नौकरी (1954 फ़िल्म)

हिन्दी भाषा में प्रदर्शित चलवित्र

नौकरी 1954 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है जिसका निर्देशन बिमल रॉय द्वारा किया गया है। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं किशोर कुमार और शीला रमानी। यह फ़िल्म संवेदनशीलता से आज़ादी के बाद के वर्षों में भारत के शिक्षित युवाओं के सपनों और आकांक्षाओं को शहरी जंगलों में नौकरी की तलाश में टूटते-बिखरते दर्शाती है। बिमल रॉय ने अपनी अन्य फ़िल्मों की भाँति इस फ़िल्म में भी एक और सामाजिक समस्या को अपने अनुपम ढंग से चित्रित किया है। इस फ़िल्म से किशोर कुमार को अभिनेता के रूप में भी पहचान मिली।

नौकरी
चित्र:नौकरी.jpg
नौकरी का पोस्टर
निर्देशक बिमल रॉय
लेखक सुबोध बासु
पटकथा नबेन्दु घोष
निर्माता बिमल रॉय
अभिनेता

किशोर कुमार,
शीला रमानी,
जगदीप,
कन्हैया लाल,
अचला सचदेव,
महमूद

इफ़्तेख़ार
संगीतकार सलिल चौधरी (संगीत)
शैलेन्द्र (गीत)
प्रदर्शन तिथि
1954
देश भारत
भाषा हिन्दी

संक्षेप संपादित करें

रतन कुमार चौधरी (किशोर कुमार) अपनी माँ (अचला सचदेव) और तपेदिक से पीड़ित बहन उमा/उमी के साथ एक गांव में रहता है। उसके पिता का देहान्त हो चुका है। वह बी.ए. में अच्छे नंबरों से पास होता है और कोलकाता जाता है जहाँ उसके पिता काम करते थे उस ऑफ़िस के मैनेजर ने उसे नौकरी देने का वायदा किया था। वह एक लौज में रहने जाता है जहाँ उसे 'बेकार' आवास में रहने को भेज दिया जाता है जहाँ पहले से ही तीन बेरोज़गार लड़के (जिनमें से एक इफ़्तेख़ार हैं) रहते हैं। रतन को उसके पिता की जगह नौकरी नहीं मिलती क्योंकि मैनेजर के साले को वह जगह दे दी जाती है। हताश रतन हर जगह अपनी नौकरी की अर्ज़ी भेजता है। लौज के सामने के मकान में सीमा (शीला रमानी) अपने माता-पिता के साथ रहती है और दोनों में प्रेम हो जाता है। एक दिन रतन को तार आता है कि उसकी बहन चल बसी है और भाग्य की विडंबना यह कि उसी के साथ ख़त आता है कि जिस आरोग्य निवास (सैनिटोरियम) में वह अपनी बहन को डालना चाहता था वहाँ से मंज़ूरी आ गई है। रतन को बंबई में नौकरी मिल जाती है। मारे ख़ुशी के वह अपना नियुक्ति पत्र एक चिट्ठी में डालकर सीमा के घर डाल आता है, इस उम्मीद में कि अब सीमा के पिता उसका विवाह सीमा से करवा देंगे क्योंकि उसकी नौकरी लग गयी है। मगर सीमा के पिता वह पत्र बिना पढ़े ही जला देते हैं और रतन को उस कम्पनी का नाम-पता भी मालूम नहीं होता है जहाँ उसे नौकरी मिली है। ख़ैर किसी तरह वह बंबई पहुँचता है और उस कम्पनी में पहुँचता है जहाँ से उसे नियुक्ति पत्र आया था। उसे वह नौकरी मिल जाती है लेकिन दिन उस कम्पनी के पुराने मुलाज़िम की हिमायत करने की सज़ा में उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। इसी बीच सीमा भी कलकत्ता से भागकर उसके पास आ जाती है। रतन सीमा को सच्चाई बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है और आत्महत्या करने निकल पड़ता है। सीमा उसे रोक लेती है और दोनों ज़िन्दगी की जंग की ओर चल पड़ते हैं।

चरित्र संपादित करें

मुख्य कलाकार संपादित करें

दल संपादित करें

संगीत संपादित करें

# गीत गायक/गायिका
छोटा सा घर होगा किशोर कुमार, उषा मंगेशकर
एक छोटी सी नौकरी का तलबग़ार हूँ किशोर कुमार, शंकर दासगुप्ता
झूमे रे कली भँवरा उलझ गया गीता दत्त
अर्ज़ी हमारी ये मर्ज़ी हमारी किशोर कुमार
ओ मन रे ना ग़म कर गीता दत्त

रोचक तथ्य संपादित करें

इस फ़िल्म में चाहे थोड़े समय के लिए ही सही, बिन ब्याहे प्रेमियों को एक ही कमरे में रहते हुए दिखाया गया है जो उस दौर में अनसुनी सी बात थी।

परिणाम संपादित करें

बौक्स ऑफिस संपादित करें

समीक्षाएँ संपादित करें

नामांकन और पुरस्कार संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें