अतीत तथा उसके इतिहास के दार्शनिक अध्ययन को इतिहास दर्शन (Philosophy of history) कहते हैं। इसमें इतिहास, उसके विभाग विशेष अथवा प्रवृत्ति विशेष की सुव्यवस्थित और दार्शनिक व्याख्या होती है। इतिहास की दशा और दिशा के लिए जिम्मेदार तत्वों की खोज और उनकी मीमांसा की जाती है। 'इतिहास दर्शन' शब्द का प्रयोग सबसे पहले वोल्टेयर ने किया था।

प्राचीन इतिहास-दर्शन को दो भागों में बांटा जा सकता है - एक वह जिसमें उपलब्ध तथ्यों को जोड़कर एक इतिहास (पुरानी कथा) की तरह प्रस्तुत कर दिया जाता था, जिसे संयोजनात्मक (सिंथेटिक) कहा गया। दूसरा वह जिसमें तथ्यों के आधार पर अज्ञात तथ्यों का अनुमान लगाकर उसे भी प्रस्तुत किया जाता था, जिसे अनुमानात्मक (स्पेक्युलेटिव) कहा गया। आधुनिक इतिहास दर्शन विश्लेषणात्मक तथा समीक्षात्मक हो गया है।

इतिहास लेखन के अनेक आधार होते हैं - जैसे धार्मिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, समाजशास्त्रीय, आध्यात्मिक, पौराणिक, प्रकृतिवादी, मानवशास्त्रीय आदि। आधारों में परिवर्तन होने के साथ ही इतिहास दर्शन में भी परिवर्तन हो जाता है। उदाहरण के लिए, समाजशास्त्रीय इतिहास दर्शन, राजनीतिक इतिहास दर्शन, आर्थिक इतिहास दर्शन आदि।

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