विद्युत वाहन

विद्युत से चलने वाले वाहन

विद्युतीय वाहन या विद्युत वाहन एक प्रकार के विद्युत से चलने वाले वाहन होते हैं। ये वाहन अपनी बैटरी द्वारा [1] या किसी बाहरी स्रोत द्वारा विद्युत दिये जाने पर चलते हैं। इसमें विद्युत से चलने वाली रेल भी शामिल हैं। यह रेल ऊपर दिये गए तार द्वारा उच्च विद्युत प्रवाह किए जाने पर चलतीं हैं। लेकिन कभी कभी रेलगाड़ी की छत पर गलती से लोग चले जाते हैं और विद्युत प्रवाह के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। लेकिन यह रेल कई प्रकार से उपयोगी है। इसके द्वारा पर्यावरण प्रदूषण में कमी आती है और इसमें बहुत से लोग एक साथ अपनी यात्रा कर सकते हैं, जिससे लागत में भी कमी आती है।

2015 की निस्सान की विश्व की सर्वाधिक बिक्री हुई इलेक्ट्रिक कार।चीन की उच्च गति रेल CRH5, बीजिंग
साओ पाउलो, ब्राज़ील में विद्युत ट्रॉली बसविएना में विद्युत ट्राम
ऑस्ट्रेलिया में सं.रा. निर्मित पूर्ण विद्युत ट्रकबॉन , में BYD K9 विद्युत संचालित बस- आयरन-फॉस्फेट बैटरी सहित।
भारत में शताब्दी एक्स्प्रेस रेल का विद्युत इंजन।विद्युत सौर ऊर्जा संचालित वायुयान जिसने सफ़लतापूर्वक पृथ्वी की दो परिक्रमाएं सम्पन्न कीं।
ब्राज़ील एवं में चीन निर्मित विद्युत विद्युत स्कूटर।मैनहटन, न्यू यॉर्क में चीन निर्मित विद्युत विद्युत स्कूटर।
विश्व पर्यन्त विद्युत वाहन (ऊपर बायें से):
  • एम्स्टर्डैम में निस्सान की विश्व की सर्वाधिक बिक्री हुई इलेक्ट्रिक कार।
  • चीन की उच्च गति रेल CRH5, बीजिंग
  • साओ पाउलो, ब्राज़ील में ट्रॉली बर
  • विएना, ऑस्ट्रिय आमें विद्युत ट्राम
  • ऑस्ट्रेलिया में सं.रा. निर्मित विद्युत ट्रक
  • बॉन , में BYD K9 विद्युत संचालित बस- आयरन-फॉस्फेट बैटरी सहित।]]
  • भारत में शताब्दी एक्स्प्रेस रेल का विद्युत इंजन।
  • विद्युत सौर ऊर्जा संचालित वायुयान जिसने सफ़लतापूर्वक पृथ्वी की दो परिक्रमाएं सम्पन्न कीं।
  • ब्राज़ील एवं मैनहटन में चीन निर्मित विद्युत विद्युत स्कूटर।

1832 और 1839 के मध्य रोबर्ट एंडर्सन ने स्कॉटलैण्ड में पहली विद्युत से चलने वाली एक ही बार आवेशित होने वाली बैटरी का निर्माण किया था। इसके बाद 20वीं सदी तक कई सामान्य जगहों पर विद्युत से चलने वाले वाहन और रेल आदि के यातायात उपलब्ध होने लगे। समय के साथ इसमें लागत कम होने लगा और यह बाजार में अधिक बिकने लगा। धीरे धीरे इसके ट्रक आदि वाहन भी बनने लगे।

लिथियम-आयन बैटरी

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बहुत से वाहन लीथियम ऑयन बैटरी का उपयोग करते हैं। क्योंकि इसमें अधिक ऊर्जा क्षमता होती है और यह बहुत अधिक समय तक अपनी ऊर्जा बचा कर रख सकता है। यह सुरक्षा, लागत, और ऊष्मीयता आदि के मामलों में खरा उतरा इस कारण इसका उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग सुरक्षित तापमान और विद्युत के साथ करता चाहिए। इसमें इसकी समय सीमा कम करने पर इसकी लागत भी कम हो जाती है।[2][3]

विद्युत वाहनों में लगने वाले मोटर

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विद्युत वाहनों में मुखयतः पाँच प्रकार के मोटर लगते हैं। सबके अपने-अपने लाभ और हानियाँ हैं।

 
संरा.अमेरिका का लूनर रोविंग यान अपोलो १५ चन्द्रमा पर १९७१ में।

अंतरिक्ष रोवर वाहन

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भारत में सवारी गाड़ी के रूप में इलेक्ट्रिकल वाहन (ई -रिक्शा)

सौर मंडल में चंद्रमा और अन्य ग्रहों के अन्वेषण हेतु मानव और मानव रहित वाहनों का प्रयोग किया जाता रहा है। १९७१ एवं १९७२ में अपोलो कार्यक्रम के अन्तिम तीन अभियानों में अन्तरिक्षयात्रियों ने सिल्वर-ऑक्साइड संचालित लूनर रोविंग वाहनों द्वारा चंद्रमा की सतह पर 35.7 किलोमीटर (22.2 मील) तक की दूरी तय की हैं। मानव रहित सौर ऊर्जा संचालित रोवर्स का प्रयोग चंद्रमा एवं मंगल के अन्वेषणों में भी प्रयोग किये गए हैं।


यदि अति गरम या ज्यादा चार्ज किया जाता है, तो बैटरी खराब हो सकती है। कई मामलों में यह रिसाव, विस्फोट या आग पैदा कर सकता है। इन जोखिमों को कम करने के लिए, कई लिथियम आयन कोशिकाओं (और बैटरी पैक) में सर्किटरी होती है जो बैटरी को डिस्कनेक्ट करती है, जब उसका वोल्टेज सेल 3-4.2 वाल्ट प्रति सेल निर्धारित होता है। खराब डिजाइन या गलत बैटरी प्रबंधन सर्किट भी समस्याएं पैदा कर सकते हैं; यह निश्चित होना मुश्किल है कि किसी भी विशेष बैटरी प्रबंधन सर्किट को ठीक से लागू किया गया है। लिथियम आयन कोशिकाओं की स्वीकृत वोल्टेज श्रेणी के बाहर ,क्षति के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं ,जो आमतौर पर अधिकांश एलएफपी कोशिकाओं के लिए (2.5 से 3.65) इस वोल्टेज श्रेणी से, यहां तक ​​कि छोटे वोल्ट (मिलिवल्ट्स) के परिणामस्वरूप कोशिकाओं के समय से पहले निष्क्रीय हो जाती है और इसके अलावा, कोशिकाओं में प्रतिक्रियाशील घटकों के कारण सुरक्षा जोखिम होता है।

समस्याएं

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कार में उपयोग होने वाली सीसे-अम्ल की बैटरी।

हर बैटरी जिसे पुनः आवेशित किया जा सकता है, उसे उपयोग होने के बाद पुनः आवेशित करने की आवश्यकता होती है। लेकिन हर बार आसपास उसे आवेशित करने का कोई माध्यम नहीं होता है। इस कारण यह एक बहुत बड़ी परेशानी है। इसके अलावा इस तरह के आवेशन करने पर भी यह बहुत दूर के सफर हेतु नहीं बना है अर्थात यदि किसी दूर वाले स्थल पर जाना हो तो इसके स्थान पर कोई और माध्यम तलाशना पड़ेगा।

विद्युत चुम्बकीय विकिरण

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उच्च क्षमता वाले विद्युत वाहन में विद्युत चुंबकीय विकिरण का प्रभाव पड़ता है। लेकिन यह केवल तभी होता है, जब यदि उसमें किसी प्रकार का विस्फोट हो जाये या उसमें अधिक भरी वस्तु को डाल दिया जाये।[4]

बैटरी की अदला-बदली

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कई बैटरी पुनः आवेशित नहीं होते हैं या कुछ में बहुत समय लग जाता है। इस कारण बैटरी की अदला-बदली की जाती है। एक प्रकार के स्थल पर इस तरह के वाहन की बैटरी उपलब्ध होती है। लेकिन यह सभी जगह पर उपलब्ध नहीं होने के कारण परेशानी होती है।

चन्द्रमा रोविंग वाहन

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इसी प्रकार चंद्र रावेिंग वाहन (एलआरवी) या चंद्रमा रोवर, 1971 और 1972 के दौरान अमेरिकी अपोलो कार्यक्रम (15, 16 और 17) के अंतिम तीन अभियानों में इस्तेमाल किया जाने वाला एक बैटरी चालित चार-पहिया रोवर है। यह मुख्य रूप से मून बग्गी के नाम से लोकप्रिय है।

चित्रदीर्घा

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इलेक्ट्रिक व्हीकल में प्रोग्रामिंग की भूमिका

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प्रोग्रामिंग इलेक्ट्रिक व्हीकल (EVs) के विकास और संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ईवीएस में नियंत्रण प्रणाली इलेक्ट्रिक मोटर, बैटरी और अन्य प्रणालियों के प्रदर्शन को प्रबंधित और अनुकूलित करने के लिए सॉफ्टवेयर एल्गोरिदम पर बहुत अधिक निर्भर करती है। नियंत्रण प्रणाली जैसे कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं:

मोटर नियंत्रण:

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वांछित प्रदर्शन देने के लिए ईवी में इलेक्ट्रिक मोटर को ठीक से नियंत्रित किया जाना चाहिए। सॉफ्टवेयर एल्गोरिदम का उपयोग ड्राइवर इनपुट और अन्य मापदंडों के आधार पर मोटर की गति, टॉर्क और पावर आउटपुट को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।

बैटरी प्रबंधन:

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बैटरी एक ईवी का दिल है और इसके चार्ज की स्थिति, तापमान, स्वास्थ्य और अन्य मापदंडों को सुरक्षित, कुशल संचालन सुनिश्चित करने के लिए निगरानी और प्रबंधन की आवश्यकता होती है।

पावर प्रबंधन:

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एक ईवी में, बैटरी से ऊर्जा इलेक्ट्रिक मोटर, पावर इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य प्रणालियों को वितरित की जाती है। सॉफ्टवेयर एल्गोरिदम का उपयोग बैटरी के सबसे कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने और ऊर्जा हानि को कम करने के लिए बिजली के प्रवाह को प्रबंधित करने के लिए किया जाता है।

थर्मल प्रबंधन:

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इलेक्ट्रिक वाहन संचालन के दौरान गर्मी उत्पन्न करते हैं, और उनकी लंबी उम्र सुनिश्चित करने के लिए बैटरी के तापमान को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है, इस प्रकार एक थर्मल प्रबंधन प्रणाली मौजूद है, इसे सॉफ्टवेयर द्वारा भी नियंत्रित किया जाता है

चार्जिंग प्रबंधन:

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ईवी को बाहरी शक्ति स्रोत में प्लग करके चार्ज किया जाता है, चार्जिंग प्रक्रिया को नियंत्रित करने और बैटरी को सुरक्षित और कुशलता से चार्ज करने के लिए चार्जिंग प्रबंधन प्रणाली जिम्मेदार है।

वाहन की गतिशीलता और स्थिरता:

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सॉफ्टवेयर एल्गोरिदम का उपयोग वाहन की स्थिरता और गतिशीलता को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, जैसे कि इसका कर्षण, स्थिरता और सुरक्षा।

इन्हें भी देखें

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  1. फ़ैज़, ए; वीवर, सी.एस.; वॉल्श, एम.पी. (१९९६). Air Pollution from Motor Vehicles: Standards and Technologies for Controlling Emissions (मोटर वाहनों से वायु प्रदूषण: मानक एवं प्रौद्योगिकियाँ. अदर वर्ल्ड बैंक Bks. विश्व बैंक. पृ॰ २२७. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-8213-3444-7. अभिगमन तिथि दिसंबर १, २०१७.
  2. "A review on the key issues for lithium-ion battery management in electric vehicles". Journal of Power Sources. 226: 272–288. Mar 15, 2013. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0378-7753. डीओआइ:10.1016/j.jpowsour.2012.10.060. मूल से 24 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि Dec 1, 2017.
  3. "Switching algorithms for extending battery life in Electric Vehicles". Journal of Power Sources. 231: 50–59. Jun 1, 2013. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0378-7753. डीओआइ:10.1016/j.jpowsour.2012.12.075. मूल से 24 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि Dec 1, 2017.
  4. "Scientific Facts on Electromagnetic fields from Power lines, Wiring & Appliances". ग्रीनफैक्ट्स. मूल से 5 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ दिसम्बर, २०१७. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)

बाहरी कड़ियाँ

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