दूरस्थ शिक्षा

शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों को शिक्षा देने का तरीका

दूरस्थ शिक्षा (Distance education), शिक्षा की वह प्रणाली है जिसमें शिक्षक तथा शिक्षु को स्थान-विशेष अथवा समय-विशेष पर मौजूद होने की आवश्यकता नहीं होती। यह प्रणाली, अध्यापन तथा शिक्षण के तौर-तरीकों तथा समय-निर्धारण के साथ-साथ गुणवत्ता संबंधी अपेक्षाओं से समझौता किए बिना प्रवेश मानदंडों के संबंध में भी उदार है।

COVID-19 महामारी के दौरान दूरस्थ शिक्षा लेते मैक्सिकन छात्र।.

भारत की मुक्त तथा दूरस्थ शिक्षा प्रणाली में राज्यों के मुक्त विश्वविद्यालय, शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाएं तथा विश्वविद्यालय शामिल है तथा इसमें दोहरी पद्धति के परंपरागत विश्वविद्यालयों के पत्राचार पाठयक्रम संस्थान भी शामिल हैं। यह प्रणाली, सतत शिक्षा, सेवारत कार्मिकों के क्षमता-उन्नयन तथा शैक्षिक रूप से वंचित क्षेत्रों में रहने वाले शिक्षुओं के लिए गुणवत्तामूलक व तर्कसंगत शिक्षा के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

भारत में मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा के इतिहास की प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं- संपादित करें

  • १९७० का दशक : पत्राचार पाठ्यक्रमों का विकास एवं प्रसार हुआ।
  • १९८२ : हैदराबाद में डॉ भीमराव अम्बेदकर मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना।
  • १९८७ : कई राज्यों में मुक्त विश्वविद्यालय खुले।
  • १९९१ : इग्नू द्वारा सूरस्थ शिक्षा परिषद (DEC) की स्थापना
  • १९९४ : डॉ बाबासाहेब आंबेडकर मुक्त विश्वविद्यालय दूरस्थ शिक्षा विश्वविद्यालय की स्थापना

दूरस्थ शिक्षा की विशेषताएँ संपादित करें

  • दूरस्थ शिक्षा में विद्यार्थी को नियमित तौर पर किसी संस्थान में जाकर पढ़ाई करने की जरूरत नहीं होती।
  • सभी पाठ्यक्रमों के लिए क्लासों की संख्या तय होती है और देश भर के कई केन्द्रों पर उनकी पढ़ाई होती है।
  • सूचना क्रांति और इन्टरनेट के कारण दूरस्थ शिक्षा और आसान एवं प्रासंगिक हो गयी है।
  • विजुअल क्लासरूम लर्निंग, इंटरैक्टिव ऑनसाइट लर्निंग और वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए विद्यार्थी देश के किसी भी राज्य में रहकर घर बैठे पढ़ाई कर सकते हैं।
  • विद्यार्थी अपनी आवश्यकता के अनुसार अपने पढ़ने की समय-तालिका बना सकते हैं।
  • कम खर्चीली - दूरस्थ शिक्षा से पढ़ाई करने की फीस काफी कम है।
  • सर्वसुलभ - विद्यार्थियों की संख्या की कोई सीमा नहीं
  • काम (जॉब) करने के साथ-साथ पढ़ाई की जा सकती है।
  • कम अंक आने पर भी मनपसंद कोर्स में दाखिला मिल जाता है।
  • किसी भी कोर्स के लिए उम्र बाधा नहीं होती है।
  • दूरस्थ शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण कार्य 'पाठ्य सामग्री तैयार करना' है। इसमें शिक्षक सामने नहीं होते। इसलिए पाठ्य सामग्री ही शिक्षक का काम करता है।
  • साधारण कोर्स के साथ ही वोकेशनल कोर्स तथा प्रोफेशनल कोर्स भी दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से किये जा सकते हैं।
  • आजकल दूरस्थ शिक्षा के द्वारा विद्यार्थी ग्रेजुएट, एमफिल, पीएचडी, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट आदि सभी कोर्स कर सकते हैं।[1]
  • मान्यता : पत्राचार से किए गए कोर्सों की मान्यता कहीं कम नहीं आंकी जाती। ये भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जितने की रेग्युलर कोर्स।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "दूरस्थ शिक्षा माध्यम है, तो कुछ ग़म नहीं". मूल से 23 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 अगस्त 2014.

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें