नाड़ी परीक्षा हृदयगति (पल्स) जाँचने की भारतीय पद्धति है। इसका उपयोग आयुर्वेद, सिद्ध आदि चिकित्सापद्धतियों में होता है। यह आधुनिक पद्धति से भिन्न है।

नाड़ी परीक्षा

इसमें तर्जनी, माध्यिका तथा अनामिका अंगुलियों को रोगी के कलाई के पास बहि:प्रकोष्‍ठिका धमनी (radial artery) पर रखते हैं और अलग-अलग दाब देकर वैद्य कफ, वात तथा पित्त- इन तीन दोषों का पता लगाता है।

रोगाक्रान्तशरीस्य स्थानान्यष्टौ परीक्षयेत्।
नाड़ीं जिह्वां मलं मूत्रं त्वचं दन्तनखस्वरात्॥ (भेलसंहिता)

(अर्थ : रोग से आक्रान्त शरीर के आठ स्थानों का परीक्षण करना चाहिये- नाड़ी, जीभ, मल, मूत्र, त्वचा, दाँत, नाखून, और स्वर (आवाज)। यहाँ स्वर-परीक्षा का तात्पर्य सभी प्रकार के यथा-नासा वाणी, फुस्फुस, हृदय, अन्त्र आदि में स्वतः उत्पन्न की गयी ध्वनियों से है। स्वर नासिका से निकली वायु को भी कहते हैं। )

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