Ankit kumar vijeta
1 मई 2021
Nieuwsgierige Gebruiker
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छो+356
2405:204:a517:dd7e:48f3:a43f:d2d2:eaec
तन्हाई के बेसुध सन्नाटे में, बेबस रिश्तो का है शोर। जाने कितने टूट गये, अपनों के ऐसे डोर। जिनसे नाता तो था अपना, पर नहीं था उन पर जोर। सहमी सहमी ये बातें, और रिश्तो का होड़। तन्हाई के बेसुध सन्नाटे में, बेबस रिश्तो का है शोर। New poem by ankit मसरूफ Ka mtlb (busy) टूट जाने दो हमको बिखर जाने दो, कितना भी रोके दिल सुनने को, आज सुनकर मुकर जाने दो। कितने मसरूफ हो जिंदगी में, इतना ही कह कर निकल जाने दो। तन्हा सही इस भीड़ में, साथ रहकर निकल जाने दो। कद्र कितनी है मत कहो,...
−356
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छो+287
2405:204:a517:dd7e:48f3:a43f:d2d2:eaec
लोग कहते हैं कि हम रोते नहीं, ये जरा साथ रहने वाले अंधेरो से पूछो. जिक्र मेरा भी होगा उनकी खामोशियों में।
−287
Nieuwsgierige Gebruiker
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छो+371
2405:204:a517:dd7e:48f3:a43f:d2d2:eaec
सम्पादन सारांश नहीं है
−371
10 फ़रवरी 2020
24 जनवरी 2020
11 जनवरी 2020
Ankit kumar vijeta
सम्पादन सारांश नहीं है
छो+3
2409:4063:2214:3830:a809:9cdf:e6be:d730
मसरूफ Ka mtlb (busy) लोग कहते हैं कि हम रोते नहीं, ये जरा साथ रहने वाले अंधेरो से पूछो. जिक्र मेरा भी होगा उनकी खामोशियों में। टूट जाने दो हमको बिखर जाने दो, कितना भी रोके दिल सुनने को, आज सुनकर मुकर जाने दो। कितने मसरूफ हो जिंदगी में, इतना ही कह कर निकल जाने दो। तन्हा सही इस भीड़ में, साथ रहकर निकल जाने दो। कद्र कितनी है मत कहो, अब हमको संभल जाने दो। आग जलने दो और जल जाने दो, आज फिर से सुलग जाने दो। सब ठीक है, कह के निकल जाने दो, टूट जाने दो हमको बिखर जाने दो।।
−268
2409:4063:2214:3830:a809:9cdf:e6be:d730
मसरूफ Ka mtlb (busy) लोग कहते हैं कि हम रोते नहीं, ये जरा साथ रहने वाले अंधेरो से पूछो. जिक्र मेरा भी होगा उनकी खामोशियों में। टूट जाने दो हमको बिखर जाने दो, कितना भी रोके दिल सुनने को, आज सुनकर मुकर जाने दो। कितने मसरूफ हो जिंदगी में, इतना ही कह कर निकल जाने दो। तन्हा सही इस भीड़ में, साथ रहकर निकल जाने दो। कद्र कितनी है मत कहो, अब हमको संभल जाने दो। आग जलने दो और जल जाने दो, आज फिर से सुलग जाने दो। सब ठीक है, कह के निकल जाने दो, टूट जाने दो हमको बिखर जाने दो।। More coming soon...
+1,176
1 जनवरी 2020
17 अगस्त 2019
2409:4063:2303:855:9acf:97cb:b122:b42b
कितनी मुश्किलें क्यों न आये, हम लड़ते रहेंगे. बादल कितने भी घने क्यों न आजाये , हम चाँद न सही आंधी बनकर निकल आएंगे. हमारा टाइम नहीं आयेगा, हम अपना टाइम लाएँगे. कितनी मुश्किलें क्यों न आये, हम लड़ते रहेंगे....
+3
2409:4063:2303:855:9acf:97cb:b122:b42b
कितनी मुश्किलें क्यों न आये, हम लड़ते रहेंगे. बदल कितने भी घने क्यों न आजाये , हम चाँद न सही आंधी बनकर निकल आएंगे. हमारा टाइम नहीं आयेगा, हम अपना टाइम लाएँगे. कितनी मुश्किलें क्यों न आये, हम लड़ते रहेंगे....
−7
2409:4063:2303:855:9acf:97cb:b122:b42b
कितनी मुश्किलें क्यों न आये, हम लड़ते रहेंगे. बदल कितने भी घने क्यों न कहा जाये , हम चाँद न सही आंधी बनकर निकल आएंगे. हमारा टाइम नहीं आयेगा, हम अपना टाइम लाएँगे. कितनी मुश्किलें क्यों न आये, हम लड़ते रहेंगे....
+566
7 अगस्त 2019
Ankit kumar vijeta
बुराई की मज़बूर,...शराब, कोई होश खोने के लिए पीता है और कोई होश में आने के लिए, कोई जीने के लिए पीता है कोई मरने के लिए, कोई एन्जॉय के लिए पीता है तो कोई दर्द में ज़ीने के लिए, कोई इसे नाशा कहता है तो कोई इसे दवा कहता है, कोई इसे मज़बूरी में पीता ही, एक रिक्शा वाला इसलिए पीता है की उसे दिनभर की थकान में भी नींद आ जाये वहीँ एक डॉक्टर इसलिए पीता है की ऑपरेशन करते वक़्त उसका हाथ न कापे, चौकीदार इसलिए पीता है की वो रात भर पहरे दे सके, क्या है ये मजबूरी?
−1,155
Ankit kumar vijeta
बुराई की मज़बूर,...शराब, कोई होश खोने के लिए पीता है और कोई होश में आने के लिए, कोई जीने के लिए पीता है कोई मरने के लिए, कोई एन्जॉय के लिए पीता है तो कोई दर्द में ज़ीने के लिए, कोई इसे नाशा कहता है तो कोई इसे दवा कहता है, कोई इसे मज़बूरी में पीता ही, एक रिक्शा वाला इसलिए पीता है की उसे दिनभर की थकान में भी नींद आ जाये वहीँ एक डॉक्टर इसलिए पीता है की ऑपरेशन करते वक़्त उसका हाथ न कापे, चौकीदार इसलिए पीता है की वो रात भर पहरे दे सके, क्या है ये मजबूरी?
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Ankit kumar vijeta
बुराई को मज़बूर,...शराब, कोई होश खोने के लिए पीता है और कोई होश में आने के लिए, कोई जीने के लिए पीता है कोई मरने के लिए, कोई एन्जॉय के लिए पीता है तो कोई दर्द में ज़ीने के लिए, कोई इसे नाशा कहता है तो कोई इसे दवा कहता है, कोई इसे मज़बूरी में पीता ही, एक रिक्शा वाला इसलिए पीता है की उसे दिनभर की थकान में भी नींद आ जाये वहीँ एक डॉक्टर इसलिए पीता है की ऑपरेशन करते वक़्त उसका हाथ न कापे, चौकीदार इसलिए पीता है की वो रात भर पहरे दे सके, क्या है ये मजबूरी?
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