भारत में आर्थिक नियोजन

भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था है, जिसमें निजी क्षेत्रा एवं सार्वजनिक क्षेत्रा का सह-असितत्व है। भारत में समाजवादी व्यवस्था पर आधारित विकास प्राप्त करने हेतु मार्च 1950 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक सांविधक संस्था 'योजना-आयोग का गठन किया। भारत में पंचवर्षीय योजनाओं को लागू करने हेतु योजना आयोग के साथ-साथ सन 1951 में राष्ट्रीय विकास परिषद का गठन किया। राष्ट्रीय विकास परिषद (छक्ब्) में सभी राज्यों के मुख्यमंत्राी एवं योजना आयोग के सदस्य शामिल होते हैं। भारतीय योजना कमीशन को मजबूत बनाने हेतु भारत सरकार ने सन 1965 में राष्ट्रीय योजना परिषद (छच्ब्) का गठन किया।

योजना आयोग का प्रमुख कार्य एक ऐसी योजना का निर्माण करना था जो देश के संसाधनों का कुशल एवं संतुलित रूप से उपयोग कर सके। योजना आयोग ने समयावधि 1950-56 के लिए प्रथम पंचवर्षीय योजना का निर्माण किया और इस प्रकार भारत में पंचवर्षीय योजनाओ की आधारशीला रखी गई। प्रधानमंत्राी इसका (योजना आयोग) का पदेन अध्यक्ष होता है तथा वह योजना आयोग के उपाध्यक्ष की नियुकित करता है जिसका दर्जा (रैंक) केबिनेट मंत्री के समान होता है, वर्तमान में मोटेक सिंह आहलूवलिया योजना आयोग के उपाध्यक्ष हैं। भारत में पंचवर्षीय योजनाओ का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय आय में तीव्र वृद्धि, बचत-निवेश में वृद्धि, आय की असमानताओं को कम करना, संतुलित क्षेत्रीय विकास, रोजगार के अवसरों का निर्माण, स्वयं स्फूर्ति, गरीबी उन्मूलन एवं अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण करना इत्यादि रहा है।

भारत पंचवर्षीय योजनाओ का संक्षिप्त विवरण

भारत में अब तक दस पंचवर्षीय योजनाएं पूर्ण हो चुकी है तथा वर्तमान में 11वी पंचवर्षीय (2007-2012 चल रही है।

  • 1.प्रथम पंचवर्षी योजना (1951-56) में तीव्र वृद्धि विकास पर बल दिया ताकि खाधान्न में आत्मनिर्भरता, मुद्रास्फीति को नियनित्रात एवं संतुलित विकास किया जा सके जिससे राष्ट्रीय आय एवं लोगो के जीवन स्तर को ऊँचा उठाया जा सके। इस योजना में कुल योजना में लगभग 206.8 बिलियन रूपये (कुल योजना खर्च से) सिंचाई क्षेत्र, ऊर्जा, कृषि एवं सामुदायिक विकास, यातायात, संचार, उधोग एवं सामाजिक सेवा क्षेत्र के लिए आबंटित किए गए।
  • 2.दूसरी पंचवर्षी योजना में (1956-61) मुख्यतया% तीव्र औधोगिकीकरण पर बल दिया जिसमें भारी एवं आधारभूत उधोग जैसे लौह एवं इस्पात, भारी केमिकल, भारी इंंजनियरिंग एवं मशीनरी उधोग इत्यादि शामिल हैं।
  • 3.तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-66) में स्वयंस्फूर्ति अर्थव्यवस्था बनाने पर बल दिया गया। इस उíेश्य को प्राप्त करने हेतु कृषि क्षेत्रा को आधुनिक बनाने एवं आधारभूत उधोगों के विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया गया। इस योजना में हरित-क्रांति पर ध्यान दिया गया जिससे भारतीय कृषि क्षेत्रा का विकास हुआ।
  • 4.चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74) में स्थायित्व के साथ वृद्धि एवं स्वयं स्फूर्ति का उद्देश्य रखा गया। इस योजना में राष्ट्रीय आय की औसत वृद्धि दर 5.5% थी।
  • 5.पांचवी योजना (1974-79) में रोजगार बढ़ाना, गरीबी उन्मूलन एवं सामाजिक न्याय के साथ संवृ) पर ध्यान दिया गया। इस योजना में स्वयं। स्मूर्ति (कृषि उत्पादन में) तथा रक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया। पांचवी पंचवर्षीय योजना केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार के चुने जाने से यह योजना चौथे वर्ष के अन्त मार्च 1978 में पूर्ण घोषित कर दी गई।
  • 6.जनता पार्टी की नई केन्द्र सरकार ने छठी योजना (1978-83) एक रोलिग (त्मससपदह) योजना के रूप में शुरू की जिसमें प्रत्येक वर्ष योजना का मूल्याकंन करने की अवधारणा रखी गई परन्तु इसमें केन्द्र में पुन% नए सिरे से शुरू की गई नेहरू माडल को आधार मानते हुए, भारतीय अर्थव्यवस्था का विस्तार करते हुए गरीबी की समस्या का समाधान को प्रमुखता की गई।
  • 7.सांतवी पंचवर्षीय योजना (1985-90) में तकनीकी सुधार पर बल देते हुए औद्योगिक उत्पादकता को बढ़ाने को प्रयास किया गया। इस योजना में खाधान्न उत्पादन एवं रोजगार के अवसरो को बढ़ाने पर भी ध्यान दिया गया।
  • 8.केन्द्र सरकार की अस्थिरता की वजह से आंठवी पंचवर्षीय योजना दो वर्ष बाद (1992-97) में लागू की गर्इ इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था आर्थिक संकट एवं भुगतान-शेष संकट, वित्तीय संकट ऊँची मुद्रास्फीति तथा औद्योगिक मंदी के दौर से गुजर रही थी। तब तत्कालीन प्रधानमंत्राी पी-वी- नरसिन्हा राव एवं वित्त मंत्राी डा- मनमोहन सिंह ने नए आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू किए जो कि 'निजीकरण उदारीकरण, वैश्वीकरण अर्थात् स्च्ळ पर आधारित थे। इनका उíेश्य आर्थिक विकास की दर को बढ़ाते हुए आम-आदमी के जीवन स्तर में सुधार करना था।
  • 9.नवी पंचवर्षीय योजना (1997-2002) का प्रमुख उíेश्य सामाजिक न्याय के साथ संवृ)ि एवं समानता था। इस योजना में कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रा को प्राथमिकता देते हुए रोजगार के अवसर बढ़ाना एवं गरीबी को कम करना था।
  • 10.दसवी योजना (2002-07) का प्रमुख उíेश्य श्रम शकित की संवृ)ि को बढ़ाना एवं गरीबी की समस्या को कम करते हुए सामाजिक स्तर को ऊपर उठाना था। इस योजना में संतुलित क्षेत्राीय विकास पर बल दिया गया तथा कृषि क्षेत्रा में सुधार करते हुए कृषि को एक प्रमुख तत्त्व माना गया।
  • 11.ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) में तीव्र एवं गहन संवृ)ि पर बल दिया गया। इस योजना के अंतर्गत निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किये गये%-

ळक्च् वृद्धि दर 10%ए फार्म क्षेत्रा की सवृ)ि 4%ए 7 करोड़ नए रोजगार अवसर उत्पन्न करना, आधारभूत स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना ताकि शिशु मृत्युदर 28ध्1000 से कम होकर 1ध्1000 हो जाए तथा मातृ मृत्यु दर को 1 प्रति हजार तक कम करना। इस योजना में 2009 र्इ- तक सभी गाँवों तक बिजली मुहैया कराने एवं ब्राडबैंड सुविधा सभी घरों तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया।

भारतीय योजनाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन संवृ)ि (ळतवूजी) - भारतीय पंचवर्षीय योजनाओं का आधारभूत लक्ष्य राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यकित आय को बढ़ाना रहा है। योजनाकाल में यधपि राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यकित आय में वृ)ि हुर्इ है, परन्तु योजनाकारों या आयोजनकारों द्वारा अपेक्षित लक्ष्य की प्रापित नहीं हो सकी। टेबल एक के अनुसार भारत की ळक्च्ए छक्च् एवं प्रति व्यकित छक्च् योजनाओं के प्रारम्भ से एक समान दर से वृ)ि नहीं दर्शाती बलिक इनकी वृ)ि दर में समय-समय पर उतार-चढ़ाव प्रतीत होते हैं। जैसे सन 1971-72 में भारत की ळक्च् वृ)ि 1% दर जबकि सन 1991-92 में यह 1.4% रही। सन 2002-03 की समयावधि में यह 3.8% जबकि 2004-05 से इसके बढ़ने की प्रवृत्ति रही।

यदि हम संवृ)ि का मूल्याकंन साधन लागत पर राष्ट्रीय आय के आधार पर करें तो टेबल 2 (भारतीय राष्ट्रीय आय 1993-94 की कीमतों पर) के अनुसार वास्तविक विकास की दर चौथी पंचवर्षीय योजना तक 2.8 से 4.3% के मध्य रही। जबकि पांचवी योजना में यह सुधरकर 4.8%ए छठी योजना में 5.7% जबकि नवी योजना में यह 5.4% रही।

स्वयं स्फूर्ति  -

स्वयं स्फूर्ति की धारणा का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था की सभी आवश्यकताएं घरेलू स्रोतो से पूर्ण करना या विदेशों से आयात करने की योग्यता को सुदृढ़ करना। स्वयं स्फूर्ति (ैमस-ित्मसपंदबम) एवं आत्मनिर्भरता में (ैमस ैिनपिबपमदबल) अन्तर है, आत्मनिर्भरता एक बंद अर्थव्यवस्था (ब्सवेमक म्बवदवउल) से संबंधित धारणा है, अर्थात् आवश्यकताओं की पूर्ति देश के अन्दर की पूरी करना। स्वयं स्फूर्ति की धारणा व्यापक है, इसमें अर्थव्यवस्था को विकास दर बढ़ाने हेतु इस योग्य बनाना ताकि वह अपने को आयात (पूंजी, तकनीकी इत्यादि) करने में सक्षम बना सके।

भारत में बचत की दर निम्न है, इसलिए पूंजी की कमी है तथा पूंजी निर्माण प्रक्रिया निम्न होने से निवेश कम है तथा परिणामस्वरूप उत्पादन, रोजगार के अवसर निम्न है जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को विदेशी सहायता पर निर्भर होना पड़ता है जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को विदेशी सहायता पर निर्भर होना पड़ता है जिससे भुगतान शेष प्रतिकूल हो जाते हैं। दूसरी योजना में तीव्र औधोगिकीकरण के कारण पूंजी आयात पर बल दिया जिससे भुगतान-शेष प्रतिकूल हो गया। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (थ्क्प्) की मात्राा बढ़ने से देश में पूंजी की कमी को पूरा करने का प्रयास किया जिससे रोजगार एवं उत्पादन प्रक्रिया आगे बढ़ सके। रोजगार सृजन-

राष्ट्रीय आय में वृ)ि के साथ रोजगार के स्तर में वृ)ि करना भी नियोजन का महत्त्वपूर्ण उíेश्य रहा है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि पूर्ण रोजगार की प्रापित है, अपितु योजनाकाल में पर्याप्त मात्राा में रोजगार के अवसरों का विकास करना ताकि संचित बेरोजगारी तथा नर्इ श्रम शकित के लिए रोजगार अवसर उपलब्ध हो सके। योजना आयोग के अनुसार आठवी पंचवर्षीय योजना के अंत तक संचित बेरोजगारों की संख्या लगभग 7.5 मिलियन थी।

दसवी पंचवर्षीय योजना के प्रारम्भ में बेरोजगार एवं अल्परोजगार व्यकितयों की संख्या कुल श्रम शकित का लगभग 9.21% था तथा बेरोजगार व्यकितयो की संख्या लगभग 35 बिलियन थी।

रोजगार संवृ)ि की दर 1999-2000 से 2004-05 के मध्य 1993-94 से 1999-2000 के तुलना में अपेक्षाकृत अधिक रही। 1999-2000 से 2004-05 के मध्य 47 मिलियन रोजगार के अवसर सृजित हुए जबकि 1993-94 से 1999-2000 के मध्य 24 मिलियन रहे थे। रोजगार संवृ)ि की दर 1.25% से बढ़कर 2.62 (1999-2000 से 2004-05) इसी समयावधि में बेरोजगारी की दर 7.31% से बढ़कर 8.28% हो गर्इ।

दसवी पंचवर्षीय योजना में बेरोजगारी की दर को 9.11% (2001-02) से कम करके 5-11% (2006-07) का लक्ष्य निèर्ाारित किया गया है। लेकिन छैैव् के अनुसार यह लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसका सबसे प्रमुख कारण महिला बेरोजगारी की दर, पुरूष बेरोजगारी की दर की अपेक्षाकृत तीव्र गति से वृ)ि हो रहा है। सार्वजनिक क्षेत्रा में रोजगार की दर कम होकर (0.80)% (1994-2004) रही जबकि निजी क्षेत्रा में यह कुछ सुधरकर औसत वार्षिक वृ)ि दर जो कि सन 1983-94 में 0.44% थी, से 1994-2004 के मध्य 0.61% हो गर्इ।

