तोरई, तोरी या तुराई (वैज्ञानिक नाम : Luffa acutangula) एक लता है जिसके फल सब्जी बनाने के काम आते हैं, इसे भारत के कुछ राज्यों में "झिंग्गी" या "झींगा" भी कहा जाता है। शिवनगर,मिथिला,बिहार में इसे झिमनी कहा जाता है।यह रक्त वर्धक तथा फाइबर एवं विटामिन्स से भरपूर एक पौष्टिक सब्जी है। यह वर्षा ऋतु में पैदा होती है। साधारणतया वर्ष में दो बार इसे उगाया जाता है। फरवरी - मार्च और जून - जुलाई।

तोरई का फल

आयुर्वेद में बताया गया है कि तोरई पचने में आसान होती है, पेट के लिए थोड़ी गरम होती है। कफ और पित्त को शांत करने वाली, वात को बढ़ाने वाली है। वीर्य को बढ़ाता है, घाव को ठीक करता है, पेट को साफ करता है, भूख को बढ़ाता है और हृदय को ठीक करता है। इतना ही नहीं यह कुष्ठ, पीलिया, तिल्ली (प्लीहा) रोग, सूजन, गैस, कृमि, गोनोरिया, सिर के रोग, घाव, पेट के रोग, बवासीर में भी उपयोगी है। कृत्रिम विष, दमा, सूखा खाँसी, बुखार को ठीक करता है।

परिचय संपादित करें

तोरई बेल वाली फसल है, जो जायद तथा खरीफ ऋतु में सफलतापूर्वक देश के कई स्थानों में लगायी जाती है। इसके नर व मादा पुष्प एक ही बेल पर अलग-अलग स्थान पर तथा अलग-अलग समय पर खिलते हैं। नर पुष्प पहले तथा गुच्छों में लगते हैं जबकि मादा पुष्प बेल की पार्श्र्व शाखाओं पर व अकेले लगते हैं। पुष्प का रंग चमकीला पीला एवं आकर्षक होता है। मादा पुष्प के निचले भाग में फल की आकृतियुक्त अण्डाशय होता है जो निषेचन के पश्चात फल का निर्माण करता है। पुष्प सांयकाल में 5 से 8 बजे के दौरान खिलते हैं। पुष्पन के दौरान नर पुष्पों से जीवित व सक्रिय परागकण प्राप्त होते हैं, साथ ही मादा पुष्पों की वर्तिकाग्र निषेचन के लिए अत्यधिक सक्रिय होती है। तुरई मे परपरागण द्वारा निषेचन होता है जो मुख्यत: मधुमक्खियों द्वारा सम्पन्न होता है।

तोरई के प्रकार संपादित करें

घिया तोरई संपादित करें

 
घिया तोरई

यह मुलायम गाढ़े हरे रंग की तोरई (वैज्ञानिक नाम : Luffa Aegyptiaca ) है जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में उगाई जाती है। पकने के बाद इसका फाइबर कठोर हो जाता है, अतः यह फिर खाने योग्य नही रहती किन्तु कठोर फाइबर के कारण इसका उपयोग रगड़कर बर्तनों आदि की सफाई में उपयोग में लाया जाता है। पालतू पशुओं की त्वचा की सफाई में भी पकी तोरई का इस्तेमाल होता है। कच्ची हरी तोरई में विटामिन्स की भरपूर मात्रा होती है, इसके अधिक सुपाच्य होने के कारण हर आयु के मनुष्य व रोगी इसे पौष्टिक आहार के रूप में प्रयोग में लाते हैं। भारतवर्ष में घिया तोरई की प्राजाति बहुत अधिक प्रचलित है।[1]

संदर्भ संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें