जलभर

धरातल में वह पारगम्य चट्टान जिसमें पानी मौजूद रहता है

जलभर, जलभृत अथवा जलभरा धरातल की सतह के नीचे चट्टानों का एक ऐसा संस्तर है जहाँ भूजल एकत्रित होता है और मनुष्य द्वारा नलकूपों से निकालने योग्य अनुकूल दशाओं में होता है।[1] वैसे तो जल स्तर के नीचे की सारी चट्टानों में पानी उनके रन्ध्राकाश में अवश्य उपस्थित होता है लेकिन यह जरूरी नहीं कि उसे मानव उपयोग के लिये निकाला भी जा सके। जलभरे ऐसी चट्टानों के संस्तर हैं जिनमें रन्ध्राकाश बड़े होते हैं जिससे पानी की ज्यादा मात्रा इकठ्ठा हो सकती है तथा साथ ही इनमें पारगम्यता ज्यादा होती है जिससे पानी का संचरण एक जगह से दूसरी जगह को तेजी से होता है।[2]

भूजल और जलभर

सामन्यतय जलभर के लिये एक और दशा का होना आवश्यक है और वह है इस उच्च पारगम्य संस्तर के ठीक नीचे एक अपारगम्य जलरोधी शैल (Aquiclude) संस्तर की उपस्थिति। अतः जलभर ज्यादातर ऐसी बलुआ पत्थर चट्टानों में पाए जाते हैं जिनके नीचे शेल या सिल्टस्टोन की परत पायी जाती हो।

जलभर को इस अपारगम्य जलरोधी परत की उपस्थिति के आधार पर प्रकारों में बाँटा जाता है - मुक्त जलभर (Unconfined aquifer) और संरोधित जलभर (Confined aquifer)। संरोधित जलभर वे हैं जिनमें ऊपर और नीचे दोनों तरफ जलरोधी संस्तर पाया जाता है और इनके रिचार्ज क्षेत्र दूसरे ऊँचाई वाले भागों में होते हैं। इन्ही संरोधित जलभरों में उत्स्रुत कूप (Artesian wells) भी पाए जाते हैं।

जलभर की अन्य कई भौतिक विशेषताएँ होती हैं।[3]जलभर के वर्गीकरण का एक और आधार है हाईड्रोलिक कंडक्टिविटी की दिशा।[4] इसके आधार पर इन्हें समप्राय और असमप्राय जलभर में विभाजित किया जाता है।[5]

जलभरों में जल का धीमा किन्तु निरंतर प्रवाह होता रहता है जिसे अधोप्रवाह (underflow) कहते है।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. जलभृत Archived 2014-07-14 at the वेबैक मशीन इण्डिया वाटर पोर्टल
  2. Robert A. Bisson, Jay H. Lehr: Modern groundwater exploration. Wiley, Hoboken 2004, ISBN 0-471-06460-2.
  3. "Properties of Aquifers". मूल से 3 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जुलाई 2014.
  4. "Aquifer test". मूल से 4 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जुलाई 2014.
  5. M. Thangarajan: Groundwater – resource evaluation, augmentation, contamination, restoration, modeling and management. Springer, Dordrecht (NL) 2007, ISBN 978-1-4020-5728-1.