विचित्र वीणा एक तार से बजने वाला वाद्य है जिसका प्रयोग हिन्दुस्तानी संगीत में किया जाता है। यह कर्नाटक संगीत में प्रयोग होने वाले गोट्टुवाद्यम (चित्र वीणा) के समान होता है। इसमें कोई फ़्रेट्स नहीं होते हैं और एक स्लाइड द्वारा बजाया जाता है।[1]

विचित्र वीणा प्राचीन एकतंत्री वीणा का आधुनिक रूप है।[2] यह एक चौड़े, फ़्रेटहीन क्षैतिज भाग या (दण्ड) पर, जो कि तीन फ़ीट लंबा और छः इंच चौड़ा होता है का बना होता है। इसमें दो प्रतिध्वनित तुम्बे होते हैं, जिनमें हाथी दांत से अलंकरण किया हिता है और दण्ड के दोनों छोरों पर नीचे की ओर से जुड़े रहते हैं। वाद्य का ऊपरी तंग सिरा प्रायः मयूर आकृति में ढला होता है।

इस वाद्य में चार मुख्य बजाने के तार एवं पांच गौण तार होते हैं। गौण तारों को चिकारी कहते हैं। इन तारों को खुली अंगुली से ड्रोन प्रभाव दिया जाता है। इनके नीचे १३ सिम्पेथैटिक तार होते हैं, जो उपयुक्त रागों के लिये ट्यूण्ड रहते हैं। वीणा में पांच सप्तक होते हैं। इसे बजाने के लिये सितार बजाने वाले मिज़्राबों जैसे ही प्लेक्ट्रम दाएं हाथ की मध्यमा एवं तर्जनी अंगुलियों में पहने जाते हैं और तारों को छेड़ा जाता है। इनके अलावा एक कांच का बट्टा बायें हाथ से मुख्य तारों पर फ़िराया जाता है जिससे लय बनती है। तारों में बट्टे के बीच घर्षण घटाने के लिये उन पर नारियल का तेल लगाया जाता है।

वीणा का प्रयोग प्रायः ध्रुपद शैली के गायन की संगत के लिये किया जाता है और इसमें ठेका या जटिलता अधिक मान्य नहीं है। इसका पुनरोद्धार एवं पुनर्प्रयोग करने का श्रेय लालमणि मिश्र को जाता है। इन्होंने ही इसको बजाने की तकनीक विकसित कीं एवं मिश्रवाणी की रचनाएं कीं; तथा इनके पुत्र गोपाल शंकर मिश्र ने इसके प्रदर्शन को सार्वजनिक किया।

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 9 मार्च 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 दिसंबर 2012.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 सितंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 दिसंबर 2012.

बाहरी कड़ियाँ

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