ध्रुवीय ज्योति

प्राकृतिक रोशनी का प्रदर्शन जो आकाश में प्रकट होता है, मुख्य रूप से उच्च उचाईयों में

ध्रुवीय ज्योति (लातिन: aurora, ऑरोरा), या मेरुज्योति, वह रमणीय दीप्तिमय छटा है जो ध्रुवक्षेत्रों के वायुमंडल के ऊपरी भाग में दिखाई पड़ती है। उत्तरी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को सुमेरु ज्योति (लैटिन: aurora borealis), या उत्तर ध्रुवीय ज्योति, तथा दक्षिणी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को कुमेरु ज्योति (लैटिन: aurora australis), या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, कहते हैं। प्राचीन रोमवासियों और यूनानियों को इन घटनाओं का ज्ञान था और उन्होंने इन दृश्यों का बेहद रोचक और विस्तृत वर्णन किया है। दक्षिण गोलार्धवालों ने कुमेरु ज्योति का कुछ स्पष्ट कारणों से वैसा व्यापक और रोचक वर्णन नहीं किया है, जैसा उत्तरी गोलार्धवलों ने सुमेरु ज्योति का किया है। इनका जो कुछ वर्णन प्राप्य है उससे इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि दोनों के विशिष्ट लक्षणों में समानता है।

Images of auroras from around the world, including those with rarer red and blue lights cimage3 = Aurora australis ISS.jpg

ध्रुवीय ज्योति का निर्माण तब होता है जब चुम्बकीय गोला सौर पवनों द्वारा पर्याप्त रूप से प्रभावित होता है तथा इलेक्ट्राॅनप्रोटॉन के आवेशित कणों के प्रक्षेप पथ को सौर पवनों तथा चुम्बकगोलीय प्लाज्मा उन्हें अप्रत्याशित वेग से वायुमंडल के ऊपरी सतह (तापमण्डल/बाह्यमण्डल) में भेज देते हैं। पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में प्रवेश के कारण इनकी ऊर्जा क्षय हो जाती है।

परिणामस्वरुप हुए वायुमंडलीय कणों के हुए आयनीकरण तथा संदीपन के कारण अलग-अलग रंगों के प्रकाश का उत्सर्जन होता है। दोनों ही ध्रुवीय क्षेत्र के आसपास की पट्टियों के निकट ऑरोरा का निर्माण कणों के अप्रत्याशित वेग के त्वरण पर भी निर्भर करता है। टकराने वाले हाइड्रोजन के परमाणु वायुमंडल से इलेक्ट्राॅन पुनः प्राप्त करने के पश्चात् आवेशित प्रोटॉन सामान्यतः प्रकाशीय उत्सर्जन करते हैं। प्रोटॉन ध्रुवीय ज्योति प्रायः निम्न अक्षांशों से देखे जा सकती हैं।[1]

पार्थिव ध्रुवीय ज्योति की घटना संपादित करें

अधिकांश ध्रुवीय ज्योति पट्टिका में उत्पन्न होती है जिसे "ध्रुवीय ज्योतिय पट्टिका" कहते हैं।[2] यह प्रायः अक्षांशों में 3° से 6° तक तथा ध्रुवों पर 10° तथा 20° के मध्य चौड़ी होती है। यह रात के समय काफ़ी साफ़ दिखाई पड़ती है। वह क्षेत्र जहाँ वर्त्तमान में ऑरोरा की घटना घटित होती है उसे "ध्रुवीय ज्योतिय अंडाकार" कहते हैं।[3]

उत्तरी अक्षांशों पर यह प्रभाव उत्तरी प्रकाश (northern lights) से जाना जाता है। 1619 ईस्वी में गैलिलियो ने इसका पूर्व नाम रोमन देवी तथा उत्तरी पवन के यूनानी भाषी नाम पर रखा था।[4] इसका दक्षिणी समकक्ष, दक्षिणी प्रकाश (southern lights) की विशेषताएँ भी उत्तरी प्रकाश के लगभग समान होती हैं।[5] दक्षिणी प्रकाश अंटार्कटिका, चिली, अर्जेंटीना, न्यूज़ीलैंड तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे उच्च दक्षिणी अक्षांशों पर दिखते हैं।

भूचुम्बकीय झंझा के कारण ध्रुवीय ज्योतिय अंडाकार (उत्तर व दक्षिण) निम्न अक्षांशों तक भी विस्तृत हो जाते हैं। इस काल में ध्रुवीय ज्योति सबसे अच्छी दिखाई पड़ती है, जिसे चुम्बकीय मध्यरात्रि कहते हैं।

एक्सपेडिशन 28 के सदस्य दल द्वारा अन्तरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से लिये गये दक्षिणी प्रकाश के वीडियो
This sequence of shots was taken 17 September 2011 from 17:22:27 to 17:45:12 GMT,
on an ascending pass from south of Madagascar to just north of Australia over the Indian Ocean
This sequence of shots was taken 7 September 2011 from 17:38:03 to 17:49:15 GMT,
from the French Southern and Antarctic Lands in the South Indian Ocean to southern Australia
This sequence of shots was taken 11 September 2011 from 13:45:06 to 14:01:51 GMT, from a descending pass near eastern Australia, rounding about to an ascending pass to the east of New Zealand
NOAA के उत्तर अमेरिका तथा यूरेशिया के मानचित्र
North America
यूरेशिया
These maps show the local midnight equatorward boundary of the aurora at different levels of geomagnetic activity.
A Kp=3 corresponds to low levels of geomagnetic activity, while Kp=9 represents high levels.

चित्र संपादित करें

दृश्य रूप तथा रंग संपादित करें

  • लाल: सर्वाधिक ऊँचाई पर
  • हरा: निम्न ऊँचाई पर
  • नीला: और अधिक निम्न ऊँचाई पर
  • पराबैंगनी: ध्रुवीय ज्योति के पराबैंगनी विकिरण, इसे आवश्यक उपकरणों द्वारा ही देखा जा सकता है।
  • इन्फ्रारेड: ध्रुवीय ज्योति के इन्फ्रारेड विकिरण
  • पीला तथा गुलाबी: लाल तथा हरा या नीले रंगों के मिश्रण से निर्मित

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Simultaneous ground and satellite observations of an isolated proton arc at sub-auroral latitudes". Journal of Geophysical Research. 2007. मूल से 5 अगस्त 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अगस्त 2015.
  2. Feldstein, Y. I. (2011). "A Quarter Century with the Auroral Oval". EOS. 67 (40): 761. डीओआइ:10.1029/EO067i040p00761-02. बिबकोड:1986EOSTr..67..761F.
  3. Bruzek, A.; Durrant, C. J. (2012). Illustrated Glossary for Solar and Solar-Terrestrial Physics. Springer Science & Business Media. पृ॰ 190. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-94-010-1245-4.
  4. Siscoe, G. L. (1986). "An historical footnote on the origin of 'aurora borealis'". History of Geophysics: Volume 2. History of Geophysics: Volume 2. Series: History of Geophysics. History of Geophysics. 2. पपृ॰ 11–14. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-87590-276-0. डीओआइ:10.1029/HG002p0011. बिबकोड:1986HGeo....2...11S.
  5. Østgaard, N.; Mende, S. B.; Frey, H. U.; Sigwarth, J. B.; Åsnes, A.; Weygand, J. M. (2007). "Auroral conjugacy studies based on global imaging". Journal of Atmospheric and Solar-Terrestrial Physics. 69 (3): 249. डीओआइ:10.1016/j.jastp.2006.05.026. बिबकोड:2007JASTP..69..249O.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें