गुणोत्तर श्रेणी (Geometric series) वह श्रेणी है जिसके क्रमागत पदों का अनुपात अचर होता है। उदाहरण के लिये,

२ + ६ + १८ + ५४ ....

एक गुणोत्तर श्रेणी है जिसका सर्वनिष्ट अनुपात (कॉमन रेशियो) है।

निम्नलिखित श्रेणी, गुणोत्तर श्रेणी का सामान्य रूप है,

जहाँ a श्रेणी का प्रथम पद तथा r सर्वनिष्ट अनुपात है।

मिम्नलिखित तालिका में कई गुणोत्तर श्रेणियाँ और उनके प्रथम पद एवं सर्वनिष्ट अनुपात दिखाए गए हैं-

प्रथम पद, a सर्वनिष्ट अनुपात, r श्रेणी का उदाहरण
4 10 4 + 40 + 400 + 4000 + 40,000 + ···
9 1/3 9 + 3 + 1 + 1/3 + 1/9 + ···
7 1/10 7 + 0.7 + 0.07 + 0.007 + 0.0007 + ···
3 1 3 + 3 + 3 + 3 + 3 + ···
1 −1/2 1 − 1/2 + 1/4 − 1/8 + 1/16 − 1/32 + ···
3 –1 3 − 3 + 3 − 3 + 3 − ···

गुणोत्तर श्रेणी और सर्वनिष्ट अनुपात संपादित करें

गुणोत्तर श्रेणी के कई गुण उसके सर्वनिष्ट अनुपात r पर निर्भर करते हैं।

  • यदि r का मान −1 तथा +1 के बीच हो तो, इस श्रेणी के पदों का संख्यात्मक मान क्रमशः छोटा ही छोटा होता चला जाएगा (अर्थात शून्य की ओर अग्रसर होता चला जाएगा।) । ऐसी श्रेणी के अनन्त पदों का योग एक सीमित संख्या होगी (अनन्त नहीं)।
  • यदि r का मान एक से बड़ा हो या ऋण एक से कम हो तो ऐसी गुणोत्तर श्रेणी के पदों का मान क्रमशः बड़े से बड़ा होता चला जाएगा। अतः ऐसी श्रेणी के अनन्त पदों का योग सीमित नहीं होगा (अर्थात यह श्रेणी अपसारी श्रीणी (Divergent series) है।)
  • यदि r का मान ठीक-ठीक एक हो तो इस श्रेणी के सभी पद समान होंगे। यह श्रेणी भी अभिसारी नहीं है।
  • यदि r का मान ऋण एक हो तो इस श्रेणी के पदों का संख्यात्मक मान वही रहेगा किन्तु उनका चिह्न एक के बाद दूसरा बदलता जाएगा। (जैसे. 2, −2, 2, −2, 2,... ). इस कारण पदों का योग भी एक बार बढेगा, फिर घटेगा, फिर बढ़ेगा....। अर्थात योग दोलनकारी (Oscillatory) होगा। यह भी एक प्रकार का अपसार ही है और श्रेणी का कोई निश्चित योग नहीं है। उदाहरण के लिए, श्रेणी: 1 − 1 + 1 − 1 + ··· को जोड़ने का यत्न कीजिए और देखिए क्या होता है।

योग संपादित करें

किसी गुणोत्तर श्रेणी का योग (अनन्त पदों का योग) एक सीमित संख्या होगी यदि उसके सर्वनिष्ट अनुपात r का संख्यात्मक मान १ से कम हो। ऐसी स्थिति में उस श्रेणी के बाद वाले पद नगण्य होते चले जाते हैं और उस श्रेणी में अनन्त पद होने के बावजूद भी योग अनन्त नहीं, सीमित होता है।

उदाहरण संपादित करें

 
A self-similar illustration of the sum s. Removing the largest circle results in a similar figure of 2/3 the original size.

माना हम निम्नलिखित श्रेणी का योग निकालना चाहते हैं-

 

This series has common ratio 2/3. If we multiply through by this common ratio, then the initial 1 becomes a 2/3, the 2/3 becomes a 4/9, and so on:

 

This new series is the same as the original, except that the first term is missing. Subtracting the new series (2/3)s from the original series s cancels every term in the original but the first,

 

A similar technique can be used to evaluate any self-similar expression.

सूत्र संपादित करें

For  , the sum of the first n terms of a geometric series is

 

where a is the first term of the series, and r is the common ratio. We can derive this formula as follows:

 

so,

 

As n goes to infinity, the absolute value of r must be less than one for the series to converge. The sum then becomes

 

When a = 1, this can be simplified to

 

the left-hand side being a geometric series with common ratio r.

The formula also holds for complex r, with the corresponding restriction, the modulus of r is strictly less than one.

अभिसार का प्रमाण संपादित करें

We can prove that the geometric series converges using the sum formula for a geometric progression:

 

Since (1 + r + r2 + ... + rn)(1−r) = 1−rn+1 and rn+1 → 0 for | r | < 1.

Convergence of geometric series can also be demonstrated by rewriting the series as an equivalent telescoping series. Consider the function,

 

Note that

 

Thus,

 

If

 

then

 

So S converges to

 

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें