अर्जुन टैंक

युद्ध टैंक

अर्जुन (संस्कृत में "अर्जुनः") एक तीसरी पीढ़ी का मुख्य युद्धक टैंक (एमबीटी) है।[4] इसे भारतीय सेना के लिए भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित किया गया है। अर्जुन टैंक का नाम महाभारत के पात्र अर्जुन के नाम पर ही रखा गया है।

अर्जुन टैंक

अर्जुन MBT Mk-1A
प्रकार मुख्य युद्धक टैंक
उत्पत्ति का मूल स्थान  भारत
उत्पादन इतिहास
डिज़ाइनर सीवीआरडीइ, डीआरडीओ
निर्माता हैवी व्हीकल फैक्ट्री
उत्पादन तिथि 2004-वर्तमान
निर्माणित संख्या 124+124[1]
संस्करण टैंक EX
निर्दिष्टीकरण
वजन 58.5 टन (57.6 लंबे टन; 64.5 लघु टन)
लंबाई 10.638 मीटर (34 फीट 10.8 इंच)
चौड़ाई 3.864 मीटर (12 फीट 8.1 इंच)
ऊंचाई 2.32 मीटर (7 फीट 7 इंच)
कर्मीदल 4 (कमांडर, गनर, लोडर और ड्राईवर)

वाहन के कवच स्टील/कॉम्पोज़िट कंचन कवच.
प्राथमिक
आयुध
120 mm टैंक गन
LAHAT एंटी-टैंक मिसाइल
HEAT, APFSDS, HESH राउंड्स[2]
द्वितीयक
आयुध
HCB 12.7 mm AA MG
Mag 7.62 mm Tk715 कोएक्सिल MG[2]
इंजन MTU 838 Ka 501 डीज़ल इंजन
1,400 hp (1,040 kW)
शक्ति / वजन 23.9hp/tonne,[3]
प्रसारण रेन्क एपीसाइक्लिक ट्रैन गियरबॉक्स, 4 आगे + 2 रिवर्स गियर
निलंबन हाइड्रोन्यूमेटिक
जमीन निकासी (Ground clearance) 0.45 मीटर (1 फीट 6 इंच)
ईंधन क्षमता 1,610 लीटर (350 ब्रिटिश गैलन; 430 अमेरिकी गैलन)
परिचालन सीमा 450 किलोमीटर (280 मील)[2]
गति 72 किमी/घंटा (45 मील/घंटा) सड़क पर[2]

40 किलोमीटर प्रति घंटा (25 मील/घंटा)* छोटे रास्तों पर[2]

अर्जुन टैंक में 120 मिमी में एक मेन राइफल्ड गन है जिसमें भारत में बने आर्मर-पेअरसिंग फिन-स्टेबलाइज़्ड डिस्कार्डिंग-सेबट एमुनीशन का प्रयोग किया जाता है। इसमें PKT 7.62 मिमी कोएक्सिल मशीन गन और NSVT 12.7 मिमी मशीन गन भी है। यह 1,400 हार्सपावर के एक एमटीयू बहु ईंधन डीजल इंजन द्वारा संचालित है। इसकी अधिकतम गति 67 किमी / घंटा (42 मील प्रति घंटा) और क्रॉस-कंट्री में 40 किमी / घंटा (25 मील प्रति घंटा) है। कमांडर, गनर, लोडर और चालक का एक चार सदस्यीय चालक दल इसे चलाता है। ऑटोमैटिक फायर डिटेक्शन और सप्रेशन और NBC प्रोटेक्शन सिस्टम्स इसमें शामिल किये गए हैं। नए कंचन आर्मर द्वारा ऑल-राउंड एंटी-टैंक वॉरहेड प्रोटेक्शन को और अधिक बढ़ाया गया है। इस आर्मर का थर्ड जनरेशन टैंक्स के आर्मर से अधिक प्रभावशाली होने का दावा भी किया गया है।

बाद में, देरी और 1990 के दशक से 2000 के दशक तक इसके विकास में अन्य समस्याओं के कारण आर्मी ने रूस से टी -90 टैंकों को खरीदने का आदेश दिया ताकि उन आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके जिनकी अर्जुन से पूरा करने के लिए उम्मीद की गई थी।

