विशाख जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित एक ऐतिहासिक नाटक है, जिसका प्रकाशन सन् १९२१ ई॰ में भारती भंडार, इलाहाबाद से हुआ था।[1]

परिचय संपादित करें

'विशाख' कल्हण द्वारा संस्कृत में रचित सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ राजतरंगिणी में वर्णित एक ऐतिहासिक घटना पर अवलम्बित है। स्वयं जयशंकर प्रसाद के विचारानुसार यह घटना ईसापूर्व प्रथम शताब्दी अथवा उससे कुछ और पहले की हो सकती है।[2] तीन अंकों के इस नाटक में प्रथम अंक में ५, द्वितीय में ७ और तृतीय में ५ दृश्य संयोजित हैं। इस नाटक में कश्मीर के राजा नरदेव एक प्रमुख पात्र के रूप में उपस्थापित किये गये हैं। नाटक का नायक विशाख एक स्नातक ब्राह्मण है।

इस नाटक में अन्याय और अत्याचारी शासन का व्यापक चित्र है, जिसमें धर्म, धन और सत्ता के बल पर प्रभुत्वकामी नेतृत्व करने वाले लोगों द्वारा सामान्य गरीब जनता का सर्वस्व अपहरण सन्दर्भ के रूप में प्रस्तुत है। इस नाटक में आभूषणप्रियता की निन्दा, सत्याग्रह पर बल, सत्कर्म के प्रति निष्ठा, आत्मसम्मान की मूल्यवत्ता तथा स्वराज्य की प्रतीकात्मक आवश्यकता पर जिस प्रकार से बल दिया गया है उससे महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित स्वाधीनता आन्दोलन का स्पष्ट संकेत मिलता है।[3]

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. जयशंकर प्रसाद (विनिबंध), रमेशचन्द्र शाह, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, पुनर्मुद्रित संस्करण-२०१५, पृष्ठ-९३.
  2. जयशंकर प्रसाद ग्रन्थावली, भाग-३, संपादक- ओमप्रकाश सिंह, प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण-२०१४, पृष्ठ-१७५-१७६.
  3. प्रसाद के सम्पूर्ण नाटक एवं एकांकी, संपादन एवं भूमिका- डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय संस्करण-२००८, पृष्ठ-xvi.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें