विट्ठलदास मोदी (२५ अप्रैल १९१२ - २३ मार्च २०००) भारत के एक प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक थे। इन्होने गोरखपुर में आरोग्य मंदिर की स्थापना की तथा प्राकृतिक चिकित्सा पर हिन्दी एवं अंग्रेजी में अनेकों पुस्तकों की रचना की। अपने जीवन के 60 वर्ष प्राकृतिक चिकित्सा को समर्पित किए।[1]

मोदी जी ने प्राकृतिक चिकित्सा में मानस के निर्मलीकरण के लिए भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्तित विपश्यना ध्यान-साधना का समावेश किया।

इनका जन्म 25 अप्रैल सन् 1912 ई. में जनपद गोरखपुर मे हुआ था। इन्होने मैट्रिक तक की शिक्षा गोरखपुर से लेकर आगे की शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से की। वह अध्यापक बनना चाहते थे। एक बार यह भंयकर रूप से बीमार पड गए तथा सभी तरह की दवा लम्बे समय तक लेने पर आराम नहीं हुआ तो इन्होने प्राकृतिक चिकित्सा श्री बालेश्वर प्रसाद सिंह के मार्गदर्शन में न केवल रोगमुक्त हुए बल्कि उनका स्वास्थ्य पहले से भी उत्तम हो गया इसी से ही उनकी आस्था और निष्ठा प्राकृतिक चिकित्सा में लग गई।

आगे चलकर सन् 1940 ई. मे इन्होने गोरखपुर में आरोग्य मंदिर प्राकृतिक चिकित्सालय की स्थापना की। इन्होने एडोल्फ जस्ट द्वारा लिखी पुस्तक 'रिटर्न टू नेचर' (Returne to nature) का हिन्दी अनुवाद करके भारतीय प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में एक बडा कार्य किया इन्होने गांधी जी की रचनात्मक प्रवृतियों पर केन्द्रित पत्रिका 'जीवन-साहित्य' का संपादन भी किया।

इन्होने भारत में प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र मे ज्ञान व अनुभव का प्रयोग कर खूब सम्मान तथा प्रतिष्ठा हासिल की। विदेशों में भी इस पद्धति के अध्ययन के लिए उन्होने अनेकों देशों की यात्रा की। वह अमेरिका भी गए तथा वहां के प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र देखकर तथा अनुभव प्राप्त कर उन्होने 'यूरोप-यात्रा' नामक एक पुस्तक लिखी।

प्राकृतिक चिकित्सा की शिक्षा के लिए एक शिक्षा केन्द्र की स्थापना 1962 में गोरखपुर में 'स्कूल ऑफ नेचूरल थेराप्यूटिक्स' नाम से की। इसके द्वारा उन्होने हजारों बालक बालिकाओं को प्राकृतिक चिकित्सा की शिक्षा दी।

इन्होने शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए 'रोगों की सरल चिकित्सा', 'स्वास्थ्य के लिए फल तरकारियाँ', 'बच्चों का स्वास्थ्य एवं उनके रोग', 'दुग्ध-कल्प', 'उपवास से लाभ', 'उपवास चिकित्सा' आदि अनेकों पुस्तकों को अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं अनुवाद भी किया। उन्होने अपनी यूरोप यात्रा तथा प्राकृतिक चिकित्सा से सम्बन्धित 'यूरोप-यात्रा' नामक एक पुस्तक लिखी।

विट्ठलदास मोदी के सूत्र (सूक्तियाँ)

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  • शान-शौकत मनुष्य को घमंडी बनाती है और उसके पतन का कारण बनती है।
  • मन को ताजगी देने वाला, विपश्यना से अच्छा और कोई उपाय नहीं है।
  • बच्चों को धन देने के मुकाबले में जीवन का निचोड़ देना ज्यादा कीमती है।
  • इधर-उधर पत्र को फेंक देना, चाहे किसी का हो, पत्र और लिखने वाले का अपमान करना है।
  • शारीरिक वजन को हाथ में रखने की दो ही कुंजियाँ हैं - भोजन और व्यायाम।
  • लेखक का काम है कि वह समाज की चेतना-शक्ति को जगाये।
  • बांटकर पढ़ना चाहिए और बांटकर खाना चाहिए।
  • डाक्टर का सबसे बड़ा गहना करूणा या दया है। यह गहना जितना ही वजनी होता है, डाक्टर की शोहरत उतनी ही बढ़ती है।
  • हार न मानकर बढ़ते जाना ही जीतना कहलाता है।
  • काम थकाता तब है, जब वह मन से नहीं किया जाता।
  • प्राकृतिक-चिकित्सा पवित्र चिकित्सा है।
  • यदि मनुष्य शरीर और मन से जवानी महसूस करता है, तो उसके लिए उम्र की गणना का कोई मूल्य नहीं है।
  • आरम्भ में सिद्धान्त कौड़ी मोल के होते हैं। उनका हीरे-मोती भाव तब लगता है, जब से वे अनुभव के आधार पर सिद्ध कर दिये जाते है।
  • रोग और स्वास्थ्य एक शरीर में एक साथ नहीं रह सकते।
  • रोग शरीर के किसी अंग का अति सक्रिय या निष्क्रय होना है।
  • विपश्यना मानसिक विकारों की प्राकृतिक-चिकित्सा है।
  • यदि आप जीवन का सुख व आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं तो जीवित रहने के लिए खाइए, खाने के लिए जीना छोड़िये।
  • अनुभव सबसे बड़ा गुरू है।
  • जीभ बड़े-बड़े नुकसान कर देती है। यह है तीन इंच की, पर पूरे छह फुट के आदमी को मार सकती है।
  • जो प्यार एक मुस्कराहट द्वारा व्यक्त होता है, वह हजारों नमस्कारों द्वारा व्यक्त नहीं हो पाता।
  • स्वस्थ रहने के लिए सिर्फ बुरी आदतों को अच्छी आदतों में बदलना काफी है।
  • झूठी आशा ने लोगो को निष्क्रिय बना रखा है।
  • आपके विचार ही आपके साथी हैं।
  • अच्छी आदतों की नींव पर ही आप तन्दुरूस्ती की मजबूत इमारत बना सकते हैं।
  1. "संस्थापक". मूल से 22 दिसंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 अक्तूबर 2014.

इन्हें भी दीखें

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