विज्ञान के इतिहास का समाजशास्त्र
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यह मना जाता है की यह सच है, की पहले समय में तारो या ग्रहो के स्थिती के अनुसार तर्क लागाया जाता भविष्यका इससे यह होताथा की लोग आनेवाली मुश्कील और फायदे से निपट लेते. यह विद्या निशाचर प्रनियोको बहुत आछी तर हसे आती है, और इसका इस्तमाल एक नकशे के तऱ्ह किया जाता आज भी काई देशो मे इनके ज्ञाता मौजूद है लेकिन इसके बारे मे हमेशा कम जानकारी मिळती है, क्युकी लोग ज्यादतर इसे गुप्त रखने मे ही संतुषठता मानते है,,और इस तार्किक समाजशास्त्रीय ज्ञान को कई मत्रा मे भारत कें पुरण कथा मे मौजूद है इस ज्ञान का पुरा या बहुत कम एस्तीमाल महाभारत मे भगवान कृष्ण ने कि, इसे भागवत गीता के नाम से भी जनते है, अभिमन्यू और चक्रव्यू का किस्सा यह बात को दरषाता है, की भगवान कृष्ण चक्रवर्ती थे, उसीके सुदर्षन चक्र की रचनाही चक्रव्यू है, लेकिन यह ज्ञान कई हिस्सो मे संपूर्ण हिंदुस्थान मे तुकडो के भाती फैलाहुआ है..
आर्थात यह की विज्ञान का इतिहास के पिचे छुपे रहस्य से पडदा अभी पुरी तारा नाही उठा हुआ है, ये सच है की जाब भी कभी उटेगा तो हैराण कर देने वाले सच सामने आयेंगे, और इसमे तर्कविज्ञान की नी रचना मिलेगी, जो पुरी मानवी सभ्यता को हिला दालेगी