विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेरा), 1973
जब कोई व्यापारी उद्यम अन्य देशों से वस्तुओं का आयात करता है, उन्हें अपने उत्पाद निर्यात करता है अथवा विदेशों में निवेश करता है तो वह विदेशी मुद्रा का लेन देन करता है। विदेशी एक्सचेंज का अर्थ है विदेशी मुद्रा तथा इसमें निम्न शामिल हैं :- (i) किसी विदेशी मुद्रा में संदेय जमा राशियां; (ii) ड्राफ्ट (हुंडिया), यात्री चैक, ऋणपत्र या विनिमय हुंडियां जो भारतीय मुद्रा में व्यक्त या आहरित हो किन्तु किसी विदेशी मुद्रा में संदेय हो; तथा (iii) ड्राफ्ट, यात्री चैक, ऋण पत्र या विनिमय हुंडियां जो भारत से बाहर बैंकों, संस्थाओं या व्यक्तियों द्वारा आहरित हो किन्तु भारतीय मुद्रा में संदेय हों।
भारत में सभी लेन देन, जिनमें विदेशी मुद्रा शामिल हैं, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेमा), 1973 द्वारा विनियमित किए जाते थे। फेरा का मुख्य उद्देश्य देश के विदेशी मुद्रा संसाधनों का संरक्षण तथा उचित उपयोग करना था। इसका उद्देश्य भारतीय कंपनियों द्वारा देश के बाहर तथा भारत में विदेशी कंपनियों द्वारा व्यापार के संचालन के कुछ पहलुओं को नियंत्रित करना भी है। यह एक आपराधिक विधान था, जिसका अर्थ था कि इसके उल्लंघन के परिणामस्वरूप कारावास तथा भारी अर्थ दंड के भुगतान की सजा दी जाएगी। इसके अनेक प्रतिबंधात्मक खंड थे जो विदेशी निवेशों पर रोक लगाते थे।
आर्थिक सुधारों तथा उदारीकृत, परिदृश्य के प्रकाश में फेरा को एक नए अधिनियम द्वारा प्रतिस्थापित किया गया जिसका नाम है विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999
अटल बिहारी बाजपेई की सरकार ने फेरा को निरस्त करके सन् 1999 मे फेरा का नाम बदल कर फेमा रखा गया
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