गंगा सिंह

बीकानेर नरेश, राजस्थान के भागीरथ

राजपूतों के प्रसिद्ध राठौड़ वंश में[1] [2]जन्मे गंगासिंह (13 अक्टूबर 1880, बीकानेर – 2 फरवरी 1943, बम्बई) १८८८ से १९४३ तक बीकानेर रियासत के भूतपूर्व महाराजा थे। उन्हें अपने राज्य के एक आधुनिक सुधारवादी भविष्यदृष्टा राजा के रूप में याद किया जाता है।[3] पहले महायुद्ध के दौरान ‘ब्रिटिश इम्पीरियल वार केबिनेट’ के वह अकेले गैर-अँगरेज़ और अश्वेत सदस्य थे। [4]

महाराजा गंगा सिंहजी
बीकानेर राज्य के भूतपूर्व नरेश
21st Maharaja of Bikaner
शासनावधि1888–1943
पूर्ववर्तीMaharaja Sir Shri Dungar Singhji
उत्तरवर्तीSadul Singh
जन्म13 October 1880
Bikaner, Bikaner State, British India
निधन2 फ़रवरी 1943(1943-02-02) (उम्र 62)
Bombay, Bombay Presidency, British India
जीवनसंगीMaharaniji Sa Sisodiniji Vallabh Kanwarji
Maharaniji Sa Tanwarji Kishan Kanwarji
Maharaniji Sa Bhatiyanji Ajab Kanwarji
संतानRam Singh
Chand Kanwarji
Sadul Singh
Bijey Singh
Vir Singh
Shiv Kanwarji
पिताMaharaj Lal Singhji Chatragarh
माताRaniji Sa Chandrawatji (Sisodiniji) Mehtab Kanwarji of Jodhasar-Bikaner

गंगा सिंह जी ने बीकानेर की "ऊटो की सेना"  जिसे गंगा रिसाला भी कहा जाता है, के साथ प्रथम विश्वयुद्ध व द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लिया था[5], और गंगा रिसाला ने ओटोमन साम्राज्य को हराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।[6] 1918 में हुए पेरिस शांति सम्मलेन में गंगा सिंह जी ने भाग लिया और 1919 में हुई वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने वाले वो एक मात्र भारतीय राजा थे।[7] [8]पेरिस शांति सम्मलेन से लौटते वक्त उन्होंने अंग्रेजो को रोम नोट लिखा[9], जिसमे उन्होंने अंग्रेजो से भारतीयों को स्थानीय स्वशासन देने की मांग की थी।[10]

वर्साय की संधि में अन्य विश्व नेताओं के साथ, बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह जी  

महायुद्ध समाप्त होने के बाद अपनी पुश्तैनी बीकानेर रियासत में लौट कर उन्होंने प्रशासनिक सुधारों और विकास की गंगा बहाने के लिए जो काम किये वे किसी भी लिहाज़ से साधारण नहीं कहे जा सकते। 1913 में उन्होंने एक चुनी हुई जन-प्रतिनिधि सभा का गठन किया[11], 1922 में एक मुख्य न्यायाधीश के अधीन अन्य दो न्यायाधीशों का एक उच्च-न्यायालय स्थापित किया[12],जिससे बीकानेर न्यायिक सेवा के क्षेत्र में इस प्रकार की पहल करने वाली पहली रियासत बनी[13], अपनी सरकार के कर्मचारियों के लिए उन्होंने ‘एंडोमेंट एश्योरेंस स्कीम’ और जीवन-बीमा योजना लागू की, निजी बेंकों की सेवाएं आम नागरिकों को भी मुहैय्या करवाईं, और पूरे राज्य में बाल-विवाह रोकने के लिए शारदा एक्ट कड़ाई से लागू किया। 1927 में वे ‘सेन्ट्रल रिक्रूटिंग बोर्ड ऑफ़ इण्डिया’ के सदस्य नामांकित हुए और उसी वर्ष उन्होंने ‘इम्पीरियल वार कांफ्रेंस’ में, 1929 में ‘इम्पीरियल वार केबिनेट’ में भारत का प्रतिनिधित्व किया।[14]1920 से 1926 के बीच गंगा सिंह ‘इन्डियन चेंबर ऑफ़ प्रिन्सेज़’ के चांसलर बनाये गए। इस बीच 1924 में ‘लीग ऑफ़ नेशंस’ के पांचवें अधिवेशन में भी इन्होंने भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।[15] [16][17]चीन के बक्सर विद्रोह को दबाने के लिए, महाराजा गंगा सिंह जी को अंग्रेजो ने चीन युद्ध पदक और, 1899 में पड़े भीषण छपनिया अकाल में अच्छे प्रबंधन के कारण, केसर ए हिंद की उपाधि से विभूषित किया[18][19][20], पंजाब से गंग नहर बीकानेर में लाने के लिए महाराजा को राजस्थान का भगीरथ भी कहा जाता है[21], 1898 में एनी बिसेन्ट द्वारा बनाये गए, बनारस हिन्दू कॉलेज को जब महामना मदन मोहन मालवीय जी ने 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय बनाना चाहा तो उसके लिए बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह जी ने सर्वाधिक आर्थिक सहायता प्रदान की[22][23], मदन मोहन मालवीय उनके इस योगदान से इतने प्रसन्न हुए की, जब गंग नहर का उद्धघाटन किया गया तब वे न सिर्फ गंग नहर के उद्धघाटन में उपस्थित थे बल्कि उन्होने मंत्र भी पढ़े[24], इतना ही नहीं पूर्व महाराजा गंगा सिंह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के 1929 से 1943 तक चांसलर भी रहे हैं[25] [26]

शासन प्रणाली को और लोकप्रिय बनाने के लिए महाराजा ने प्रजाप्रतिनिधि सभा का कार्य विस्तृण कर उसे व्यवस्थापक सभा (legislative Assembly) में बदल दिया, और उसके सदस्यों की सख्या में वृद्धि की जिससे प्रजा के अधिकार बढ़ गए।[27] जो की उनके लोकतांत्रिक प्रणाली में विश्वास को दर्शाता है।

महाराजा ने अपने राजकुमार शार्दुल सिंह को मेयो कॉलेज, अजमेर व लन्दन न भेजकर आर्य संस्कृति की रक्षा के लिए, योग्य अध्यापको द्वारा अपनी देख रेख में ही शिक्षा दिलवाई, साथ ही उन्हें राजपूतों के योग्य सैनिक शिक्षा भी दी, महाराज कुमार के कौंसिल के सभापति बनने पर उन्हें दिए गए भाषण के अंश उनका धर्म और भारतीय संस्कृति की तरफ, महाराजा की अगाध श्रद्धा को दिखाते है। [28]

महाराजा द्वारा राजकुमार को दिए गए व्याख्यान के कुछ अंश :

यदि मुझे अपना उपदेश, एक वाक्य में कहना पड़े तो, मै तुमसे अथवा किसी भी ऐसे व्यक्ति से, जिसे शासक होना है, यही कहूंगा की ईश्वर, सम्राट, राज्य, प्रजा तथा स्वयं के प्रति सच्चे रहो। एक सच्चे हिन्दू और सच्चे राजपूत राजकुमार से मेरा यह कहना व्यर्थ ही है की इस लोक में सच्चे आनंद तथा परलोक के वास्तविक लाभ की प्राप्ति उस व्यक्ति को नहीं हो सकती, जिसे ईश्वर का भय नहीं है अथवा जो सत्य आचरण युक्त जीवन नहीं व्यतीत करता। वर्तमान में अधिकांश युवको में ये प्रथा सी है की वे अपने धर्म और अपने गुरुओ के प्रति जरा सी भी श्रद्धा नहीं रखते, पर मुझे ख़ुशी है की तुम्हे ऐसी भावनाओ के दुष्परिणाम का पूरा पूरा ज्ञान है।[29]

जन्म संपादित करें

बीकानेर के महाराजा लाल सिंह की तीसरी सन्तान गंगा सिंह का जन्म १३ अक्तूबर १८८० को हुआ था। डूंगर सिंह उनके बड़े भाई थे जिनके देहान्त के बाद १८८७ ईस्वी में १६ दिसम्बर को वे बीकानेर-नरेश बने।

शिक्षा और सैन्य-प्रशिक्षण संपादित करें

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंडित रामचंद्र दुबे से प्राप्त की। मेयो कॉलेज, अजमेर में उन्होंने निजी तौर पर शिक्षा प्राप्त की, जहाँ बोर्डिंग में रह कर उन्होंने 5 साल तक स्कूली अध्ययन किया। बाद में, उन्हें सर ब्रायन एगर्टन द्वारा भी पढ़ाया गया, जिन्होंने उन्हें प्रशासनिक प्रशिक्षण भी प्रदान किया। इस तरह उनकी प्रारंभिक शिक्षा पहले घर ही में, फिर बाद में अजमेर के मेयो कॉलेज में १८८९ से १८९४ के बीच हुई। ठाकुर लाल सिंह के मार्गदर्शन में १८९५ से १८९८ के बीच इन्हें प्रशासनिक प्रशिक्षण मिला। १८९८ में गंगा सिंह फ़ौजी-प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए देवली रेजिमेंट भेजे गए जो तब ले.कर्नल बैल के अधीन देश की सर्वोत्तम मिलिट्री प्रशिक्षण रेजिमेंट मानी जाती थी।[30]

विवाह और परिवार संपादित करें

इनका पहला विवाह प्रतापगढ़ राज्य की बेटी वल्लभ कँवर से १८९७ में, और दूसरा विवाह बीकमकोर की राजकन्या भटियानी अजब कँवर से हुआ जिनसे इनके दो पुत्रियाँ और चार पुत्र हुए|

संतानें संपादित करें

नाम उपाधि जन्म निधन टिप्पणी
Ram Singh Maharajkumar of Bikaner 30 June 1898 30 June 1898 Born to Maharani Ranawatiji; died within hours of birth
Chand Kanwar Maharajkumari of Bikaner 1 July 1899 31 July 1915 Born to Maharani Ranawatiji; died of tuberculosis at the Bhowali sanatorium aged 16
Sadul Singh Yuvaraj of Bikaner, later His Highness the Maharaja Sahib of Bikaner. 7 September 1902 25 September 1950 Born to Maharani Ranawatiji. Succeeded his father as Maharaja of Bikaner. Reigned from 02 February 1943 until his death in 1950.[31]
Bijey Singh Maharajkumar of Bikaner, later Maharaj of Chhatargarh 28 March 1909 11 February 1932 Born to Maharani Bhatianiji. Selected to succeed to the estates of his natural grandfather (Ganga Singh's biological father), Maharaj Shri Lal Singh.
Veer Singh Maharajkumar of Bikaner 7 October 1910 27 March 1911 Born to Maharani Bhatianiji. Died in infancy.
Shiv Kanwarji
  • 1916 – 1930: Maharajkumari of Bikaner
  • 1930 – 1940: Yuvarani of Kotah
  • 1940 – 1991: Maharani of Kotah
  • 1991 – : Rajmata of Kotah
1 March 1916 12 January 2012 Born to Maharani Bhatianiji. Given in marriage to the future Maharaja Bhim Singh II of Kotah in April 1930, aged 14.

कार्यक्षेत्र संपादित करें

 
गंगासिंह अपने पुत्र सदल के साथ (सन १९१४ में)

पहले विश्वयुद्ध में एक फ़ौजी अफसर के बतौर गंगासिंह ने अंग्रेजों की तरफ से ‘बीकानेर कैमल कार्प्स’ के प्रधान के रूप में फिलिस्तीन, मिश्र और फ़्रांस के युद्धों में सक्रिय हिस्सा लिया। १९०२ में ये प्रिंस ऑफ़ वेल्स के और १९१० में किंग जॉर्ज पंचम के ए डी सी भी रहे।[32]

महायुद्ध-समाप्ति के बाद अपनी पुश्तैनी बीकानेर रियासत में लौट कर उन्होंने प्रशासनिक सुधारों और विकास की गंगा बहाने के लिए जो-जो काम किये वे किसी भी लिहाज़ से साधारण नहीं कहे जा सकते| १९१३ में उन्होंने एक चुनी हुई जन-प्रतिनिधि सभा का गठन किया, १९२२ में एक मुख्य न्यायाधीश के अधीन अन्य दो न्यायाधीशों का एक उच्च-न्यायालय स्थापित किया और बीकानेर को न्यायिक-सेवा के क्षेत्र में अपनी ऐसी पहल से देश की पहली रियासत बनाया। अपनी सरकार के कर्मचारियों के लिए उन्होंने ‘एंडोमेंट एश्योरेंस स्कीम’ और [[जीवन-बीमा योजना]] लागू की, निजी बेंकों की सेवाएं आम नागरिकों को भी मुहैय्या करवाईं, और पूरे राज्य में बाल-विवाह रोकने के लिए शारदा एक्ट कड़ाई से लागू किया! १९१७ में ये ‘सेन्ट्रल रिक्रूटिंग बोर्ड ऑफ़ इण्डिया’ के सदस्य नामांकित हुए और इसी वर्ष उन्होंने ‘इम्पीरियल वार कांफ्रेंस’ में, १९१९ में ‘पेरिस शांति सम्मलेन’ में और ‘इम्पीरियल वार केबिनेट’ में भारत का प्रतिनिधित्व किया। [33] १९२० से १९२६ के बीच गंगा सिंह ‘इन्डियन चेंबर ऑफ़ प्रिन्सेज़’ के चांसलर बनाये गए। इस बीच १९२४ में ‘लीग ऑफ़ नेशंस’ के पांचवें अधिवेशन में भी इन्होंने भारतीय प्रतिनिधि की हैसियत से हिस्सा लिया।[34]

मानद-सदस्यताएं संपादित करें

ये ‘श्री भारत धर्म महामंडल’ और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संरक्षक, [35] ‘रॉयल कोलोनियल इंस्टीट्यूट’ और ‘ईस्ट इण्डिया एसोसियेशन’ के उपाध्यक्ष, ‘इन्डियन आर्मी टेम्परेन्स एसोसियेशन’ ‘बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ लन्दन की ‘इन्डियन सोसाइटी’इन्डियन जिमखाना’ मेयो कॉलेज, अजमेर की जनरल कांसिल, ‘इन्डियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट’ जैसी संस्थाओं के सदस्य और, ‘इन्डियन रेड-क्रॉस के पहले सदस्य थे|[36]

प्रमुख प्रशासनिक योगदान संपादित करें

उन्होंने १८९९-१९०० के बीच पड़े कुख्यात ‘छप्पनिया काल’ की ह्रदय-विदारक विभीषिका देखी थी, सन 1899 में उत्तर भारत में भयंकर अकाल पड़ा था. इनमें सबसे प्रमुख राजस्थान था. राजस्थान के जयपुर, जोधपुर नागौर चुरू और बीकानेर इलाक़े भयंकर तरीक़े से सूखे की चपेट में आये थे. ये अकाल विक्रम संवत 1956 में होने के कारण इसे स्थानीय भाषा में 'छप्पनिया अकाल' भी कहा जाता है. अंग्रेज़ों के गज़ेटियर में ये अकाल 'द ग्रेट इंडियन फ़ैमीन 1899' के नाम से दर्ज है.

 
संवत १९५६ में पड़े भीषण अकाल के दौरान एक मजदूर राजस्थानी परिवार

तभी गंगा सिंह अपनी रियासत के लिए पानी का इंतजाम एक स्थाई समाधान के रूप में करने का संकल्प लिया था और इसीलिये सबसे क्रांतिकारी और दूरदृष्टिवान काम, जो इनके द्वारा अपने राज्य के लिए किया गया वह था- किसी भी कीमत पर पडौसी पंजाब की सतलज नदी का पानी ‘गंग-केनाल’ के ज़रिये बीकानेर जैसे सूखे क्षेत्र तक लाना और नहरी सिंचित-क्षेत्र में किसानों को खेती करने और बसने के लिए मुफ्त ज़मीनें देना।

श्रीगंगानगर शहर के विकास को भी उन्होंने प्राथमिकता दी । वहां कई निर्माण करवाए और बीकानेर में अपने निवास के लिए पिता लालसिंह के नाम से ‘लालगढ़ पैलेस’ बनवाया। बीकानेर को जोधपुर शहर से जोड़ते हुए रेलवे के विकास और बिजली लाने की दिशा में भी ये बहुत सक्रिय रहे। जेल और भूमि-सुधारों की दिशा में भी इन्होंने नए कायदे कानून लागू करवाए, नगरपालिकाओं के स्वायत्त शासन सम्बन्धी चुनावों की प्रक्रिया शुरू की, और राजसी सलाह-मशविरे के लिए एक मंत्रिमंडल का गठन भी किया। १९३३ में लोक देवता रामदेवजी की समाधि पर एक पक्के मंदिर के निर्माण का श्रेय भी इन्हें है!

 
लालगढ़

सार-संक्षेप में उनके मुख्य योगदानों को यों क्रमबद्ध किया जा सकता है -

  • गंगा सिंह ने गंगा नहर का निर्माण किया। उन्होंने लोगों को इस नए कमांड क्षेत्र में बसने के लिए प्रेरित किया। पंजाब के आसपास के इलाकों से एक बड़ी आबादी वहां बस गई। उनमें से ज्यादातर भूमि मालिक सिख परिवार 1920 के दशक में इस क्षेत्र में आ गए थे, जब नहर का निर्माणबीकानेर राज्य के पूर्व महाराजा गंगा सिंह द्वारा किया गया था, जो पंजाब में आसपास के फ़िरोज़पुर जिला सेसतलुज नदी का पानी बीकानेर लाए। । पुराने बीकानेर राज्य के तहत कुछ कस्बों को छोड़ कर इस क्षेत्र में कोई स्थायी बस्तियां नहीं थीं।
  • उन्होंने इस क्षेत्र में वर्ष 1899-1900 ईस्वी के सबसे भीषण अकाल से सफलतापूर्वक सामना किया । इस अकाल ने युवा महाराजा को इस समस्या से स्थायी रूप से छुटकारा पाने के लिए एक सिंचाई प्रणाली स्थापित करने के लिए प्रेरित किया।
  • उन्होंने श्री गंगानगर शहर और उसके आसपास के क्षेत्र को राजस्थान के सबसे उपजाऊ अन्न क्षेत्र के रूप में विकसित किया।
  • उन्होंने 1902 और 1926 के बीच बीकानेर (अपने पिता लाल सिंह की याद में) में लालगढ़ पैलेस का भी निर्माण किया।
  • वह अपने राज्य में रेलवे और बिजली भी लाए।
  • उन्होंने जेल सुधारों की शुरुआत की। बीकानेर जेल के कैदी बेहतरीन परंपरागत कालीन बुनते थे जो अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेचे जाते थे।
  • उन्होंने नगर पालिकाओं जैसी आंशिक आंतरिक लोकतंत्र संस्थाओं की स्थापना की और सहायता और सलाह के लिए एक मंत्रिपरिषद की नियुक्ति की।
  • उनकी पहल पर कुछ ज़रूरी भूमि-सुधार भी किए गए।
  • उन्होंने अपने राज्य में नए उद्यम शुरू करने के लिए पड़ोसी राज्य के उद्यमी उद्योगपतियों और कृषकों को खुद प्रेरित किया।
  • उन्होंने रामदेव पीर के समाधि के ऊपर रामदेवरा में मौजूदा मंदिर का निर्माण वर्ष 1931 में करवाया था।
  • महिलाओं के लिए कई स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की।
  • उन्होंने देशनोक में करणी माता मंदिर के मुख्य द्वार के रूप में उपयोग किए जाने वाले ठोस चांदी के भारी दो अलंकृत द्वार दान में दिए।

सम्मान संपादित करें

सन १८८० से १९४३ तक इन्हें १४ से भी ज्यादा कई महत्वपूर्ण सैन्य-सम्मानों के अलावा सन १९०० में ‘केसरेहिंद’ की उपाधि से विभूषित किया गया। १९१८ में इन्हें पहली बार 19 तोपों की सलामी दी गयी, वहीं १९२१ में दो साल बाद इन्हें अंग्रेज़ी शासन द्वारा स्थाई तौर 19 तोपों की सलामी योग्य शासक माना गया।[37]

(Ribbon bar, as it would look today; UK decorations only)

       

       

       

       

       


ब्रिटिश सम्मान और उपाधियाँ आदि संपादित करें

कुलगुरु-सम्मान संपादित करें

राजा बनने के बाद इन्होने अपने पूर्वजों की परंपरा का निर्वाह करते हुए जाने-माने तांत्रिक-विद्वान असाधारण शिवानन्द गोस्वामी के उन दाक्षिणात्य आत्रेय वंशजों को अपने कुल-गुरु के रूप में सम्मान दिया जो इनके पितामह और अन्य पूर्वज बीकानेर राजाओं के शासन काल में १७ वीं सदी और उसके बाद कुलगुरु के बतौर आमंत्रित किये गए थे। जैसे : शिवानन्द गोस्वामी के वंशज विद्वान जागेश्वर गोस्वामी इनके व्यक्तिगत स्टाफ में नियुक्त थे। बीकानेर राज्य में आत्रेय वंश ही के अनेक मेधावी सदस्यों को इनके शासन में कई महत्वपूर्ण पद सौंपे गए। अपने जन्मदिन पर अपने वजन के बराबर सोने चांदी और बहुमूल्य जवाहरातों से तुल कर उसे गुरु-दक्षिणा में अपने कुलगुरु को भेंट में देने की परंपरा का पालन भी अनेक वर्ष तक गंगा सिंह ने किया ।[39][40][41] उन्होंने अपने कुलगुरु-वंश के कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों को समय पर मैडल और पुरस्कार दिए जिन में दूसरे महायुद्ध के दौरान की गयी सिविल सप्लाई के क्षेत्र में असाधारण सेवाओं के लिए बीकानेर में नागरिक आपूर्ति / फोरेन एंड पोलिटिकल विभाग के वरिष्ठ पंडित फाल्गुन गोस्वामी और उनके सहयोगी तुलेश्वर गोस्वामी को गंगा सिंह रजत मैडल दिया गया था ।

 
गंगा सिंह मैडल

इसी तरह जब कल्याण कल्पतरु के यशस्वी संपादक पंडित चिम्मन लाल गोस्वामी ने एम ए की परीक्षा में अंग्रेज़ी साहित्य और संस्कृत दोनों में उच्चतम अंक ले कर काशी विश्वविद्यालय का गोल्ड मैडल प्राप्त किया और जब वह पढाई पूरी कर बीकानेर, अपने घर लौटे तो उन्हें स्टेशन से सम्मानपूर्वक लिवा लाने के लिए महाराजा ने रत्नजडित सजा-धजा हाथी भेजा था ! [42]

निधन संपादित करें

२ फरवरी १९४३ को बंबई में ६२ साल की उम्र में आधुनिक बीकानेर के निर्माता जनरल गंगासिंह का केंसर से निधन हुआ।[43]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Shah, A. M. (1998). The family in India : critical essays. New Delhi: Orient Longman. OCLC 39130682. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-250-1306-7.
  2. A Historical atlas of South Asia, Joseph E. Schwartzberg, Shiva G. Bajpai, University of Chicago Press, 1978, OCLC 3447031, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-226-74221-0, अभिगमन तिथि 2022-09-11सीएस1 रखरखाव: अन्य (link)
  3. https://www.bhaskar.com/RAJ-BIK-MAT-latest-bikaner-news-034004-2013298-NOR.html/
  4. https://en.wikipedia.org/wiki/Ganga_Singh
  5. Legg, Stephen (2017-04-01). "A Princely Archive: The Ganga Singh Memorial Trust records, Bikaner, Rajasthan, India". Interwar Conferencing (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-09-14.
  6. Digital Library Of India (1941). The History Of The Bikaner State Vol 2 Ac 774.
  7. Legg, Stephen (2017-04-01). "A Princely Archive: The Ganga Singh Memorial Trust records, Bikaner, Rajasthan, India". Interwar Conferencing (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-09-14.
  8. Digital Library Of India (1941). The History Of The Bikaner State Vol 2 Ac 774.
  9. Panikkar K .m (1937). His Highness The Maharaja Of Bikaner.
  10. Panikkar K .m (1937). His Highness The Maharaja Of Bikaner.
  11. "It's time to remember Ganga Singh: maharaja, reformer, statesman – Historia Magazine". www.historiamag.com. अभिगमन तिथि 2022-09-14.
  12. Panikkar K .m (1937). His Highness The Maharaja Of Bikaner.
  13. Panikkar K .m (1937). His Highness The Maharaja Of Bikaner.
  14. Legg, Stephen (2017-04-01). "A Princely Archive: The Ganga Singh Memorial Trust records, Bikaner, Rajasthan, India". Interwar Conferencing (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-09-14.
  15. "It's time to remember Ganga Singh: maharaja, reformer, statesman – Historia Magazine". www.historiamag.com. अभिगमन तिथि 2022-09-14.
  16. Panikkar K .m (1937). His Highness The Maharaja Of Bikaner.
  17. Legg, Stephen (2017-04-01). "A Princely Archive: The Ganga Singh Memorial Trust records, Bikaner, Rajasthan, India". Interwar Conferencing (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-09-14.
  18. Panikkar K .m (1937). His Highness The Maharaja Of Bikaner.
  19. Digital Library Of India (1941). The History Of The Bikaner State Vol 2 Ac 774.
  20. Digital Library Of India (1941). The History Of The Bikaner State Vol 2 Ac 774.
  21. "पुण्यतिथि कार्यक्रमः जानें महाराजा गंगा सिंह जी को क्यों बीकानेर का भागीरथ कहा जाता है?". Zee News. अभिगमन तिथि 2022-09-14.
  22. "बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बीकानेर का है गहरा नाता...जानिये इसके पीछे की कहानी". ETV Bharat News. अभिगमन तिथि 2022-09-14.
  23. Digital Library Of India (1941). The History Of The Bikaner State Vol 2 Ac 774.
  24. Digital Library Of India (1941). The History Of The Bikaner State Vol 2 Ac 774.
  25. "बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बीकानेर का है गहरा नाता...जानिये इसके पीछे की कहानी". ETV Bharat News. अभिगमन तिथि 2022-09-14.
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  30. https://en.wikipedia.org/wiki/Ganga_Singh
  31. McClenaghan, Tony (1996). Indian princely medals : a record of the orders, decorations, and medals of the Indian princely states. New Delhi: Lancer Publishers. OCLC 36051619. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-897829-19-1.
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  33. https://en.wikipedia.org/wiki/Ganga_Singh
  34. https://en.wikipedia.org/wiki/Ganga_Singh
  35. https://books.google.co.in/books?id=KcAjDwAAQBAJ&pg=PA130&dq=%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BE+%E0%A4%97%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE+%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9&hl=en&newbks=1&newbks_redir=1&sa=X&ved=2ahUKEwjgpsmfmp_2AhVZTmwGHY3JCS84ChDoAXoECAcQAg
  36. https://en.wikipedia.org/wiki/Ganga_Singh
  37. https://en.wikipedia.org/wiki/Ganga_Singh
  38. द टाइम्स (लंदन). 3 July 1902. संस्करण 36810,
  39. https://www.abebooks.com/Regal-Patriot-Maharaja-Ganga-Singh-Bikaner/982377351/bd
  40. https://www.google.com/search?source=univ&tbm=isch&q=bikaner+silver+jubilee+books&fir=vDkhpP1fd2AWoM%252C-ELnax0yYTJiKM%252C_%253BXhvABYJiUZdM6M%252C-ELnax0yYTJiKM%252C_%253BZ1COFrN0rmv1WM%252CxZsyzaqK7T-x4M%252C_%253B7CSfIr4rCn3GUM%252CDqKfyY7axYLbMM%252C_%253B2VNuAELIEWLl-M%252C-_6r23-IYhtMtM%252C_%253BhvfEyLxtCL_37M%252CuFKmBXa09IidaM%252C_%253BSfhFymq3V8kwTM%252CCjk2eVtFVi4wKM%252C_%253B-YMNMfSL5wbmPM%252CJywSkIFz4NxVEM%252C_%253Bj20lOEIiQmqrHM%252COCsoiTWLN-ETyM%252C_%253BbbhznNjQie5OGM%252C-ELnax0yYTJiKM%252C_&usg=AI4_-kRvGziTgESquqlCzNFjsyem1o8BtA&sa=X&ved=2ahUKEwiLrZTuo672AhXDxzgGHWy8BLMQjJkEegQIAhAC
  41. https://books.google.com/books/about/His_Highness_the_Maharaja_of_Bikaner.html?id=BtIBAAAAMAAJ
  42. 'तैलंग कुलम' पत्रिका में भानु भारवि का लेख
  43. https://en.wikipedia.org/wiki/Ganga_Singh

[[श्रेणी: ]]