टोडरमल अकबर के नवरत्नों में से थे। टोडरमल का जन्म लहरपुर में हुआ था यह सीतापुर जिले में स्थित था। [1][2] अकबर के समय से प्रारंभ हुई भूमि पैमाइश का आयोजन टोडरमल के द्वारा ही किया गया था।

टोडरमल
राजा टोडरमल
जन्म1 जनवरी 1500
लहरपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
निधन08 नवम्बर 1589
लाहौर, पाकिस्तान
धर्महिन्दू
पेशाअकबर के शासनकाल के दौरान मुगल साम्राज्य के वित्त मंत्री

बिहार के पटना सिटी के दीवान मोहल्ले में, नौजरघाट सिथत चित्रगुप्त मंदिर का पुर्ननिर्माण, राजा टोडरमल तथा उनके नायब रहे कुवर किशोर बहादुर ने करवाकर, कसौटी पत्थर की चित्रगुप्त की मूर्ति, हिजरी सन 980 तदानुसार इसवीं सन 1574 में स्थापित कराई थी।[उद्धरण चाहिए]

जनपद हरदोई में उत्तर प्रदेश राज्य के राजस्व अधिकारियों के लिये बनाये गये एकमात्र राजस्व प्रशिक्षण संस्थान का नाम इनके नाम पर राजा टोडरमल भूलेख प्रशिक्षण संस्थान रखा गया है जहां आईएएस, आईपीएस, पीसीएस, पीपीएस के अलावा राजस्व कर्मियों को भूलेख संबंधी प्रशिक्षण दिया जाता है।

जीवनी संपादित करें

टोडरमल का जन्म उत्तर प्रदेश में सीतापुर के करीब लहार में हुआ था। इतिहासकारों के मतानुसार टोडरमल कायस्थ थे। जब वे छोटे थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। उनके लिए आजीविका का कोई साधन नहीं था। उन्‍होंने अपना जीवन सामान्य लेखक के रूप से शुरू किया था।

धीरे-धीरे तरक्की कर रैंकों आगे बढ़ा। तब शेरशाह सूरी ने, पंजाब, के रोहतास के एक नए किले के निर्माण के लिए टोडरमल को भेजा, जिससे उन्हें घक्कड़ छापेमारी को रोकने और उत्तर-पश्चिम में मुगलों के लिए बाधा का कार्य करना था।

मुगलों द्वारा सूर वंश को उखाड़ फेंके जाने के बाद, टोडर मल शासक सत्ता की सेवा में लगे रहे, जो अब मुगल सम्राट अकबर था। अकबर के अधीन, उन्हें आगरा का प्रभारी नियुक्त किया गया। बाद में, उन्हें गुजरात का राज्यपाल बनाया गया। कई बार, उन्होंने बंगाल में अकबर की टकसाल का प्रबंधन भी किया और पंजाब में भी सेवा की। टोडर मल का सबसे महत्वपूर्ण योगदान, जिसे आज भी सराहा जाता है, वह यह है कि उन्होंने अकबर के मुगल साम्राज्य की राजस्व प्रणाली की नई व्यवस्थ कर दी। राजा टोडरमल ने उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के लहरपुर में अपने लिये एक किले-महल का निर्माण किया था। टोडर मल ने भी भागवत पुराण का फारसी में अनुवाद किया था।

8 नवंबर 1589 को लाहौर में टोडर मल की मृत्यु के बाद, उनके शरीर का हिंदू परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया। समारोह में लाहौर के प्रभारी उनके सहयोगी राजा भगवान दास उपस्थित थे। अपने दो बेटों में से धारी सिंध में एक युद्ध में मारा गया था। एक अन्य पुत्र, कल्याण दास को टोडर मल ने हिमालय के कुमाऊँ के राजा को वश में करने के लिए भेजा था।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. [Indian History, VK Agnihotri, pp.B249 ]
  2. [The Challenges of Indian Management, B R Virmani pp.57]

बाहरी कड़ी संपादित करें