असमानता को कम करना -

भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख समस्या क्षेत्राीय, आय के स्तर, प्रति व्यकित आय में असमान वितरण की है पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्राीय असमानता को कम करने का प्रमुख उíेश्य रहा है इसके लिए औद्योगिक विकास पर बल दिया, जिसका लाभ मुख्यत% शहरी क्षेत्रा में ज्यादा पहुँचा है। उदारीकरण की नीति अपनाने के बाद उन राज्यों में इस नीति का लाभ ज्यादा पहुँचा है जो कि पहले से ही समृ) थे। समृ) राज्यों में ही शिक्षा स्वास्थ्य इत्यादि आधारभूत संरचनाएँ ज्यादा उन्नत हुर्इ है।

सन 1950 से 1973-74 के मध्य प्रति व्यकित आय का स्तर 1.5% वार्षिक दर से बढ़ा, हालांकि इस निम्न वृ)िदर का वितरण भी असमान रूप से हुआ। इसके साथ दसवी पंचवर्षीय योजना भी संतुलित क्षेत्राीय विकास का लक्ष्य प्राप्त करने में पूर्ण रूप से सफल नहीं हुर्इ। कुछ महत्त्वपूर्ण सर्वेक्षणों के अनुसार नए आर्थिक सुधारों जो कि नब्बे के दशक में शुरू किए गए थे, आय का वितरण समृ) राज्यों के अनुकूल एवं निर्धन राज्यों के प्रतिकूल रहा।

हालांकि योजना आयोग ने चौथी पंचवर्षीय योजना में स्वयं यह मानना है कि योजनाओं के लागू होने का ज्यादा लाभ समृ) राज्यों को मिला, जिससे क्षेत्राीय असंतुलन की समस्या एक प्रमुख समस्या के रूप में बनी हुर्इ है। गरीबी उन्मूलन -

भारत की सभी पंचवर्षीय योजनाओं का एक प्राथमिक उíेश्य गरीबी उन्मूलन रहा है। इसे कम करने में काफी हद तक सरकार ने सफलता भी प्राप्त की है, परन्तु प्राथमिक शिक्षा एवं आधारभूत स्वास्थ्य कार्यक्रमों के अपनाने के बावजूद गरीबी, निर्धन राज्यो की लक्षित दर प्राप्त नहीं की जा सकती। गरीबी निर्धन राज्यों में अधिक पार्इ जाती है हालांकि इसका एक अपवाद भी है जैसे केरल राज्य में प्रति व्यकित आय के कम (राष्ट्रीय औसत से) के बावजूद इस राज्य में साक्षरता की दर ऊँची तथा आधारभूत संरचना सुदृढ़ है। योजना आयोग ने यह महसूस किया कि अर्थव्यवस्था की संवृ)ि गरीबी उन्मूलन के लिए पर्याप्त नहीं है इसलिए गरीबी उन्मूलन हेतु अतिआवश्यक प्राथमिक लक्ष्य रहा है।

सन 1973-74 में प्रो- लकडवाला एवं डी-टी- के अनुसार 55% जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही थी। यह प्रतिशत अनुमानत% सन 1987-88 में कम होकर 39% रह गया। योजना आयोग के अनुमान के अनुसार 1993¬

94 में 36% जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे (ठच्स्) जीवन-यापन कर रही थी। निरपेक्ष रूप में 1973-74 से 1993-94 के बीच के दो दशको में लगभग 320 मिलियन निर्धन जनसंख्या थी।

योजना आयोग ने गरीबी का अनुमान श्छैैव्श् (नेशनल सेंपल सर्वे आर्गनाइजेशन) द्वारा लिए गए बड़े नमूना सर्वेक्षण के आèाार पर गृहस्थ उपभोक्ता व्यय के द्वारा लगाया गया। छैैव् के 61वें चक्र के आèाार पर ग्रामीण क्षेत्रा में गरीबी अनुपात 28.3% जबकि शहरी क्षेत्रा में यह 25.7% था, सम्पूर्ण देश (ग्रामीण एवं शहरी दोनों) में यह 27.5% (2004-05) में था। (न्दपवितउ त्मबंसस च्मतपवक पर आधारित उपभोग वितरण आंकड़ो के अनुसार)

इसी के सापेक्ष यह ग्रामीण क्षेत्रा में 21.8% शहरी क्षेत्रा में 21.7% जबकि सम्पूर्ण देश में 21.8% (2004-05) में था। (डपगमक त्मबंसस त्मतपवक पर आधारित आंकड़ो के अनुसार)

दसवीं पंचवर्षीय योजना में गरीबी अनुपात 1999-2000 में 26.1% से कम करके 2006-07 में 19.23% तक लाने का लक्ष्य रखा गया। हालांकि टेबल 4 के अनुसार यह लगभग 27.5% (न्त्च् के आधार पर) तथा लगभग 21.8% (डत्च् के आधार पर) भारत की जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही थी। सन 1993-94 से 2004-05 के मध्य 11 वर्षो में केवल 8.5% गरीबी में कमी दर्ज की गर्इ। इस समयावधि में गरीबी में औसत कमी लगभग 0.74% रही जबकि निरपेक्ष रूप से सन 2004-05 में 300 मिलियन व्यकित गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे थे।

देवेव के अनुसार 166 मिलियन गरीब अर्थात् 55.4% निर्धन सिर्फ पांच राज्यों - उत्तरप्रदेश (59 ड) बिहार (36.9 ड)ए महाराष्ट्र (31.7 ड)ए पशिचमी बंगाल (20.8 ड)ए तथा उड़ीसा (17.8 ड) में ही केनिद्रत थे।

इसलिए टेबल-4 के आंकड़ों के आधार पर हम कह सकते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था की पंचवर्षीय योजनाएं गरीबी उन्मूलन या गरीबी कम करने में वास्तविक रूप से सफल नहीं रही। इसलिए रोजगार सृजन आधारभूत सेवा कार्यक्रमों को सुदृढ़ करके गरीबी हटाओ कार्यक्रम को सफल बनाने के उचित उपाय समय पर्यन्त अपनाने की अति आवश्यकता है।

अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण - पंचवर्षीय योजनाओं में पहली बार छठी योजना में अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के उíेश्य को स्पष्ट रूप से प्रकट किया गया। इसका अर्थ है कि क्षेत्राीय उत्पादन की रचना में परिवर्तन, आर्थिक क्रियाओं का विविधीकरण प्रौधोगिकी में सुधार एवं नर्इ संस्थाओ का विकास इत्यादि करना।

आर्थिक सुधार -

नर्इ आर्थिक सुधारों (छमू म्बवदवउपब त्मवितउे) में वर्ष 1991 में आरम्भ किए गए विभिन्न नीतिगत उपाय एवं सुधार शामिल किये गये। इन सुधारों का प्रमुख उíेश्य भारतीय आर्थिक प्रणाली की कुशलता में सुधार करना है। इन सुधारों में सबसे ज्यादा महत्त्व उत्पादकता एवं कुशलता के सुधार पर दिया गया ताकि अर्थव्यवस्था में अधिक प्रतियोगी वातावरण का निर्माण हो सके। इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु फर्मों ने प्रवेश एवं निकास पर लगे गतिबन्धों को हटाया गया। औद्योगिक नीति द्वारा घरेलू वातावरण को अधिक प्रतियोगी बताया गया तथा प्रतियोगी शकित का विकास किया गया। प्रतियोगी शकित के अन्तर्गत नयी प्रौधोगिकी का उपयोग करके वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन देश की प्रति व्यकित आय बढ़ाना, निर्यात में सुधार करके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत का हिस्सा बढ़ाना इत्यादि।

टेबल-5 के अनुसार 1950 के दशक में कृषि क्षेत्रा की विकास दर 3% थी जो कि 60 के दशक में 2.5%ए70 के दशक में 1.4%ए 80 के दशक में 4.7ए 90 के दशक में 3.1 जबकि 2000-01 से 2004-05 तक 2 रही तथा इसी समयावधि में कृषि उत्पादन का सूचकांक ऋणात्मक (–1.6) रहा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि न तो पचवर्षीय योजनाएं और न ही आर्थिक सुधार कृषि क्षेत्रा की सिथति का सुधार कर सके जबकि यह क्षेत्रा भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रा है। इसलिए आर्थिक विकास एवं आय के समान वितरण को प्राप्त करने हेतु सतत विकास को अपनाने की आवश्यकता है। सतत (टिकाऊ) विकास की प्रक्रिया अपनाकर हम प्रति व्यकित आय एवं जीवन स्तर को उच्च स्तर पर कायम कर सकते हैं।