अधिक भू-परिष्करण (tillage) की क्रियाओं के करने से अनेक हानियाँ हैं-

  • भू-परिष्करण की क्रियाओं पर होने वाला व्यय बढ़ जाता है
  • भूमि कटाव बढ़ता है,
  • जुताई के हल का क्षेत्र बढ़ता है ,
  • वाष्पीकरण की दर बढ़ती है,
  • मृदा कणों के आकार एवं प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है,
  • जीवांश पदार्थ नष्ट हो जाता है,

अर्थात जुताई की क्रियाएँ एक सीमा तक ही लाभकारी होती हैं। इसे ही न्यूनतम भू-परिष्करण कहते हैं। निम्नलिखित विधियों को अपनाकर न्यूनतम भू-परिष्करण सम्भव है-

  • ( 1 ) फसल के अवशेषों का प्रयोग

  • ( 2 ) विकसित भू-परिष्करण यन्त्रों का प्रयोग
  • ( 3 ) रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग
  • ( 4 ) खरपतवारनाशियों का प्रयोग
  • ( 5 ) कीड़े-मकोड़ों और बीमारियों पर नियंत्रण के लिये रसायनों का प्रयोग ।