मार्च 2010 में, अर्जुन के तुलनात्मक परीक्षणों के लिए इसे टी -90 के खिलाफ खड़ा किया और इसने अच्छी तरह से प्रदर्शन किया। सेना ने 17 मई 2010 को 124 अर्जुन एमके 1 टैंक और 10 अगस्त 2010 को अतिरिक्त 124 अर्जुन एमके 2 टैंकों का ऑर्डर दिया।[5][6][7]

अर्जुन द्वारा 2004 में भारतीय सेना के साथ सेवा में प्रवेश किया गया। टैंक को पहले भारतीय सेना के आर्मर्ड कोर्स के 43 आर्मर्ड रेजीमेंट में शामिल किया गया, जबकि 12 मार्च 2011 को 75 आर्मर्ड रेजिमेंट में भी इसे शामिल किया गया।[8][8][9]

इतिहास संपादित करें

प्लानिंग और विकास संपादित करें

डीआरडीओ, को कॉम्बैट व्हीकल्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (सीवीआरडीई) के साथ मुख्य प्रयोग के रूप में, एक टैंक विकसित करने का कार्य सौंपा गया था।[10]

हालांकि टैंक का विकास सीवीआरडीई द्वारा 1972 में शुरू हुआ,पर 1996 में भारत सरकार ने फैसला किया है कि भारतीय आयुध निर्माण फैक्ट्री में इस टैंक का बड़े पैमाने और उत्पादन किया जाये।[11]

 
Arjun-Mk.1

जब पहले सेना में सेवा के लिए इसे स्वीकार कर लिया गया तब अर्जुन विदेशी घटकों और प्रौद्योगिकी पर भारी रूप से निर्भर था। प्रारंभ में टैंक के घटकों में से 50% के करीब आयात किये गए, जिसमें इंजन, ट्रांसमिशन, बंदूक बैरल, पटरियों, और फायर नियंत्रण प्रणाली शामिल थे।[12] हालांकि, इनमें से कई को बाद में स्वदेशी सिस्टम के द्वारा प्रतिस्थापित (रिप्लेस) किया गया या भारतीय कंपनियों द्वारा आपूर्ति की जा रही है। सेना के सूत्रों से हाल ही में टिप्पणी से संकेत मिलता है कि रूसी टी -90 के गर्म मौसम में प्रदर्शन के मुद्दों के बावजूद टैंक भविष्य के बल का मुख्य आधार बने रहेंगे।[13][14]

अर्जुन परियोजना ने गंभीर बजट कटौतियों और बार-बार देरी का सामना किया जिसके कारण इसके विकास में 37 से अधिक वर्षों का समय लगा। सरकार ने मई 1974 में प्रारंभिक डिजाइन के लिए ₹155 लाख (यूएस $ 2.3 मिलियन) को मंजूरी दी, जबकि 1995 तक, डीआरडीओ विकास पर बदलती जरूरतों और मुद्रास्फीति के कारण ₹ 3 अरब (अमेरिका 44.6 $ मिलियन) खर्च कर चुका था।[10]

उत्पादन और विकास संपादित करें

भारतीय सेना ने 2000 में $471.2 मिलियन की लागत के 124 अर्जुन का आदेश दिया।[15]

अर्जुन का प्रारंभिक विकास संस्करण 43 आर्मर्ड रेजिमेंट के पास थे जो 2001 की गणतंत्र दिवस परेड में प्रदर्शन में दिखाया गया।[16] 16 उत्पादन संस्करण अर्जुन टैंकों की पहली खेप वर्ष 2004 में प्राप्त हुई और वे 43 आर्मर्ड रेजीमेंट को एक स्क्वाड्रन के रूप में प्रदान किये गए।[17] रेजिमेंट को बाद में 25 मई 2009 को 45 टैंकों के का कर दिया गया, इससे भारतीय सेना के पहले अर्जुन रेजिमेंट का निर्माण हुआ।[18] 100 से अधिक टैंक जून 2011 से भारतीय सेना को दिए गए। 75 बख्तरबंद रेजिमेंट नवीनतम रेजिमेंट है जो पूरी तरह से अर्जुन टैंक से सुसज्जित है ये आखिरी रेजिमेंट भी थी जिसके पास टी-55 टैंक थे।[19]

अपग्रेड संपादित करें

अर्जुन मार्क-1A संस्करण, इसके लिए सुधार के हिस्से के रूप में विकसित किया गया है। डीआरडीओ स्वत: लक्ष्य लोकेटिंग, ट्रैकिंग और विनाश जैसे क्षेत्रों में प्रदर्शन में सुधार के क्रम में एमबीटी अर्जुन के लिए नई प्रौद्योगिकी प्रणालियों को विकसित करने के लिए कार्य कर रहा है।[20] अर्जुन एमके-द्वितीय संस्करण भारतीय सेना की भागीदारी और समन्वय के साथ विकसित किया जा रहा है और इसमें मांगे जा रहे अनेक मॉडिफिकेशन किये जायंगे।

डीआरडीओ ने टैंक अर्बन सर्वाइवल किट को विकसित किया है जो अर्जुन के लिए सुधार की एक शृंखला का हिस्सा है ताकि इसकी शहरी वातावरण में लड़ने की क्षमता को बढ़ाया जा सके, इसमें लेजर चेतावनी, आईआर जैमर, और एयरोसोल स्मोक ग्रेनेड प्रणाली की तरह बचाव के साधन लगाये गए हैं।[21][22]

सीवीआरडीई ने टैंक सिम्युलेटर विकसित किया है।[20] डीआरडीओ ने एक लेजर चेतावनी नियंत्रण प्रणाली (LWCS), इस्राएल के एल्बिट लिमिटेड के साथ सहयोग से विकसित की है जिसे रेजिमेंट के स्तर पर अर्जुन पर सुसज्जित किया जायेगा। LWCS बचाव का साधन है जो लड़ाई के मैदान में टैंक के सिग्नेचर को कम करता है और सर्वाइवल में सुधार करता है। डीआरडीओ भी गुड़गांव स्थित निजी क्षेत्र की रक्षा निर्माता बाराकुडा केमोफ्लाजिंग सिस्टम्स लिमिटेड के साथ मोबाइल केमोफ्लाजिंग प्रणाली (MCS) प्रौद्योगिकी को सह-विकसित कर रहा है। एमसीएस टैंक सेंसर और दुश्मन के स्मार्ट हथियारों की प्रणाली के सभी प्रकार से हस्तक्षेप का खतरा कम करने में मदद करता है। अपग्रेड में नया 1500 एचपी का इंजन भी शामिल है।[23][24] एक एंटी-हेलीकाप्टर राउंड का भी विकास किया जा रहा है।[11]

स्पेसिफिकेशन्स संपादित करें

वज़न में 58.5 टन, अर्जुन टैंक सोवियत लेजेसी टैंकों से भारी है जिसका अभी भारतीय सेना द्वारा वर्तमान में इस्तेमाल किया जाता है। जिसके कारण सेना के रसद परिवहन व रेल कारों बड़ा को इसके परिवहन हेतु मॉडिफाई करना पड़ा। आवश्यक परिवर्तन करने के बाद हालांकि पूरी परियोजना की लागत बढ़ गई।

अर्जुन मार्क 1A संपादित करें

 
अर्जुन मार्क 1A
 
अर्जुन मार्क 1A DefExpo 2014 में

अर्जुन मार्क 1A एक तीसरी पीढ़ी का उन्नत टैंक है। इसका विकास पहले संस्करण के विकास से प्राप्त अनुभव के कारण 1A साल में पूरा किया गया।[25] तुलनात्मक परीक्षणों के दौरान इसने रुसी टी-90 को हरा दिया।[26] परीक्षणों के संबंध में, रक्षा मंत्रालय ने प्रेस विज्ञप्ति में सूचना दी-"परीक्षण और क्लेश के कई साल बाद अब यह विभिन्न परिस्थितियों में अपने शानदार प्रदर्शन से इसने अपने आप को लायक साबित कर दिया है। जैसे- बीहड़ रेत के टीलों के ऊपर क्रॉस कंट्री ड्राइविंग, जल्दी से मुठभेड़ लक्ष्यों का पता लगाना और अवलोकन करना, दोनों स्थिर और चलती हुई स्थिति में सटीकता के साथ सही लक्ष्यों को मारना। इसकी श्रेष्ठ आग शक्ति सटीक और त्वरित लक्ष्य प्राप्ति की क्षमता पर आधारित है। लड़ाई के दौरान सभी प्रकार के मौसम में दिन और रात के दौरान कम से कम संभव प्रतिक्रिया समय में समर्थ है।" नए टैंक की अग्नि नियंत्रण प्रणाली 90% से अधिक हिट करने की संभावना है। नए टैंक में संचार प्रणालिय और नई नेविगेशन प्रणाली में सुधार किया गया है।

अर्जुन मार्क 2 में 13 प्रमुख सुधार सहित 93 उन्नयन(अपग्रेड) सुधार किये गये हैं। जैसे: लंबी दूरी के ठिकानों के खिलाफ मिसाइल फायरिंग क्षमता, रात में प्रभावी ढंग से लक्ष्य संलग्न करने के लिए नाईट विज़न पैरानॉमिक साईट के साथ, गोला बारूद के लिए कंटेनर, इनहेनस्ड मुख्य हथियार पेनीट्रेशन, अतिरिक्त गोला बारूद के प्रकार, विस्फोटक प्रतिक्रियाशील कवच, हेलीकाप्टरों संलग्न (Engage) करने के लिए एक उन्नत वायु रक्षा बंदूक, एक खदान हल (Land mine plough), एक उन्नत भूमि नेविगेशन प्रणाली और चेतावनी प्रणाली जो लेजर मार्गदर्शन को भ्रमित करने के लिए स्मोक ग्रेनेड फायर कर सके।[27] अन्य उन्नयन सुधार एक इनहेनस्ड सहायक शक्ति इकाई (पॉवर यूनिट) 8.5 किलोवाट (4.5 किलोवाट से) और एक बेहतर बंदूक बैरल[28], कमांडर के परिदृश्य दृष्टि में ऑय सेफ LRF के साथ परिवर्तन, ड्राइवर के लिए नाईट विज़न क्षमता, डिजिटल नियंत्रण हार्नेस, नई फाइनल ड्राइव, ट्रैक और स्प्रोकेट आदि हैं।[29] अर्जुन मार्क 2 में एक उन्नत हाइड्रोन्यूमेटिक सस्पेंशन प्रणाली है जो चालक दल के लिए बहुत अच्छी सुविधा प्रदान करता है, इस टैंक को भी सहायक विद्युत इकाई के साथ फिट किया गया है। जो सभी प्रणालियों को शक्तियां देगा जब मुख्य इंजन बंद कर दिया हो। यह टैंक लैंड माइन प्लो के साथ फिट किया जा सकता है।

नया संस्करण बेहतर मिसाइल फायरिंग क्षमताओं के साथ और मिसाइल को 2 किलोमीटर की दूरी पर फायर कर सकता हैं।[30][31]

अर्जुन टैंक के पतवार और बुर्ज को 59-64 टन से 55 टन का लक्ष्य वज़न को प्राप्त करने के लिए संशोधित किया गया है। Elbit कम्पनी इसकी मारक क्षमता और युद्ध के मैदान में अस्तित्व को बढ़ाने के लिए मदद कर रहा है और इजरायल मिलिट्री इंडस्ट्रीज अर्जुन मार्क 2 की गतिशीलता बढ़ाने, इसके बुर्ज और पतवार को नया स्वरूप देने और इसके उत्पादन लाइन प्रक्रियाओं में सुधार करने के लिए मदद कर रहा है। बुर्ज में स्थानीय स्तर पर विकसित विस्फोटक प्रतिक्रियाशील कवच मॉड्यूल के साथ-साथ संरक्षण में सुधार के लिए कंचन कवच का उपयोग किया गया है।[उद्धरण चाहिए]

टैंक को राजस्थान के पोखरण फायरिंग रेंज क्षेत्र में 2012 में विकास संबंधी परीक्षणों से गुजरना पड़ा। जो 19 मानकों पर ध्यान देने के साथ दो महीने के लिए जारी रखा गया। डीआरडीओ ने इन परीक्षणों की सफलता के बाद भारतीय सेना के लिए 124 अर्जुन मार्क 2 टैंक का उत्पादन शुरू कर दिया। टैंक कमांडर के थर्मल इमेजिंग (TO) नाईट विज़न, "हंटर-किलर" मोड में टैंक के ऑपरेशन, इसकी मुख्य बंदूक से टैंक की मिसाइल फायरिंग क्षमता, लेजर मिसाइल चेतावनी और काउंटर उपाय प्रणाली के महत्वपूर्ण उन्नयन को परीक्षण किया गया।[32]

मार्क 2 संस्करण ने 2012 और 2013 में उपयोगकर्ता परीक्षण पूरा कर लिया।[33][34]

 
अर्जुन मार्क 2 DefExpo 2016 में प्रदर्शन के दौरान

अगस्त 2014 में, शीर्ष रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने नए सिरे से 118 अर्जुन मार्क 2 टैंक के लिए एक 6,600 करोड़ रुपये की निकासी की। यूपीए की सरकार ने पहले ही 118 अर्जुन मार्क 2 को मंजूरी दी थी। हालाँकि मंजूरी के बाद सेना के दो साल प्रोटोटाइप टैंक के मूल्यांकन में निकल गए। अब नए नवीकरण के अनुसार सेना को भारी वाहन फैक्टरी, अवादी से परीक्षण पूरे होने पर टैंकों का ऑर्डर करने के लिए अनुमति दी गई है।

FMBT संपादित करें

फ्यूचर एमबीटी (FMBT) मूल रूप से एक नया टैंक डिजाइन है जिसे 2025 में शामिल करने की योजना है। FMBT कार्यक्रम का उद्देश्य डिजाइन में वज़न कम करना है जिससे इसे 50 टन का एक हल्का टैंक बनाया जा सके। [35][36] हालांकि, इस विचार को छोड़ दिया गया था क्योंकि इस तरह की टैंक डिजाईन टेक्नोलॉजी को तब तक विकसित नहीं किया गया था। सुझाव दिया है कि इजरायल के मीरकावा टैंकों से सुझाव लेकर अर्जुन एमके 2 टैंकों को ही विकसित किया जाये और अपग्रेड किया जाये। भविष्य के टैंक अर्जुन के आधार पर बनाये जायेंगे उनमें वे सभी नई प्रौद्योगिकियाँ शामिल की जायेंगी जो नए टैंक्स में होती हैं।[37]

संचालक (ऑपरेटर्स) संपादित करें

124 MK1 सेवा में और 118 MK2 खरीद में[38][39][40]

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. PTI, May 17, 2010, 02.27pm IST (17 मई 2010). "Army places fresh order for 124 more Arjun tanks - द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया". Timesofindia.indiatimes.com. मूल से 7 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 दिसंबर 2010.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  2. Arjun specifications Archived 2009-02-01 at the वेबैक मशीन india-defence.com
  3. "Arjun MBT weight implications | Frontier India - News, Analysis, Opinion". Frontier India. 27 जून 2007. मूल से 26 सितंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 दिसंबर 2010.
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  5. "Army places fresh order for 124 more Arjun tanks". Times of India. 17 May 2010. मूल से 7 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जनवरी 2017.
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  8. Joshi, Saurabh (25 May 2009). "Army gets first Arjun regiment". StratPost - South Asian Defense and Strategic Affairs. मूल से 29 मई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 December 2011.
  9. "Arjun Tank inducted into 75 armoured regiment". The Times of India. 12 March 2011. मूल से 3 नवंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जनवरी 2017.
  10. Smith, Chris (1994). India's Ad hoc Arsenal: Direction or Drift in Defence Policy?. Sipri. पपृ॰ 148–151. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-829168-8. अभिगमन तिथि 23 April 2008.
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  12. "Microsoft Word - 22-10 i.rtf" (PDF). मूल (PDF) से 29 मई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जनवरी 2017.
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  14. "ARDE Achievements". Drdo.gov.in. 22 July 2010. मूल से 21 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 June 2011.
  15. India, Frontier. "Indian MoD outlines roadmap for MBT Arjun, Mark II in pipeline | Frontier India Strategic and Defence - News, Analysis, Opinion". Frontierindia.net. मूल से 12 फ़रवरी 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 February 2010.
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  17. "Arjun rumbles to life, Army raises maiden regiment" Archived 2019-07-13 at the वेबैक मशीन Hindustan Times, 26 May 2009
  18. Bedi, Rahul (21 September 2005). "System failures stall Arjun trials". Jane's Information Group. मूल से 8 February 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 October 2008.
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  37. "DRDO's Combat Vehicle Development Unit Is". The Times of India. 31 July 2010. मूल से 11 अगस्त 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 June 2011.
  38. "FMBT to focus on weight reduction of battle tanks, says DRDO chief". Indian Express. 6 January 2013. मूल से 8 फ़रवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 February 2013.
  39. "Defence ministry scraps Rs 6,000cr tender for purchase of 197 helicopters". Times Of India. 29 August 2014. मूल से 29 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 August 2014.
  40. Arjun Mk-2 offers enhanced firepower, but it’s too heavy to go where the Army wants it Archived 2014-09-03 at the वेबैक मशीन forceindia.net

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें