दारा शिकोह

हिंदू धर्म को इज्जत की निगाहों से देखने वाला।

दारा शिकोह (जन्म 20 मार्च 1615 - हत्या 10 सितंबर 1659) मुमताज़ महल और सम्राट शाहजहाँ का ज्येष्ठ पुत्र तथा औरंगज़ेब का बड़ा भाई।[1]

दारा शिकोह
मुगल साम्राज्य का युवराज
मुगल युवराज दारा शिकोह का एक मुगल कालीन लघुचित्र
जन्म20 मार्च 1615
अजमेर, मुगल साम्राज्य
निधन30 अगस्त 1659(1659-08-30) (उम्र 44)
दिल्ली, मुगल साम्राज्य
समाधि
जीवनसंगीनादिरा बानू बेगम
संतान
पूरा नाम
मुहम्मद दारा शिकोह
घरानातैमूरी
पिताशाहजहां
मातामुमताज महल
धर्मसुन्नी इस्लाम

जीवनी संपादित करें

दारा को 1633 में युवराज बनाया गया और उसे उच्च मंसब प्रदान किया गया। 1645 में इलाहाबाद, 1647 में लाहौर और 1649 में वह गुजरात का शासक बना। 1653 में कंधार में हुई पराजय से इसकी प्रतिष्ठा को धक्का पहुँचा। फिर भी शाहजहाँ इसे अपने उत्तराधिकारी के रूप में देखता था, जो दारा के अन्य भाइयों को स्वीकार नहीं था। शाहजहाँ के बीमार पड़ने पर औरंगजेब और मुराद ने दारा के काफ़ि़र (धर्मद्रोही) होने का नारा लगाया। युद्ध हुआ। दारा दो बार, पहले आगरे के निकट सामूगढ़ में (जून, 1658) फिर अजमेर के निकट देवराई में (मार्च, 1659), पराजित हुआ। अंत में 10 सितंबर 1659 को दिल्ली में औरंगजेब ने उसकी हत्या करवा दी। दारा का बड़ा पुत्र औरंगजेब की क्रूरता का भाजन बना और छोटा पुत्र ग्वालियर में कैद कर दिया गया।[2]

सूफीवाद और तौहीद के जिज्ञासु दारा ने सभी सनातन और मुसलमान संतों से सदैव संपर्क रखा। ऐसे कई चित्र उपलब्ध हैं जिनमें दारा को हिंदू संन्यासियों और मुसलमान संतों के संपर्क में दिखाया गया है। वह प्रतिभाशाली लेखक भी था। सफ़ीनात अल औलिया और सकीनात अल औलिया उसकी सूफी संतों के जीवनचरित्र पर लिखी हुई पुस्तकें हैं। रिसाला ए हकनुमा (1646) और "तारीकात ए हकीकत" में सूफीवाद का दार्शनिक विवेचन है। "अक्सीर ए आज़म" नामक उसके कवितासंग्रह से उसकी सर्वेश्वरवादी प्रवृत्ति का बोध होता है। उसके अतिरिक्त हसनात अल आरिफीन और मुकालम ए बाबालाल ओ दाराशिकोह में धर्म और वैराग्य का विवेचन हुआ है। मजमा अल बहरेन में वेदान्त और सूफीवाद के शास्त्रीय शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत है। 52 उपनिषदों का फासरी भाषा मैं अनुवाद उसने '"सीर-ए-अकबर (सबसे बड़ा रहस्य) में किया है।[3]

वेदांग दर्शन और पुराणशास्त्र से उसके सम्पर्क का परिचय उसकी अनेक कृतियों से तथा उनके द्वारा अनुवादित साहित्य से मिलता है। उसके विचार और लेखनकार्य ईश्वर का श्विक पक्ष, द्रव्य में आत्मा का अवतरण, अद्वैत और निर्माण तथा संहार का चक्र जैसे सिद्धांतों के निकट परिलक्षित होते हैं। दारा का विश्वास था कि वेदांत और इस्लाम में सत्यान्वेषण के सबंध में शाब्दिक के अतिरिक्त और कोई अंतर नहीं है। दारा कृत उपनिषदों का अनुवाद दो विश्वासपथों - इस्लाम और वेदांत - के एकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान है।

राजनीतिक परिस्थितियों वश दारा में नास्तिकवाद की ओर रुचि हुई, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। बाल्यकाल से ही उसमें अध्यात्म के प्रति लगाव था। यद्यपि कुछ कट्टर मुसलमान उसे धर्मद्रोही मानते थे, तथापि दारा ने इस्लाम की मुख्य भूमि को नहीं छोड़ा। उसे धर्मद्रोही करार दिए जाने का मुख्य कारण उसकी सर्व-धर्म-सम्मिश्रण की प्रवृत्ति थी जिससे इस्लाम की स्थिति के क्षीण होने का भय था।

2017 में दिल्ली की 'डलहौजी रोड' का नाम बदलकर दारा शिकोह मार्ग कर दिया गया है।[4][5]

गेलरी संपादित करें

यह भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Who is Dara Shukoh?". मूल से 27 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अप्रैल 2017.
  2. "Aurangzeb and Dara Shikoh's fight for the throne was entwined with the rivalry of their two sisters". मूल से 13 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 सितंबर 2018.
  3. "No, Mughals didn't loot India. They made us rich". मूल से 16 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 सितंबर 2017.
  4. "दिल्ली : साम्राज्यवादी लॉर्ड डलहौजी की जगह हिन्दू विचारधारा के समर्थक दारा शिकोह के नाम पर हुई रोड". मूल से 20 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अप्रैल 2017.
  5. "दाराशिकोह: इतिहास का सबसे अभागा राजकुमार". मूल से 19 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अप्रैल 2017.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें