वेद में ऋत के विचार का बड़ा महत्व है। ऋत का अर्थ होता है जगत की व्यवस्था । इसे प्राकृत नियम भी कहा गया है। सूर्य, चन्द्रमा, तारे, दिन ,रात आदि इसी नियम द्वारा संचालित हैं।[1] ऋत वैदिक धर्म में सही सनातन प्राकृतिक व्यवस्था और संतुलन के सिद्धांत को कहते हैं, यानि वह तत्त्व जो पूरे संसार और ब्रह्माण्ड को धार्मिक स्थिति में रखे या लाए। वैदिक संस्कृत में इसका अर्थ ठीक से जुड़ा हुआ, सत्य, सही या सुव्यवस्थित होता है। यह हिन्दू धर्म का एक मूल-सिद्धांत है। कहा गया है कि ऋत ऋग्वेद के सबसे अहम धार्मिक सिद्धांतों में से एक है और हिन्दू धर्म की शुरुआत इसी सिद्धांत की शुरुआत के साथ जुड़ी हुई है। इसका ज़िक्र आधुनिक हिन्दू समाज में पहले की तुलना में कम होता है लेकिन इसका धर्म और कर्म के सिद्धांतों से गहरा सम्बन्ध है।[2]

परिचय संपादित करें

वैदिक साहित्य में ऋत शब्द का प्रयोग सृष्टि के सर्वमान्य नियम के लिए हुआ है। संसार के सभी पदार्थ परिवर्तनशील हैं किंतु परिवर्तन का नियम अपरिवर्तनीय नियम के कारण सूर्य-चंद्र गतिशील हैं। संसार में जो कुछ भी है वह सब ऋत के नियम से बँधा हुआ है। ऋत को सबका मूल कारण माना गया है। अतएव ऋग्वेद में मरुत् को ऋत से उद्भूत माना है। (४.२१.३)। विष्णु को ऋत का गर्भ माना गया है। द्यौ और पृथ्वी ऋत पर स्थित हैं (१०.१२१.१)। संभव हैं, ऋत शब्द का प्रयोग पहले भौतिक नियमों के लिए किया गया हो लेकिन बाद में ऋत के अर्थ में आचरण संबंधी नियमों का भी समावेश हो गया। उषा और सूर्य को ऋत का पालन करनेवाला कहा गया है। इस ऋत के नियम का उल्लंघन करना असंभव है। वरुण, जो पहले भौतिक नियमों के रक्षक कहे जाते थे, बाद में ऋत के रक्षक (ऋतस्य) के रूप में ऋग्वेद में प्रशंसित हैं। देवताओं से प्रार्थना की जाती थी कि वे हम लोगों को ऋत के मार्ग पर ले चलें तथा अनृत के मार्ग से दूर रखें (१०.१३३.६)। ऋत को वेद में सत्य से पृथक् माना गया है। ऋत वस्तुत: सत्य का नियम है। अत: ऋत के माध्यम से सत्य की प्राप्ति स्वीकृत की गई है। यह ऋत तत्त्व वेदों की दार्शनिक भावना का मूल रूप है। परवर्ती साहित्य में ऋत का स्थान संभवत: धर्म ने ले लिया।

पारसी धर्म में संपादित करें

पारसी धर्म में भी इसी से मिलता-जुलता अर्ता का सिद्धांत मिलता है।[3]

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Sinha, H.P. (2006). Bharatiya Darshan Ki Rooprekha (इंडोनेशियाई में). Motilal Banarsidass Publishers Pvt. Limited. पृ॰ 37. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-2144-6. अभिगमन तिथि 26 November 2023.
  2. The artful universe: an introduction to the Vedic religious imagination Archived 2017-02-05 at the वेबैक मशीन, William K. Mahony, SUNY Press, 1998, ISBN 978-0-7914-3579-3, ... Rta not only characterized reality and truth, Rta was the principle on which reality and truth were based ...
  3. Themis: A Study of the Social Origins of Greek Religion, Jane Ellen Harrison, Cambridge University Press, 2010, ISBN 978-1-108-00949-2, ... The Vedic rta is the same word as the Avestan asha (areta) and the Cuneiform Persian arta ...