त्रिभाषा सूत्र (Three-language formula) भारत में भाषा-शिक्षण से सम्बन्धित नीति है जो भारत सरकार द्वारा राज्यों से विचार-विमर्श करके बनायी गयी है। यह सूत्र (नीति) सन् १९६८ में स्वीकार किया गया।

भाषा का एक उदाहरण।

परिचय संपादित करें

भारतीय संविधान की धारा 343, धारा 348 (2) तथा 351 का सारांश यह है कि देवनागरी लिपि में लिखी और मूलत: संस्कृत से अपनी पारिभाषिक शब्दावली को लेने वाली हिन्दी भारतीय संघ की राजभाषा है। इसमें रोमन अंकों का व्यवहार होगा।

राष्ट्रीय भाषाओं में यह मौलिक सिद्धांत मान्य है कि सभी भाषाएं राष्ट्रीय हैं। इसमें उल्लिखित भाषाएं-असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगू, सिंधी, उर्दू, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली, बोडो, संथाली, मैथिली, डोगरी आदि 22 भाषाएं हैं।

त्रिभाषा सूत्र संविधान में नहीं है। सन् 1956 में अखिल भारतीय शिक्षा परिषद् ने इसे मूल रूप में अपनी संस्तुति के रूप में मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में रखा था और मुख्यमंत्रियों ने इसका अनुमोदन भी कर दिया था। 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसका समर्थन किया गया था और सन् 1968 में ही पुन: अनुमोदित कर दिया गया था। सन् 1992 में संसद ने इसके कार्यान्वयन की संस्तुति कर दी थी।

यह संस्तुति राज्यों के लिए बाध्यता मूलक नहीं थी क्योंकि शिक्षा राज्यों का विषय है। सन् 2000 में यह देखा गया कि कुछ राज्यों में हिन्दी और अंग्रेजी के अतिरिक्त इच्छानुसार संस्कृत, अरबी, फ्रेंच, तथा पोर्चुगीज भी पढ़ाई जाती हैं। त्रिभाषा सूत्र में 1-शास्त्रीय भाषाएं जैसे संस्कृत, अरबी, फारसी। 2-राष्ट्रीय भाषाएं 3-आधुनिक यूरोपीय भाषाएं हैं। इन तीनों श्रेणियों में किन्हीं तीन भाषाओं को पढ़ाने का प्रस्ताव है। संस्तुति यह भी है कि हिन्दीभाषी राज्यों में दक्षिण की कोई भाषा पढ़ाई जानी चाहिए।

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें