आभीर

प्राचीन भारतीय महाकाव्यों और धर्मग्रंथों में वर्णित क्षत्रिय लोग

आभीर [1][2][3][4][5] प्राचीन भारतीय महाकाव्यों और धर्मग्रंथों में वर्णित पौराणिक लोग थे। [6][7][8][9] आभीरों का पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम क्षेत्रों पर प्रभुत्व था। पुराण ग्रंथ आभीरों को सौराष्ट्र और अवंती से जोड़ते हैं [10] यदुु (अंग्रेज़ी: Yadus) बहुत प्रारंभिक काल से सिंधु-सरस्वती घाटी में रहे होंगे।[11][12] भागवत धर्म को मुख्य रूप से आभीरों का धर्म माना जाता था और कृष्ण स्वयं आभीर के रूप में जाने जाते थे।[13]

व्युत्पत्ति

व्युत्पत्ति के अनुसार, वह जो हर तरफ भय पैदा करता है उसे आभीर (अहीर) कहा जाता है।[14] कई इतिहासकारों के अनुसार अ-भीर का अर्थ निडर होता है।[15][16][17] चट्टोपाध्याय अन्नपूर्णा के अनुसार आभीर (आभी+र + ए) साहित्यिक का अर्थ है जो डराता है या भय का कारण बनता है।[18] अमरकोश में बल्लव एवं आभीर को गोप का पर्यायवाची बताया गया है।[19]

अहीर क्षत्रियों को गायों की रक्षा व पालन के कारण गोप व गोपाल की संज्ञा दी गयी। उस अवधि में (500 ईसा पूर्व से 1 ईसा पूर्व तक) जब भारत में पालीभाषा प्रचलित थी, गोपाल शब्द को संशोधित किया गया था एवं गोपाल' शब्द को 'गोआल' में बदल दिया गया और आगे संशोधन करके इसे 'ग्वाल' का रूप दे दिया गया। एक अज्ञात कवि ने एक श्लोक में इसका उपयुक्त वर्णन किया है कि "गोपालन के कारण यादव को 'गोप' कहा गया हैं और 'गोपाल' कहलाने के बाद, वे 'ग्वाल' कहलाते हैं।[20]

उत्पति इतिहास

महाभारत के अनुसार, आभीर समुद्र के किनारे गुजरात में सोमनाथ के पास एक नदी सरस्वती के तट पर रहते थे। सर हेनरी इलियट का कहना है कि भारत के पश्चिमी तट पर ताप्ती से देवगढ़ तक के देश को आभीर कहा जाता है।[21]

महाभारत में आभीर, गोप, गोपाल और यादव सभी पर्यायवाची हैं। अमरकोश में गोप, गोपाल, गोसंख्य, गोधुक और बल्लव का उल्लेख आभीर के पर्यायवाची के रूप में किया गया है और कहा गया है कि जिस गाँव या स्थान पर आभीर रहते थे उसका नाम घोष या आभीरपल्ली है।[22]

आभीर जाति के संबंध में कहा जाता है कि इस जाति के लोगों का किसी समय सारे भारत पर अधिकार था। ये लोग पहले भारत के पश्चिमी भाग में बसे थे। पुराणों के आधार पर ताप्ती नदी से देवगढ़ तक के पश्चिमी किनारे को 'आभीर' नाम दिया गया है जिसका अर्थ है 'ग्वालों' का देश। आठवीं शती से जब कट्टी जाति ने गुजरात को अपना घर बनाया तब उसने गुजरात के अधिकांश प्रदेश आभीरों के अधिकार में पाया। किसी समय आभीर नेपाल के भी शासक थे। नौवीं शती से ग्यारहवीं शती तक के बंगाल के पाल राजा भी आभीरों से संबंधित माने जाते हैं। बृज में बहुत प्राचीन काल से यह आभीर जाति रहती आ रही है। पुराणों में सबसे प्राचीन माने जाने वाले विष्णु पुराण में कृष्ण कहते हैं, उनकी जाति के लोगों के पास न तो कोई भूमि है और न कोई घर ही है। वे अपने पशुओं को लिए चारों तरफ घूमा करते हैं, अतः पशु और पर्वत ही उनके देवता हैं और उन्हें इंद्र की पूजा करने की आवश्यकता नहीं है। उक्त पुराण में ही कृष्ण की करने वाली जाति घुमक्कड़ प्रवृत्ति का निम्नलिखित संकेत मिलता है, जब कंस के कारागृह से वसुदेव मुक्त हुए तब वे नंद के यान के पास गए और वहां पुत्र जन्म प्रफुल्लित नंद को देखा। इससे यह पता चलता है कि नंद और उनका परिवार यान में ही निवास करता था। भंडारकर का मत है कि कृष्ण के पालक पिता नंद और माता यशोदा का संबंध इसी आभीर जाति से था जो संप्रित अहीर कहलाती है। पुराणों के अनुसार, वसुदेव और नंद, चचेरे भाई थे। और गोकुल के क्षत्रिय प्रमुख थे।[23][24]

विष्णुपुराण, में अपरान्त अथवा वर्तमान कोंकण और सौराष्ट्र को आभीर देश माना गया है जिसकी पुष्टि वराहमिहिर ने भी की है। हरिवंश, उनका स्थान मधुवन से द्वारका के समीप तक का प्रदेश मानता है। ब्रह्मसूत्र, में जो अत्यंत प्राचीन रचना, आभीरों को दक्षिणवासी कहा गया है तथा ब्रह्मसूत्र के रचनाकाल तक उनका आवास भारत के दक्षिण-पश्चिमी प्रदेश में था।[25]

पद्म पुराण मेंं, विष्णु ने आभीरों को सूचित करते हुए कहा, "हे आभीरों मैं अपने आठवें अवतार में तुम्हारे आभीर कुल में जन्म लूंगा, जो यह स्पष्ट करता है कि आभीर वही थे जो मथुरा के गोप या बल्लव थे। वही पुराण आभीरों को महान तत्त्वज्ञान कहता है।[26][27][28][29][30]

प्राकृत-हिन्दी शब्दकोश के अनुसार अहिर, अहीर व अभीर समानार्थी शब्द हैं।[31] हिन्दी क्षेत्रों में अहीर तथा यादव शब्द प्रायः परस्पर समानार्थी माने जाते हैं।.[32]तमिल भाषा के एक-दो विद्वानों को छोडकर शेष सभी भारतीय विद्वान इस बात से सहमत हैं कि अहीर शब्द संस्कृत के अभीर शब्द का तद्भव रूप है।[33]

आभीर एक कुलिन जाति है।[34] यादव वंश प्रमुख रूप से आभीर (वर्तमान अहीर),[33] अंधक, व्रष्णि तथा सत्वत नामक समुदायों से मिलकर बना था, जो कि भगवान कृष्ण की पूजा करते थे। [35][36] आभीरों को वृत्य क्षत्रिय कहा जाता था।[37] महाभारत में भी युद्धप्रिय, घुमक्कड़, गोपाल अभीरों का उल्लेख मिलता है।[38] आभीरों का उल्लेख अनेक शिलालेखों में पाया जाता है। शक राजाओं की सेनाओं में ये लोग सेनापति के पद पर नियुक्त थे। आभीर राजा ईश्वरसेन का उल्लेख नासिक के एक शिलालेख में मिलता है। ईस्वी सन्‌ की चौथी शताब्दी तक अभीरों का राज्य रहा। अंततोगत्वा कुछ अभीर नयी जाती राजपूत जाति में अंतर्मुक्त हुए व कुछ अहीर कहलाए।[39] कुछ विद्वान देवगिरि के यादवों को आभीर ही मानते हैं।[40]

गुजरात के आभीर अशोक के काल के राष्ट्रिक और महाभारत काल के यादव थे। इस क्षेत्र में अनेक बार गणतन्त्र प्रणाली अपनायी जाती रही है। महाभारत के काल में यहाँ यादवों के अंधक वृष्णि और भोज गणतन्त्र थे, अशोक के काल में यहां राष्ट्रिक और भोज गणतंत्र थे। और खारवेल के काल में रठिक और भोज गणतंत्र थे। समुद्रगुप्त के काल में यहाँ आभीर थे और पुराणों के अनुसार यहाँ सौराष्ट्र और अबन्ति-आभीरों के गणतंत्र थे।[41]

पाणिनि, चाणक्य और पतंजलि जैसे प्राचीन संस्कृत विद्वानों ने अहीरों को हिंदू धर्म के भागवत संप्रदाय के अनुयायी के रूप में वर्णित किया है।[42]

भगवान कृष्ण ने दुर्योधन को महाभारत में लड़ने के लिए जो नारायणी सेना दी थी वह आभीर क्षत्रियों की ही थी।

महाभारत के सभा-पर्व और भीष्म-पर्व खंडों में अभीर प्रांत का उल्लेख है जो प्राचीन सिंध में सरस्वती नदी के पास स्थित था, शास्त्रों में सुर और अभीर को एक साथ सुरभीर कहा गया है बाद के कार्यों ने दोनों के बीच भेदभाव नहीं किया कई विद्वानों ने ओफिर और सोफिर के बाइबिल संदर्भों के साथ भारतीय अभीर और सुरभीर के बीच एक लिंक की मांग की

टॉलेमी ने लिखा है कि सिंधु नदी के मुहाने पर आभीर नाम का एक देश था श्रीमद भागवतम ने इसी तरह का लेखा-जोखा दिया और सिंध के स्थान का मिलान किया इंडिश अल्टरथमस्कंडे, खंड के लेखक क्रिश्चियन लासेन (1800-1876) ने सोचा कि "ओफिर" भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर एक बंदरगाह था। श्रीमती मैनिंग ने कहा कि यह भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है। गेसेनियस, सर इमर्सन टेनेन्ट और मैक्स मुलर ईसाई लस्सेन से सहमत दिखाई दिए। इस सापेक्ष सर्वसम्मति के कारण आम धारणा है कि अभीरा ओफिर के समकक्ष है जिसका उल्लेख बाइबिल में किया गया है। कॉप्टिक भाषा में सोफिर, भारत का नाम सुरभीर को संदर्भित करता है।

पुराणों के अनुसार

मार्कण्डेय ऋषि के अनुसार, परशुराम के नेतृत्व में हुए एक नरसंहार में सभी हैहेय क्षत्रिय हमलावर (योद्धा जाति) मारे गए थे। उस समय में, अहीर या तो हैहय के उप-कबीले थे या हैहय के पक्ष में थे। पहाड़ों के बीच गड्ढों में भागकर केवल आभीर ही बच गए। ऋषि मार्कंडेय ने टिप्पणी की कि "सभी हैहेय क्षत्रिय योद्धा मारे गए हैं लेकिन आभीर बच गए हैं, वे निश्चित रूप से कलियुग में पृथ्वी पर शासन करेंगे।" वात्स्यायन ने कामसूत्र में आभीर साम्राज्यों का भी उल्लेख किया है। आभीर के युधिष्ठिर द्वारा शासित राज्य के निवासी होने के संदर्भ भागवतम में पाए जाते हैं।[43][44]

गुप्त राजवंश का खाता भागवतम में वर्णित आभीर राजाओं से मेल खाता है। कई विद्वानों का मानना ​​है कि गुप्त और मौर्य दोनों ही अभीर थे।[45][46]

