कद्रू (या, कद्रु) दक्ष प्रजापति की कन्या, महर्षि कश्यप की पत्नी। पौराणिक इतिवृत्त है कि एक बार महर्षि कश्यप ने कहा, 'तुम्हारी जो इच्छा हो, माँग लो'। कद्रू ने एक सहस्र तेजस्वी नागों को पुत्र रूप में माँगा (महाभारत, आदिपर्व, 16-8)। श्वेत उच्चैःश्रवा घोड़े की पूँछ के रंग को लेकर कद्रू तथा विनता में विवाद छिड़ा। कद्रू ने उसे काले रंग का बताया। हारने पर दासी होने की शर्त ठहरी। कद्रू ने अपने सहस्र पुत्रों को आज्ञा दी कि वे काले रंग के बाल बनकर पूँछ में लग जाय जिन नागों ने उसकी आज्ञा नहीं मानी उन्हें उसने शाप दिया कि पांडववंशी बुद्धिमान राजर्षि जनमेजय के नागसत्र में प्रज्वलित अग्नि उन्हें जलाकर भस्म कर देगी। शीघ्रगामिनी कद्रू विनता के साथ उस समुद्र को लाँघकर तुरंत ही उच्चैःश्रवा घोड़े के पास पहुँच गई। श्वेतवर्ण के महावेगशाली अश्व की पूँछ के घनीभूत काले रंग को देखकर विनता विषाद की मूर्ति बन गई और उसने कद्रू की दासी होना स्वीकार किया। कद्रू विनता तथा विनता के पुत्र गरुड की पीठ पर बैठकर नागलोक देखने गए। गरुड़ इतनी ऊँचाई पर उड़े कि नागों को सूर्य के ताप के कारण मूर्छा आने लगी। कद्रू ने मेघवर्षा के द्वारा तापशमन करने के लिए इंद्र की स्तुति की।