कपड़ों के परित्याग का आह्वान किया। उन्होंने गांधीजी का संदेश प्रसारित करने के लिए गुजरात के गाँवों का दौरा भी किया। 1930 में दांडी और धरासणा के बाद जब बापू जेल चले गए तब बा ने उनका स्थान लिया और लोगों का मनोबल बढाती रहीं। क्रन्तिकारी गतिविधियों के कारण 1932 और 1933 में उनका अधिकांश समय जेल में ही बीता। ‌सन 1939 में उन्होंने राजकोट रियासत के राजा के विरोध में भी सत्याग्रह में भाग लिया। वहां के शासक ठाकुर साहब ने प्रजा को कुछ अधिकार देना स्वीकार किया था परन्तु बाद में वो अपने वादे से मुकर गए। ‌ ‌बिगड़ता स्वास्थ्य और निधन ‌ ‌‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के दौरान अंग्रेजी सरकार ने बापू समेत कांग्रेस के सभी शीर्ष नेताओं को 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया। इसके पश्चात बा ने मुंबई के शिवाजी पार्क में भाषण करने का निश्चय किया किंतु वहां पहुँचने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पूना के आगा खाँ महल में भेज दिया गया। सरकार ने महात्मा गाँधी को भी यहीं रखा था। उस समय वे अस्वस्थ थीं। गिरफ्तारी के बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ता ही गया और कभी भी संतोषजनक रूप से नहीं सुधरा। ‌जनवरी 1944 में उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा। उनके निवेदन पर सरकार ने आयुर्वेद के डॉक्टर का प्रबंध भी कर दिया और कुछ समय के लिए उन्हें थोडा आराम भी मिला पर 22 फरवरी, 1944 को उन्हें एक बार फिर भयंकर दिल का दौरा पड़ा और बा हमेशा के लिए ये दुनिया छोड़कर चली गयीं। ‌ (मुजीब अता आजाद,गांधीवादी विचारक एवं हिंदी लेखक, महात्मा गांधी द्वारा स्थापित विभिन्न गांधीवादी संस्थाओं के प्रतिनिधि, आचार्यकुल के उपाध्यक्ष,गांधी-150वीं जन्म उत्सव समिति के अध्यक्ष है)

बात गांधी के मूल्यों की

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नैतिक मूल्यों पर आधारित समाज एवं राष्ट्र निर्माण के प्रणेता संत विनोबा भावे

भारत रत्न संत विनोबा भावे को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आध्यात्मिक शिष्य कहा जाता है, 7 मार्च सन 1968 को विनोबा ने आचार्यकुल की स्थापना की इसलिए विनोबा के व्यक्तित्व की चर्चा कर रहे हैं, आचार्य विनोबा भावे (11 सितम्बर 1895 – 15 नवम्बर 1982) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक हैं उनका मूल नाम विनायक नारहरी भावे था। उन्हे भारत का राष्ट्रीय आध्यापक माना जाता है,ऐसा इसलिए है क्योंकि शिक्षा को लेकर आजीवन समर्पित रहने वाले विनोबा ने अपना जीवन पढ़ने पढ़ाने में ही व्यतीत किया उन्होंने गांधी के विचारों को जीवन में आत्मसात करके गांधी का कथन मेरा जीवन ही मेरा दर्शन है को लागू करने दिखाया l संत विनोबा भावे ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अधूरे कार्यों को पूरा करना शुरू किया कई मायनों में विनोबा ने गहन अध्ययन के बूते भारतीय इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान बनाया विनोबा ने दिलों को जोड़ने का काम किया वेदांत के अभ्यास संस्कृत भाषा तथा फारसी में जपुजी अभ्यास पर्शियन फारसी उर्दू तथा अरबी को सीखा सीखा समझा,बाइबल अभ्यास हिब्रू भाषा सीख करके करके किया उन्होंने कुरान का अभ्यास किया और अरबी भाषा सीख कर अध्ययन भी अध्ययन भी इस प्रकार 26 भारतीय और विदेशी भाषाओं के ज्ञान से परिपूर्ण विनोबा ने एक उच्च कोटि के विद्वान शिक्षाविद के रूप में अपनी पहचान बनाई सत्य और अहिंसा का उनके जीवन में उच्च स्थान था आज जब पूरा विश्व हिंसा की संभावनाओं से भयभीत नजर आता है तब गांधी के बाद विनोबा ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनसे आशा और उम्मीद दिखाई देती है, 11 सितंबर 1895 को विनोबा का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम था विनायक. मां उन्हें प्यार से विन्या कहकर बुलातीं. विनोबा के अलावा रुक्मिणी बाई के दो और बेटे थे: वाल्कोबा और शिवाजी. विनायक से छोटे वाल्कोबा. शिवाजी सबसे छोटे. विनोबा नाम गांधी जी ने दिया था। महाराष्ट्र में नाम के पीछे ‘बा’ लगाने का जो चलन है, उसके अनुसार. तुकोबा, विठोबा और विनोबा.

गांधी से प्रभावित

4 फ़रवरी 1916, को काशी विश्वविद्यालय के एक समारोह में महात्मा गांधी ने कहा कि अपने धन का सदुपयोग राष्ट्रनिर्माण के लिए करें। उसको गरीबों के कल्याण में लगाएं काशी विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों का यह समाचा पढ़कर विनोबा को प्रभावित हुए और गांधी के नाम पत्र लिखा. जवाब आया। गांधी जी के आमंत्रण के साथ. विनोबा तुरंत अहमदाबाद स्थित कोचर्ब आश्रम की ओर प्रस्थान कर गए, जहां गांधी जी का आश्रम था।
विनोबा का राष्ट्रपिता गांधी से प्रथम साक्षात्कार

7 जून 1916 को विनोबा की गांधी से पहली भेंट हुई। उसके बाद तो विनोबा गांधी जी के ही होकर रह गए। गांधी जी ने भी विनोबा की प्रतिभा को पहचान लिया था। इसलिए पहली मुलाकात के बाद ही उनकी टिप्पणी थी कि अधिकांश लोग यहां से कुछ लेने के लिए आते हैं, यह पहला व्यक्ति है, जो कुछ देने के लिए आया है।’ काफी दिन बाद अपनी पहली भेंट को याद करते हुए विनोबा ने कहा था— “जिन दिनों में काशी में था, मेरी पहली अभिलाषा हिमालय की कंदराओं में जाकर तप-साधना करने की थी। दूसरी अभिलाषा थी, बंगाल के क्रांतिकारियों से भेंट करने की. लेकिन इनमें से एक भी अभिलाषा पूरी न हो सकी. समय मुझे गांधी जी तक ले गया। वहां जाकर मैंने पाया कि उनके व्यक्तित्व में हिमालय जैसी शांति है तो बंगाल की क्रांति की धधक भी. मैंने छूटते ही स्वयं से कहा था, मेरे दोनों इच्छाएं पूरी हुईं.

आचार्यकुल की स्थापना विनोबा भावे भागलपुर कई बार आए। 6 मार्च, 1968 को भी आचार्य विनोबा भावे भागलपुर भूदान पदयात्रा मे आए थे। उसके बाद वे विक्रमशिला विश्वविद्यालय का भग्नावशेष देखने गए और कहलगाँव मे उन्होने शिक्षको और बुद्धिजीवियों को संबोधित किया।उस मीटिंग में स्व. मुकुटधारी अग्रवाल भी समाचार संकलन के लिए गए हुए थे। जैसा कि वह अपने संस्मरण में लिखते हैं। भागलपुर के डॉ. रामजी सिंह, जो सर्वोदय आंदोलन से जुड़े हुये थे, ने यह बैठक बुलाई थी। विनोबाजी ने इस बैठक में शिक्षको को संबोधित करते हुए उन्हे कहा था कि वे देश का मार्ग दर्शन करें। वे शांति और सद्भाव के लिए काम करें और छात्रो का जीवन निर्माण मे सहयोग करें।शिक्षक की नैतिक प्रतिष्ठा बढ़े और लोक शक्ति का निर्माण हो।इस दिशा मे काम करने की जरूरत है। बैठक में इसी उदेश्य से ”आचार्यकुल” की स्थापना भी की गयी और डॉ. रामजी सिंह उसके संयोजक बनाए गए थे

विनोबा की निर्भयता 1954 ई. मे बोध-गया में निरंजना नदी के किनारे आयोजित अखिल भारतीय सर्वोदय’ सम्मेलन में राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद, उपराष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, बिहार मे मुख्यमंत्री डॉ.श्रीकृष्ण सिंह, जयप्रकाश नारायण, उनकी पत्नी प्रभावती जी, आचार्य जे.बी.कृपलानी, महाराष्ट्र के संत तुकड़ो जी महाराज सहित देश के प्रायः सभी सर्वोदयी नेता और कार्यकर्ता आए थे। विनोवा भावे जी बहुत धीमे स्वर, लेकिन दृढ़ता से अपनी बात रखते थे। उन्होंने राजनेताओं से आग्रह किया था कि वे भूदान आंदोलन की सफलता में योगदान करें क्योंकि देश के किसानों की समस्या का समाधान भूदान से ही संभव है।

निधन नवंबर 1982 में वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और उन्होंने अपने जीवन को त्यागने का फैसला लिया। उन्होंने अपने अंतिम दिनों में खाना या दवा लेने से इनकार कर दिया था। आखिरकार 15 नवंबर, 1982 को देश के एक महान समाज सुधारक हम सब को छोड़ कर चले गए l


(मुजीब अता आजाद,गांधीवादी विचारक, वरिष्ठ पत्रकार एवं हिंदी लेखक, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा स्थापित विभिन्न गांधीवादी संस्थाओं के प्रतिनिधि,आचार्यकुल के उपाध्यक्ष व महात्मा गांधी की150वीं जन्म उत्सव समिति के अध्यक्ष ) Mujeeb Ata Azad (वार्ता) 17:22, 18 मई 2021 (UTC)उत्तर दें

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