आजकल की अहीर जाति ही प्राचीन काल के आभीर हैं।[34][47] सौराष्ट्र के क्षत्रप शिलालेखों में भी प्रायः आभीरों का वर्णन मिलता है। पुराणों व बृहतसंहिता के अनुसार समुद्रगुप्त काल में भी दक्षिण में आभीरों का निवास था।[48] उसके बाद यह जाति भारत के अन्य हिस्सों में भी बस गयी। मध्य प्रदेश के अहिरवाड़ा को भी आभीरों ने संभवतः बाद में ही विकसित किया। राजस्थान में आभीरों के निवास का प्रमाण जोधपुर शिलालेख (संवत 918) में मिलता है, जिसके अनुसार आभीर अपने हिंसक आचरण के कारण निकटवर्ती इलाकों के निवासियों के लिए आतंक बने हुए थे।[49]

यद्यपि पुराणों में वर्णित आभीरों की विस्तृत संप्रभुता 6ठवीं शताब्दी तक नहीं टिक सकी, परंतु बाद के समय में भी आभीर राजकुमारों का वर्णन मिलता है, हेमचन्द्र के "दयाश्रय काव्य" में जूनागढ़ के निकट वनथली के चूड़ासमा राजकुमार गृहरिपु को यादव व आभीर कहा गया है। 10 वीं शताब्दी ईस्वी के मध्य में आभीर राजा ग्रहरिपु के शासनकाल के दौरान आभीर बहुत शक्तिशाली हो गए थे। उनकी राजधानी वामनस्थली में थी, जो अब जूनागढ़ से 9 मील पश्चिम में वनथली गांव का प्रतिनिधित्व करती है।[50] भाटों की श्रुतियों व लोक कथाओं में आज भी चूड़ासमा "अहीर राणा" कहे जाते हैं। अंबेरी के शिलालेख में सिंघण के ब्राह्मण सेनापति खोलेश्वर द्वारा आभीर राजा के विनाश का वर्णन तथा खानदेश में पाये गए गवली राज के प्राचीन अवशेष जिन्हें पुरातात्विक रूप से देवगिरि के यादवों के शासन काल का माना गया है, यह सभी प्रमाण इस तथ्य को बल देते हैं कि आभीर यादवों से संबन्धित थे। आज तक अहीरों में यदुवंशी अहीर नामक उप जाति का पाया जाना भी इसकी पुष्टि करता है।[51]

इन्हें भी देखें

संदर्भ

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  23. Bhakti ke Aayaam. Vani Prakashan. आभीर जाति के संबंध में कहा जाता है कि इस जाति के लोगों का किसी समय सारे भारत पर अधिकार था। ये लोग पहले भारत के पश्चिमी भाग में बसे थे। पुराणों के आधार पर ताप्ती नदी से देवगढ़ तक के पश्चिमी किनारे को 'आभीर' नाम दिया गया है जिसका अर्थ है 'ग्वालों' का देश। आठवीं शती से जब कट्टी जाति ने गुजरात को अपना घर बनाया तब उसने गुजरात के अधिकांश प्रदेश आभीरों के अधिकार में पाया। किसी समय आभीर नेपाल के भी शासक थे। नौवीं शती से ग्यारहवीं शती तक के बंगाल के पाल राजा भी आभीरों से संबंधित माने जाते हैं। ब्रज में बहुत प्राचीन काल से यह आभीर जाति रहती आ रही है। पुराणों में सबसे प्राचीन माने जाने वाले विष्णु पुराण में कृष्ण कहते हैं, उनकी जाति के लोगों के पास न तो कोई भूमि है और न कोई घर ही है। वे अपने पशुओं को लिए चारों तरफ घूमा करते हैं, अतः पशु और पर्वत ही उनके देवता हैं और उन्हें इंद्र की पूजा करने की आवश्यकता नहीं है। उक्त पुराण में ही कृष्ण की करने वाली जाति घुमक्कड़ प्रवृत्ति का निम्नलिखित संकेत मिलता है, जब कंस के कारागृह से वसुदेव मुक्त हुए तब वे नंद के यान के पास गए और वहां पुत्र जन्म प्रफुल्लित नंद को देखा। इससे यह पता चलता है कि नंद और उनका परिवार यान में ही निवास करता था। भंडारकर का मत है कि कृष्ण के पालक पिता नंद और माता यशोदा का संबंध इसी आभीर जाति से था जो संप्रित अहीर कहलाती है।
  24. Soni, Lok Nath (2000). The Cattle and the Stick: An Ethnographic Profile of the Raut of Chhattisgarh (अंग्रेज़ी में). Anthropological Survey of India, Government of India, Ministry of Tourism and Culture, Department of Culture. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85579-57-3. The story goes that Krishna was a prince of royal blood, the son of Vasudeva. He lived with Nanda, who was also a king and Kshatriya by caste. Vasudeva and Nanda were brothers When Vasudeva knew that Nanda has come to Mathura to pay the taxes of King Kansa, he went to his brother Nanda. The point that the Abhira are Kshatriyas and specifically Yaduvansi. In Harivamsa Purana, it has been said that Gopas and Yadav are generic of same lineage and they are called Gope or Yadav.
  25. Kelakara, Ra Śa (1966). Marāṭhī-Hindī Kr̥shṇakāvya kā tulanātmaka adhyayana; 11vīṃ se 16vīṃ śatābdī taka. Akshara Prakāśana. विष्णुपुराण' में अपरान्त अथवा वर्तमान कोंकण और सौराष्ट्र को आभीर देश माना गया है जिसकी पुष्टि वराहमिहिर ने भी की है। हरिवंश' उनका स्थान मधुवन से द्वारका के समीप तक का प्रदेश मानता है। ब्रह्मसूत्र में जो अत्यंत प्राचीन रचना, आभीरों को दक्षिणवासी कहा गया है तथा ब्रह्मसूत्र के रचनाकाल तक उनका आवास भारत के दक्षिण पश्चिमी प्रदेश में था।
  26. Singh, Upinder (2016). History of Ancient India (Hindi). Pearson India. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-325-8472-3. पद्म पुराण में यह कहा गया कि विष्णु का आठवां अवतार आभीर जाति में कहा गया।
  27. Bhattacharya, Sunil Kumar (1996). Krishna-cult in Indian Art (अंग्रेज़ी में). M.D. Publications Pvt. Ltd. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7533-001-6. The Padma Purāṇa relates that Vishnu informed the Abhiras: "I shall be born amongst you, O Abhiras, at Mathura in my eighth birth", which makes it evident that the Ābhīras were the same as the Gopas or Ballavas of Mathura. The same Purāṇa mentions that the Abhiras were also the great philosophers.
  28. Padmapurāṇam: Sr̥ṣtikhaṇḍātmakaḥ prathamo bhāgaḥ. Caukhambā Saṃskr̥ta Sīrīja Āphisa. 2007. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7080-233-4. तदनन्तर भगवान् विष्णु ने कहा हे गोप लोगो! तुम्हारी यह कन्या बड़ी भाग्यशालिनी है जो ब्रह्माजी को प्राप्त हुई है। जिसको वेद जाननेवाले योगी लोग प्रार्थना करने पर भी प्राप्त नहीं कर सकते उस गति को तुम्हारी दुहिता (पुत्री) ने प्राप्त किया है। आपलोगों को धार्मिक सदाचारी जान मैने ही यह कन्या ब्रह्माजी को दी है। इसने आपके कुल को तार दिया है। मैं भी देवकार्य के लिये आपके कुल में अवतार ग्रहण करूंगा। ऐसा सुन गोपों ने कहा हे देव! आपका यह वर सत्य हो आप हमारे कुल में धर्मसाधन के लिये अवतार धारण करें। आपके दर्शनमात्र से में हमलोग कृतार्थ हो जायेंगे।
  29. Rawat, Chandrabhan (1967). Mathurā jile kī bolī. Hindustānī Ekeḍemī. अवतार लेने के पूर्व विष्णु आभीरों को सावधान करते हैं आभीरो! मेरा आठवाँ जन्म मथुरा में तुम लोगों के यहाँ होगा।
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